चीन की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में : भारत के लिए स्वर्णिम अवसर !

१. चीनी अर्थव्यवस्था में आई मंदी के कारण २३ प्रतिशत चीनी युवक नौकरियों से वंचित

‘चीन की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है । इसका भारत पर अच्छा परिणाम हो सकता है । चीन में आई मंदी के कारण भारतीय उद्योगों के लिए नए-नए द्वार खुल रहे हैं । आज के समय में चीन के अनेक बडे प्रतिष्ठान दिवालियापन की कगार पर हैं । चीन में बेरोजगारी बढ रही है । ऐसा कहा जाता है कि वहां के लगभग २३ प्रतिशत युवकों को नौकरी नहीं मिलती । इसके कारण अनेक युवक देश के बाहर जा रहे हैं । चीनी अर्थव्यवस्था में आई मंदी का परिणाम निश्चित रूप से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड रहा है; परंतु यह स्थिति भारतीय उद्योगों के लिए नए-नए अवसरों के द्वार खोल रही है । चीन के निर्माण एवं गृहनिर्माण क्षेत्र मंदी की भीषण मार झेल रहे हैं । ‘कंट्री गार्डन’ प्रतिष्ठान ने पहले छह माह में ७ अरब डॉलर्स का (५८ सहस्र १०० करोड रुपए) का रिकॉर्ड घाटा स्थापित किया । इस प्रतिष्ठान पर १९४ अरब डॉलर्स (१ लाख ६१ सहस्र करोड रुपए से अधिक) की देनदारी है तथा उसके पास केवल १३.९ अरब डॉलर्स (१ लाख ७ सहस्र करोड रुपए से अधिक) का कोष उपलब्ध है । इसलिए यह प्रतिष्ठान दिवालिया होने की कगार पर है । चीन में संपत्ति निवेश में ८.५ प्रतिशत तक गिरावट आई है, साथ ही विकासकों ने (डेवलपर्स ने) संपत्ति के निर्माण एवं बिक्री के लिए जो बडे स्तर पर ऋण लिए थे, वो लंबित हैं ।

(सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन

२. चीनी अर्थव्यवस्था पर ‘डिफ्लेशन’ का (मुद्रास्फीति) का संकट

विश्व की द्वितीय सबसे बडी अर्थव्यवस्था चीन में ‘डिफ्लेशन’ आ रहा है । वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य में तीव्र गति से हो रहे पतन को ‘डिफ्लेशन’ कहा जाता है । ‘डिफ्लेशन’ का मुख्य कारण होता है बाजार में उत्पादों की संख्या बढना तथा खरीदारों की संख्या घट जाना ! चीन में पहली बार ही इतने बडे स्तर पर ‘डिफ्लेशन’ हो रहा है । वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य घटने के उपरांत ग्राहक सस्ते मूल्य पर खरीदारी कर सकता है; परंतु उसका व्यवसाय पर बहुत बुरा परिणाम होता है तथा उससे प्रतिष्ठानों को मिलनेवाला आर्थिक लाभ घट जाता है ।

पिछले वर्ष अक्टूबर से चीन का निर्यात निरंतर घट रहा है । महंगाई तथा बढती ब्याज दरों का वैश्विक मांग पर लक्षणीय परिणाम हुआ है । निर्यात घट जाने के कारण चीन की अर्थव्यवस्था को बडा धक्का लगा है । इस कारण जापान की भांति चीन भी लंबे समय तक मंदी की चपेट में फंसा रहेगा, ऐसी संभावना उत्पन्न हो रही है ।

३. निर्माणकार्य एवं गृहनिर्माण क्षेत्र आर्थिक संकट में

चीन का निर्माणकार्य एवं गृहनिर्माण क्षेत्र चीनी अर्थव्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है । वह ‘जीडीपी’ का (सकल घरेलू उत्पाद का) लगभग १३ प्रतिशत है । इस कारण चीनी अर्थव्यवस्था अत्यंत प्रभावित हुई है । इसी समय उत्पादन क्षेत्र भी पिछड रहा है । यही क्षेत्र चीन में २० करोड लोगों को रोजगार देता है । मांग के अभाव के कारण चीन में २० करोड घर खाली पडे हैं । उसके कारण निर्माणक्षेत्र मंदी की चपेट में है । विकासकों ने बैंक एवं अन्य आर्थिक संस्थाओं से जो ऋण लिए हैं, वो ‘ट्रिलियन डॉलर्स’ के घेरे में हैं तथा यही बोझ विकासकों के लिए मारक है । विकासक ऋण नहीं चुका पा रहे हैं; इस कारण चीन को आर्थिक संकट का सामना करना पड रहा है, जिसका परिणाम चीनी अर्थव्यवस्था पर हो रहा है ।

