श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी की आध्यात्मिक विशेषताओं का ज्योतिषशास्त्रीय विश्लेषण !
‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी हैं । उनके दर्शन होने पर ‘प्रत्यक्ष श्री महालक्ष्मी देवी हमारे सामने खडी हैं’, इसकी अनुभूति होती है । उन्होंने गुरुकृपायोग अनुसार साधना कर अल्प काल में शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति साध्य की । उनकी जन्मकुंडली में विद्यमान आध्यात्मिक विशेषताओं का ज्योतिषशास्त्रीय विश्लेषण आगे दिया गया है ।
१. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का व्यक्तित्व दर्शानेवाले घटक
अ. लग्नराशि (कुंडली में निहित प्रथम स्थान की राशि) : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की कुंडली के प्रथम स्थान में ‘तुला’ राशि है । तुला राशि वायुतत्त्व की होती है । अतः ऐसे व्यक्ति में कार्यकुशलता, गतिशीलता, सेवाभाव, सिद्धांतवादिता एवं वैराग्य जैसे गुण होते हैं । ऐसे व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता एवं आकलन शक्ति उत्तम होती है ।
आ. जन्मराशि (कुंडली में स्थित चंद्रमा की राशि) : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की कुंडली में चंद्रमा ‘कन्या’ राशि में है । कन्या राशि में चंद्रमा जिज्ञासा, नैदानिकता, अध्ययनशील वृत्ति, तर्कशक्ति, योजना कौशल एवं कलात्मकता आदि विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता है । कन्या राशि में स्थित चंद्रमा परिपक्वता प्रदान करता है ।
२. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की जन्मकुंडली में पाई जानेवाली आध्यात्मिक विशेषताएं
२ अ. ईश्वर एवं गुरु के प्रति जन्म से ही भाव होना : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की कुंडली में गुरु एवं शुक्र इन दो ग्रहों का मिलाप है । यह योग जन्म से ही ईश्वर एवं गुरु के प्रति भाव दर्शाता है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने स्वयं में विद्यमान भाव का रूपांतरण भक्ति में किया । भक्ति का अर्थ है गुरुचरणों में संपूर्ण शरणागति ! उन्होंने स्वयं भक्ति करने के साथ ही साधकों को भी सिखाया कि भक्ति कैसे करनी चाहिए । उन्होंने भक्ति के बल पर व्यापक समष्टि कार्य किया; इस कारण सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने उन्हें ‘समष्टि राधा’ की अद्वितीय उपमा दी । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा लिए जानेवाले साप्ताहिक भक्तिसत्संगों में उनकी वाणी से व्यक्त होनेवाली उत्कट भक्ति प्रत्येक साधक अनुभव करता है । उनकी वाणी में विद्यमान चैतन्य के कारण भक्तिसत्संग में उच्च लोकों का वातावरण अवतरित होने की अनुभूति होती है ।
२ आ. योजना कुशलता एवं अध्ययनशील वृत्ति : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की कुंडली में रवि एवं चंद्रमा ग्रह ‘कन्या’ राशि में हैं । कन्या राशि में ‘योजना कुशलता एवं अध्ययनशीलता’, के गुण प्रधानता से होते हैं । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी में ये गुण स्पष्टता से दिखाई देते हैं । उन्होंने सभी साधकों के सामने परिपूर्ण सेवा का आदर्श रखा । कोई सेवा मिलने पर उसका अध्ययन करना, उसमें निहित सूक्ष्मता को समझ लेना, पूर्वनियोजन करना, समय सीमा सुनिश्चित करना, पूछकर कृति करना, सेवा का ब्योरा देना, सेवा में होनेवाली चूकों का अध्ययन करना इत्यादि कृतियों के द्वारा ‘सेवा कैसे करनी चाहिए’, यह उन्होंने साधकों को सिखाया । उनकी सीख के कारण साधकों की सेवाओं की फलोत्पत्ति बढी, साथ ही समष्टि साधना करने में अनेक युवा साधक एवं साधिकाएं सक्षम हो पाईं ।
२ इ. सेवाभाव एवं सिद्धांतवादिता : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की कुंडली में शनि ग्रह योगकारक (प्रभावी) है । शनि ग्रह ‘सेवाभाव एवं सिद्धांतवादिता’ के गुण प्रदान करता है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी में ‘प्रत्येक साधक की आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र हो’, यह उत्कंठा है, इसलिए वे साधकों को मानसिक स्तर पर नहीं, सदैव आध्यात्मिक स्तर पर संभालती हैं । इसके संदर्भ में वे कहती हैं, ‘मैं साधकों की समस्याओं का समाधान करते समय उन्हें कभी भी मानसिक स्तर पर नहीं संभालती । मानसिक स्तर पर तात्कालिक आधार देने की अपेक्षा शाश्वत रूप से कैसे उनका मार्गदर्शन करें, मन में सदैव इसका ही विचार होता है । कभी-कभी साधक उसे स्वीकार नहीं कर सकते; परंतु साधना में भावना का कोई स्थान नहीं है, इसे ध्यान में रख, उन्हें आध्यात्मिक स्तर पर लाभ हो, ऐसे सूत्र ही बताती हूं ।’
२ ई. ‘ज्ञान, भक्ति एवं कर्म’, इन साधना पद्धतियों का संगम : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की कुंडली में स्थित ग्रहयोग ‘ज्ञान, भक्ति एवं कर्म’, इन तीनों साधना पद्धतियों के लिए पूरक हैं । ‘गुरुकृपायोग’ में इन तीनों साधना पद्धतियों का संगम है । ‘केवल गुरुतत्त्व शाश्वत है’, इसे जानकर माया को त्यागना’, इससे उन्होंने ज्ञानयोग साध्य किया । ‘गुरुचरणों में निरंतर शरणागत रहना’, इससे उन्होंने भक्तियोग साध्य किया, साथ ही ‘अखंड कार्यरत रहकर परिपूर्ण सेवा करना’, इससे उन्होंने कर्मयोग साध्य किया । इसके कारण उनकी आध्यात्मिक उन्नति तीव्र गति से हुई । तीनों साधना पद्धतियों का संगम होने के कारण वे किसी भी प्रकृति के साधक का साधना के संबंध में मार्गदर्शन कर सकती हैं ।
