‘भारत’ को अंतरराष्ट्रीय मान्यता !
नई देहली के ‘भारत मंडपम्’ के विशाल सभागार में ‘जी-२०’ देशों की परिषद संपन्न हुई । जुलाई २०२३ में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हीं की कल्पना पर आधारित इस भव्य सभागार का उद्घाटन किया था । विश्व की ७५ प्रतिशत जनसंख्या के तथा ८० प्रतिशत व्यापार का प्रतिनिधित्व करनेवाले देश इस परिषद में सम्मिलित हुए । इस परिषद की पृष्ठभूमि पर भारत ने पूरे वर्ष भिन्न-भिन्न उपक्रमों के अंतर्गत देश में नागरिक सुरक्षा, पर्यावरण जैसे विषयों पर लगभग २५० बैठकों का आयोजन किया । इसके फलस्वरूप एक प्रकार से भारतीयों का परिचय ‘जी-२०’ से हुआ । भव्य तैयारियां कर इस परिषद का प्रभावी आयोजन कर भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है । इस परिषद की अभूतपूर्व एवं वैश्विक स्तर पर भारत का सामर्थ्य दर्शानेवाली सफलता यह थी कि इस परिषद के पहले ही दिन जारी किए गए संयुक्त घोषणापत्र पर ‘जी-२०’ के सभी सदस्य देशों की सहमति बनी । ऐसा पहली बार हुआ ।‘जी-२०’ में सम्मिलित अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन, जर्मनी, यूरोपीय यूनियन के देश इत्यादि शक्तिशाली देश हैं । विश्व की महत्त्वपूर्ण समस्याओं में से एक रूस एवं यूक्रेन युद्ध का सूत्र चतुराई से रूस को आहत किए बिना रखने में सफलता मिली । विशेष बात यह है कि इस पर भारत ने चीन की भी सहमति प्राप्त की, जो बहुत कठिन काम था ।
पिछले वर्ष इंडोनेशिया में संपन्न ‘जी-२०’ परिषद में रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर घोषणापत्र में रूस की आलोचना, रूस एवं चीन को रास नहीं आई । इसके परिणामस्वरूप उस परिषद में संयुक्त घोषणापत्र पर सर्वसम्मति नहीं बनी थी । अब विदेशी प्रसारमाध्यमों ने भी इस संदर्भ में भारत की कूटनीति की प्रशंसा की है । विदेशी पत्रकारों के लिए ‘परिषद के पहले ही दिन सभी देशों की सर्वसम्मति से घोषणापत्र स्वीकार होना’, आश्चर्यजनक सूत्र था । भारत द्वारा की गई इस कूटनीति से विदेशी पत्रकारों सहित बडे राजनीतिज्ञ तथा विदेशनीति के विशेषज्ञ भी आश्चर्यचकित हैं । एक विकासशील देश के लिए शक्तिशाली देशों को एक विशिष्ट सूत्र पर सहमति बनाने के लिए बाध्य करना बहुत कठिन है । भारत में इससे भी आगे बढते हुए परिषद आरंभ होने से पूर्व ही अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से बातचीत कर उन्हीं से ही यह मनवा लिया कि ‘भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिलाने में बाइडेन समर्थन देंगे ।’ इसके अतिरिक्त भारत ने अमेरिका के साथ परमाणु रिएक्टर, जेट इंजन तथा अधिक क्षमतावाले ड्रोन प्राप्त करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण समझौते किए । ‘जी-२०’ देशों का यह गठबंधन प्रमुख रूप से आर्थिक एवं वित्तिय विषयों के लिए है, जैसे कि कोरोना महामारी के काल में वैश्विक अर्थव्यवस्था को बडी हानि पहुंची । अनेक देशों के आर्थिक समीकरण गडबडा गए । ऐसी स्थितियों का सामना करने में यह परिषद उपयोगी है । इसीलिए विश्व की ४४ वित्तीय संस्थाएं इस ‘जी-२०’ परिषद की सदस्य हैं । ऐसा होते हुए भी भारत ने इस परिषद के लिए उपस्थित मित्र देशों से अनेक लाभ उठाकर इस परिषद से बडी ‘फलोत्पत्ति’ प्राप्त की है । उसके कारण यह परिषद केवल चायपान, स्नेहभोज एवं भू-राजनीतिक (जियो-पॉलिटिकल) स्तर पर केवल सैद्धांतिक बैठक न रहकर, भारत के लिए स्वर्णिम अवसर सिद्ध हुई है, जो संभवतः उन देशों की यात्राएं करने पर भी साध्य नहीं हो पाता ।