गृहनिर्माण क्षेत्र के साथ-साथ उत्पादन क्षेत्र भी चुनौतियों का सामना कर रहा है । रोजगार पर बढा खर्च, अन्य देशों से बढती प्रतियोगिता तथा अमेरिका के साथ चल रहे व्यापार युद्ध के कारण उत्पादन क्षेत्र को भीषण आघात झेलना पडा है । आर्थिक क्षेत्र को बडे स्तर पर दिए गए ऋण, निजी वित्त प्रतिष्ठान से प्रतियोगिता तथा पारदर्शिता के अभाव का चीन को सामना करना पड रहा है । चीन की आर्थिक वृद्धि धीमी पड जाने से ‘जीडीपी’ की दर ६ प्रतिशत के नीचे आ पहुंची है । अर्थव्यवस्था का इस प्रकार से जर्जर होना अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव करेगा । विश्व की दूसरी बडी अर्थव्यवस्था चीन में आई मंदी वैश्विक आर्थिक वृद्धि को धीमा करेगी ।

४. सरकारी ऋण चुकाने से संदर्भ में चीन की चिंता

सरकारी ऋण भी चीन की चिंता का एक प्रमुख विषय है । मूलभूत सुविधा परियोजनाओं तथा अन्य उपक्रमों को आर्थिक आपूर्ति करने के लिए चीनी सरकार बडे स्तर पर ऋण लेता है । सरकारी ऋण अर्थात विभिन्न नगरपालिकाओं, राज्यों एवं सरकारी विभागों द्वारा लिए गए ऋण । यह ऋण अत्यधिक बढ गया है । चीन के सामने इस ऋण को चुकाने की भी चिंता है ।

५. चीन में आई आर्थिक मंदी के कारण भारत को होनेवाले लाभ

अर्थव्यवस्था में आई मंदी के कारण चीन को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड सकता है; परंतु यह भारत के लिए एक बहुत अच्छा अवसर है । चीन में लगे अनेक कारखाने वहां से बाहर निकल रहे हैं । उनमें से कुछ भारत आ रहे हैं । अमेरिका अथवा यूरोप के विदेशी निवेशकों ने ‘चीनी स्टॉक मार्केट’ से अपना पैसा वापस निकाल लिया है तथा उनमें से कुछ भारत आ रहे हैं । चीनी अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण चीन जिन वस्तुओं को निर्यात करता था, उनके मूल्य घट रहे हैं । अब ऐसी वस्तुएं भारत को अल्प मूल्य पर मिल सकेंगी । चीन इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का एक बडा उत्पादक था; परंतु अब व्यय अधिक होने के कारण ऐसे कारखाने भी वहां से जा रहे हैं । वे भारत आ सकते हैं । चीन में वाहन उद्योग एक बडा उद्योग था; परंतु अब उसमें भी गिरावट आ रही है । औषधियों के निर्यात में भी चीन को बडी समस्याएं आ रही हैं । ये सब भारत के लिए अनुकूल हैं ।

आज भारत सेमीकंडक्टर की निर्मिति में ‘आत्मनिर्भर’ योजना चला रहा है । भारत ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत लैपटॉप एवं संगणकों का उत्पादन कर रहा है । पहले भारत इन उत्पादों का चीन या अन्य पश्चिमी देशों से आयात करता था । अब उनका उत्पादन भारत में ही हो, इस पर प्रयास चल रहा है । साथ ही छोटे एवं मध्यम स्तर के उद्योगों में वृद्धि करने के प्रयास हो रहे हैं । इसके कारण भारत में बडे स्तर पर निवेश हो रहा है । भारत में यातायात व्यवस्था अच्छी बन गई है, जिसके कारण चीन में आई मंदी का लाभ भारत भलीभांति उठा सकता है । इस स्थिति में भारत की अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचानेवाले राजनीति से प्रेरित हिंसक आंदोलनों एवं बंद पर लगाम लगाने की आवश्यकता है ।’

– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे, महाराष्ट्र.