२ उ. गुरु, मंगल एवं शनि, इन ग्रहों का नवपंचमयोग होने पर व्यापक समष्टि कार्य करने की क्षमता उत्पन्न होना : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की कुंडली में गुरु, मंगल एवं शनि ग्रहों का नवपंचमयोग (शुभयोग) है । यह योग व्यापक समष्टि कार्य करने की क्षमता दर्शाता है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने साधना से संबंधित अनेक बडे उपक्रमों की सेवा समर्थतापूर्वक एवं सहजतापूर्वक संपन्न की है । साधना के विषय में वे देश-विदेश के साधकों का मार्गदर्शन करती हैं । सप्तर्षियों ने जीवनाडी-पट्टिका के माध्यम से उन्हें ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी’ के रूप में घोषित किया । ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना के कार्य में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का स्थूल से बडा योगदान रहेगा ।
३. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की अलौकिक आध्यात्मिक विशेषताएं
३ अ. आध्यात्मिक कष्टों पर विजय प्राप्त करना : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की कुंडली में रवि एवं शनि ग्रहों का अशुभयोग है, साथ ही उनका जन्म ‘सर्वपित्री अमावस्या’ की तिथि पर हुआ है । इस कारण आरंभ में उन्हें तीव्र आध्यात्मिक कष्ट थे; परंतु समष्टि साधना का लक्ष्य लेकर निरंतर भावपूर्ण एवं परिपूर्ण सेवा करने से अल्पावधि में ही उनके आध्यात्मिक कष्ट पूर्णतया दूर हुए । इस विषय में वे कहती हैं, ‘मैं ‘प्रतिक्षण सेवा के लिए कैसे प्रयास करूं ? तथा प्रतिक्षण मैं सेवा में कैसे रह सकूंगी ?’, इसके लिए मैं प्रयास करने लगी । जब मैं प्रत्येक क्षण सेवा में व्यतीत करने लगी, उस समय कष्ट अपनेआप अल्प होते चले गए । भावजागृति के प्रयास तथा अखंड सेवा में रहना’, इसके कारण मेरे कष्ट न्यून (कम) हुए ।’
३ आ. बिना विश्राम किए पूर्णतया समर्पित होकर गुरुकार्य करना : गुरुकार्य तो श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की सांस है । केवल कुछ घंटे विश्राम कर वे दिन-रात सेवा में व्यस्त रहती हैं । इस विषय में वे कहती हैं, ‘दिन-रात कितनी भी सेवा करूं, पर ‘मैं और क्या कर सकती हूं ?’, ऐसा लगता है । ‘गुरुकार्य की व्यापकता कैसे बढेगी ?’, सदैव यही लक्ष्य रहता है । इस कारण भोजन एवं नींद का भी स्मरण नहीं होता । करनेवाले तो भगवान ही हैं । अभी तो कुछ भी नहीं है, ‘मुझे अभी और बहुत कुछ करना है’, ऐसा लगता है ।’
३ इ. प्रीति : ‘अन्यों से निरपेक्ष प्रेम करना तथा अन्यों की आध्यात्मिक उन्नति होने के लिए प्रयासरत रहना’ प्रीति होती है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी प्रीति से ओतप्रोत हैं । उनमें ‘साधकों की तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति हो’, इसकी तीव्र उत्कंठा है । इस विषय में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी कहते हैं, ‘वात्सल्यभाव से ओतप्रोत श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने साधकों को मां की ममता से जो प्रेम दिया है तथा साधना में उनकी प्रगति हो इसके लिए उनकी जो सहायता की है, उसकी महिमा शब्दों में व्यक्त करना असंभव है । ‘प्रीति’ उनका स्थायीभाव है । इसी के चलते ‘अपने घर-बार का त्याग करनेवाले साधकों का ध्यान मेरे उपरांत कौन रखेगा ?’ तथा ‘कौन उनकी प्रगति करवाएगा ?’, इस चिंता से उन्होंने मुझे मुक्त कर दिया है ।’
३ ई. ‘श्री महालक्ष्मीतत्त्व’ जागृत होना : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की कुंडली के दशम स्थान में गुरु एवं शुक्र ग्रहों का मिलाप मघा नक्षत्र में है । यह योग ‘श्री महालक्ष्मीतत्त्व’ का दर्शक है । दशम (कर्म) स्थान में स्थित ग्रह स्पष्टता से फल देते हैं । नाडीपट्टिका के माध्यम से सप्तर्षियों ने श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी में ‘श्री महालक्ष्मीतत्त्व’ होने की बात कही है । श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी में जन्म से ही बीजरूप में देवीतत्त्व था तथा काल के अनुसार वह प्रकट होने लगा । सप्तर्षियों के बताए अनुसार ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना के लिए श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा सूक्ष्म स्तर पर बडे स्तर पर कार्य हो रहा है ।
कृतज्ञता : श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की जन्मकुंडली का विश्लेषण करने का मुझे अवसर मिला, इसके लिए श्रीगुरुचरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !’
– श्री. यशवंत कणगलेकर (ज्योतिष विशारद) एवं श्री. राज कर्वे (ज्योतिष विशारद), महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२२.४.२०२३)