अफ्रीकी देशों को जोडना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ५५ अफ्रीकी देशों के ‘अफ्रीकी यूनियन’ का महत्त्व पहचानकर उनके लिए ‘जी-२०’ के सभी सदस्य देशों का समर्थन प्राप्त कर उन्हें इस परिषद का सदस्य बनाया । यह भी भारत के अंतरराष्ट्रीय स्तर के संगठन का एक उदाहरण है । इसके कारण अफ्रीका के विकासशील देश भी अब इस बडी परिषद के साथ जुड गए हैं । भारत ने एशिया के दक्षिण चीनी सागर में स्थित चीन का प्रभाव घटाने के लिए अनेक देशों को जोडने का तथा भारत का नेतृत्व स्वीकार करवाने का प्रयास किया है । इन प्रयासों को सफलता मिल रही है । विशेष बात यह है कि जहां चीन आर्थिक सुसज्जित महामार्ग (कॉरिडोर) बनाने के प्रयास कर रहा है, ऐसे में भारत ने पश्चिम एशिया एवं यूरोप को जोडनेवाले कॉरिडोर का प्रस्ताव दिया है । रेल एवं बंदरगाहों के माध्यम से अब एशिया एवं यूरोप के देश जुड जाएंगे । वस्तुओं एवं सामग्री के यातायात के लिए यह मार्ग अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है । इस कॉरिडोर के प्रस्ताव को चीन के कॉरिडोर का उत्तर माना जा रहा है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जी-२०’ देशों के समक्ष एक उपग्रह बनाकर पर्यावरण एवं मौसम विज्ञान के अध्ययन के लिए उसका प्रक्षेपण करने का प्रस्ताव भी रखा है ।
सर्वत्र भारतीयता का डंका
परिषद स्थल पर प्रधानमंत्री मोदी जिस स्थान पर राष्ट्रप्रमुखों का स्वागत कर रहे थे, वहां कोणार्क के सूर्यमंदिर में स्थित पहिए की प्रतिकृति थी । इस सूर्यमंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर की नींव के पास १२ पहियों की जोडियां हैं । इन पहियों पर पडनेवाली सूर्य की किरणों से समझ में आता है कि ‘कितने बजे हैं ?’ भारत प्राचीन काल से ही निर्माण, विज्ञान एवं अन्य सभी क्षेत्रों में विकसित था, उसका प्रातिनिधिक उदाहरण यह मंदिर है । इससे भारत ने विश्व के देशों को प्राचीन काल की उसकी प्रगति के दर्शन कराए हैं । इस संपूर्ण परिषद में देश का उल्लेख ‘भारत’, ऐसा ही किया गया । विदेशी अतिथियों को भोज में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विख्यात व्यंजन उपलब्ध कराए गए । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की व्यवस्थाओं का अंतरराष्ट्रीयीकरण करते हुए विदेशियों को भारत की विशेषताओं के दर्शन कराए तथा उनके भारतीयीकरण का, साथ ही भारत की क्षमता को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का प्रशंसनीय प्रयास किया है । इससे अभी भले ही ऐसा लग रहा हो कि भारत ने आधा विश्व जीतने का प्रयास किया है; परंतु इसके क्रियान्वयन में ये देश कितना सहयोग देंगे ?, यह आनेवाला समय ही बताएगा !