गुरुरूप में साक्षात श्रीविष्णु प्राप्त होने के कारण समर्पित होकर साधना के प्रयास करें !
साधना के विषय में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की अनमोल वैचारिक संपदा !
१. रज-तमप्रधान वातावरण में भी उत्कंठापूर्वक साधकों का ध्यान रखनेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी
गुरुदेवजी की प्रत्येक सांस साधकों के लिए ही होती है । प्रति क्षण उन्हें अपनी आंखों के सामने केवल साधक और साधक ही दिखाई देते हैं । गुरु का प्रत्येक दिन और प्रत्येक विचार अपने साधकों के लिए ही होता है । ‘मैं समष्टि को और क्या दूं ?’, यही उनकी उत्कंठा होती है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की अपार कृपा के कारण तथा उनकी प्रीति के कारण ही साधकों के जीवन में आमूल परिवर्तन हो रहे हैं । साधकों का जीवन आनंदमय है तथा इस घोर कलियुग में रज-तम वातावरण में रहकर भी वे खुलकर सांस ले पा रहे हैं । प.पू. गुरुदेवजी सनातन के प्रत्येक साधक तथा उनके परिवार का भी ध्यान रख रहे हैं । इस प्रकार से ध्यान रखनेवाला इस पृथ्वी पर अन्य कौन है ?
२. गुरु के प्रति कितनी कृतज्ञता प्रतीत होती है, इस पर साधना के प्रयास निर्भर होते हैं !
श्रीगुरु ने हम पर कृपा का वर्षाव किया है । उनके प्रति हमें कितनी मात्रा में कृतज्ञता प्रतीत होती है, इस पर साधना के प्रयास निर्भर होते हैं । साधना में अल्पसंतुष्ट न रहें । ‘हमें बहुत प्रयास करने हैं’, इसका हम भान रखेंगे । ‘सभी साधकों की प्रगति हो’, यही गुरुदेवजी का संकल्प है । गुरुदेवजी सभी साधकों की साधना में आगे बढने की प्रतीक्षा कर रहे हैं । हमारे द्वारा किए जानेवाले छोटे-छोटे प्रयास देखकर भी गुरुदेवजी आनंदित होते हैं । वास्तव में देखा जाए, तो वे प्रयास भी गुरुदेवजी की कृपा से ही होते हैं । अर्जुन ने जब मछली की आंख भेदने का लक्ष्य रखा, उस समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया, ‘तुम सतर्क रहो तथा अपने लक्ष्य की ओर ध्यान रखो ।’ उस समय अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा, ‘हे श्रीकृष्ण, आप क्या करेंगे ?’, उस समय श्रीकृष्ण ने कहा, ‘‘तुम जो नहीं कर सकते, वह मैं करूंगा !’’ (इसका अर्थ यह था कि पानी में स्थित मछली की आंख भेदने के लिए पानी को स्थिर रखने का कार्य भगवान श्रीकृष्ण करनेवाले थे ।)
३. गुरुदेवजी ही हमारे आधार हैं । साधना करनेवाला जीव पृथ्वी का सबसे धनवान जीव है । उसके सौभाग्य की गणना ही नहीं की जा सकती ।
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ
साधना में लगन का महत्त्व१. गुरुकृपा से साधना के क्रियमाण का उपयोग कर प्रारब्ध पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है ! : हमारे गुरुदेवजी इतने महान हैं कि वे प्रत्येक साधक को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त करने ही वाले हैं । वे प्रत्येक साधक को मोक्षतक ले जाने ही वाले हैं । गुरुदेवजी के प्रति अपार श्रद्धा रखकर आइए, हम साधना के क्रियमाण का उपयोग करें । साधना के उचित क्रियमाण का उपयोग कर, गुरुकृपा से हम प्रारब्ध पर भी विजय प्राप्त कर सकते हैं । २. परिस्थिति अनुकूल है अथवा प्रतिकूल, यह क्रियमाण पर ही निर्भर ! : ‘आज काल प्रतिकूल है; परंतु वह साधना के लिए अनुकूल है । हमारे क्रियमाण पर ही परिस्थिति अनुकूल है अथवा प्रतिकूल, यह निर्भर होता है । ३. मन में लगन हो, तो साधना होती है । प्रगति करने के लिए साधक की आयु, लिंग (पुरुष / स्त्री), शिक्षा, सेवा इनमें से कुछ भी बाधक नहीं बनता । – श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ |