‘जी-२०’ करोडों भारतीयों की परिषद ! – प्रधानमंत्री मोदी
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नई देहली – भारत में ‘जी-२०’ जनता की परिषद बनी है । करोडों भारतीय इस परिषद से जुडे हैं।, ऐसा प्रधानमंत्री मोदी ने परिषद के उद्घाटन के समय अध्यक्ष के रूप में किए भाषण में बताया । यहा के प्रगति मैदान के ‘भारत मंडपम्’ नामक भव्य सभागृह में सुबह ९.३० बजे जी-२० परिषद आरंभ हुई । आरंभ में मोरोक्को में हुए भूकंप में मृत लोगो को श्रद्धांजली अर्पित की गई । तदुपरांत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ५५ देशों के संगठन ‘अफ्रीकन युनियन’ को ‘जी-२०’ परिषद का स्थायी सदस्य बनाने का प्रस्ताव पारित किया । इस कारण अब जी-२० परिषद ‘जी-२१’ हो गयी है । प्रस्ताव पारित होने पर अफ्रीकन युनियन के प्रमुख अझाली असोमानी मी प्रधानमंत्री को गले लगा लिया । भारत ने अफ्रीकन युनियन को परिषद में स्थायी सदस्य बनाने के लिए समर्थन दिया था ।
परिषद आरंभ होने के पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत मंडपम् में सदस्य देशों के राष्ट्रप्रमुखों का स्वागत किया। प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष जो बायडेन को भारत मंडपम् में बनाए गए कोणार्क स्थित सूर्यमंदिर के चक्र की प्रतिकृति के विषय में जानकारी दी । जर्मनी के चान्सलर ओलाफ स्कोल्झ और सौदी अरेबिया के राजकुमार महंमद बिन सलमान शिखर परिषद में सहभागी होने के लिए ९ सितंबर की सुबह भारत पहुंचे । ८ सितंबर को अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष भारत पहुंचे तथा सीधे प्रधानमंत्री मोदी के निवासस्थान पर गए। वहां उन्होने लगभग १ घंटा द्विपक्षीय चर्चा की।
My remarks at Session-1 on ‘One Earth’ during the G20 Summit. https://t.co/loM5wMABwb
— Narendra Modi (@narendramodi) September 9, 2023
प्रधानमंत्री मोदी की नाम परिचय पट्टी पर अंग्रेजी में लिखा गया ‘भारत’!
‘जी-२०’ परिषद में प्रधानमंत्री मोदी जिस स्थान पर बैठे थे, वहां उनके समक्ष रखी देश की नामपट्टी पर अंग्रेजी में ‘भारत’ लिखा गया । अब तक अंग्रेजी में देश का नाम लिखते समय ‘इंडिया’ लिखा जाता था। परंतु इस बार प्रथमतः ‘भारत’ लिखा गया । इससे ध्यान में आता है की केंद्रशासन ‘इंडिया’ के स्थान पर ‘भारत’ नाम अंग्रेजी में भी प्रचारित कर रही है ।
इस परिषद में सहभागी होने वाले देशों के प्रमुखों को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रात्रि भोजन की निमंत्रण पत्रिका भेजते समय उस पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया । अब तक निमंत्रण पत्रिका पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ लिखा जाता था ।
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के सूत्र
१. ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ का मंत्र सभी के लिए मार्गदर्शक !
२१ वी शताब्दी का यह समय जग को नई दिशा देने वाला महत्त्वपूर्ण समय है । इस समय अनेक वर्षों की चुनौतियां हमारे समक्ष है । इन समस्याओं पर उपाय ढूंढने के लिए हमारी ओर आशा से देखा जा रहा है । इस हेतु मानवकेंद्रीत दृष्टिकोण रख कर प्रत्येक को दायित्व स्वीकार कर आगे जाना है । इस हेतु ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ यह मंत्र हम सभी के लिए मार्गदर्शक है ।
२. जी-२० के अंतर्गत देश के ६० शहरों में २०० से अधिक बैठकें !
भारत का ‘जी-२०’ परिषद का अध्यक्षपद देश के अंतर्गत और देश के बाहेर समावेशकता और सभी को साथ लेने का प्रतीक बना है। देश के ६० शहरों में ‘जी-२०’ परिषद की २०० से अधिक बैठकें हुई हैं।
३. चुनौतियों पर उपाययोजना ढूंढने की ओर मार्गक्रमण करना होगा !
वैश्विक अर्थव्यवस्था में परिवर्तन हो; उत्तर और दक्षिण का विभाजन हो, पूर्व और पश्चिम में मनमुटाव हो, अन्न, इंधन और खत का व्यवस्थापन हो, आतंकवाद और सायबर सुरक्षा हो अथवा आरोग्य, ऊर्जा और पानी सुरक्षा हो, वर्तमान सहित भविष्य की पीढ़ियों के लिए हमें इन चुनौतियों पर उपाययोजना ढूंढने की दिशा में मार्गक्रमण करना होगा ।
४. २ सहस्र ५०० वर्ष पूर्व भारत ने दिया मानवता के कल्याण का संदेश !
हम जिस स्थान पर एकत्रित हुए है उससे कुछ अंतर पर एक स्तंभ बनाया गया है । उस पर संदेश लिखा गया है ‘मानवता का कल्याण और सुख सदैव निश्चित करें । ‘
२ सहस्र ५०० वर्ष पूर्व भारत की भूमि ने यह संदेश जग को दिया था। इस संदेश को दिशा मानकर हम इस ‘जी-२०’ शिखर परिषद का आरंभ करेंगे, ऐसा आवाहन प्रधानमंत्री मोदी ने किया ।
भारत के साथ ८ देशों के आर्थिक महामार्ग को सहमति !
‘जी-२०’ परिषद में एक बडा निर्णय लिया गया है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने जानकारी दी है कि, अमेरिका, युरोप के कुछ देश, मध्य-पूर्व देश एवं भारत के मध्य आर्थिक महामार्ग का निर्माण करने पर एकमत हुआ है । अमेरिका, जर्मनी, इटली, जॉर्डन, इसरायल, सऊदी अरेबिया एवं भारत के मध्य आर्थिक महामार्ग का निर्माण किया जाएगा । इस मार्ग द्वारा उनमें व्यापार होनेवाला है । रेल एवं बंदरगाह के माध्यम से ये देश एकदूसरें से जुड जानेवाले हैं । चीन द्वारा इसी प्रकार के महामार्ग का निर्माण हो रहा है । इसकी ओर ऐसे देखा जा रहा है कि, उसके प्रत्युत्तर के रूप में यह मार्ग निर्माण किया जा रहा है । चीन के महामार्ग का अनेक देशों ने विरोध किया है । उसमें भारत भी समाहित है ।
‘जी-२०’ परिषद के संयुक्त घोषणापत्र पर भी सहमति
भारत की कूटनीति का बडा विजय : रूस का उल्लेख करना टालकर यूक्रेन युद्ध का उल्लेख !
मोदीजी ने परिषद के दूसरे सत्र के आरंभ में अध्यक्ष के रूप में जानकारी दी है कि, ‘जी-२०’ परिषद के पहले ही दिन संयुक्त घोषणापत्र पर सहमति हुई है । सभी सदस्य देशों की सहमति से घोषणापत्र पारित किया गया है । इस हेतु का घोषणापत्र सहमत होगा अथवा नहीं ?, इस विषय में पूरे विश्व में चर्चा थी । पिछले परिषद में संयुक्त घोषणापत्र पारित नहीं हुआ था, इसलिए संदेह था । ३७ पृष्ठों के इस घोषणापत्र में यूक्रेन युद्ध का उल्लेख किया गया है । इसमें कहा गया है कि, ‘वर्तमानकाल युद्ध करने का काल नहीं है ।’ इस युद्ध का उल्लेख करते समय रूस का नाम टाल दिया गया है । कहा जाता है कि, इससे भारत ने अपने मित्रराष्ट्र रूस को आहत न करने का प्रयास किया है । भारत के लिए यह संयुक्त घोषणापत्र पारित होना, बडी सफलता है । कहा जाता है कि, भारत की कूटनीति का यह विजय है । अमेरिका एवं यूरोपीयन देशों द्वारा ‘घोषणापत्र में यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस के विरुद्ध कठोर भाषा का प्रयोग किया जाए’, ऐसा दबाव लाया गया था । भारत ने उनको इससे परावृत्त कर यूक्रेन युद्ध पर रूस का उल्लेख टालते हुए सफलता प्राप्त की है । चीन ने इसका समर्थन किया है ।
इस घोषणापत्र में सभी प्रकार के आतंकवाद का निषेध किया गया है । इस घोषणापत्र में ४ बार ‘यूक्रेन’ का, तो ९ बार ‘आतंकवाद’ शब्द का उल्लेख किया गया है ।
‘जी-२०’ परिषद के आयोजन पर चीन द्वारा भारत की प्रशंसा : अमेरिका की आलोचना !
‘जी-२०’ शिखर परिषद के आयोजन पर चीन ने भारत की प्रशंसा की है । चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग इस परिषद में अनुपस्थित थे । जी-२० के संदर्भ में चीन सरकार के अधिकृत प्रसारमाध्यम ‘ग्लोबल टाईम्स’ ने अपने लेख में कहा है ‘‘भारत का समर्थन करने का दावा करनेवाले अमेरिका एवं पश्चिमात्य देशों ने जी-२० देशों के मध्य हो रहे मतभेदों को खुलेआम किया है । उन्हें अपनी नीतियां आगे ले जानी हैं । भारत आर्थिक सुधार एवं बहुदलीय कूटनीति पर लक्ष केंद्रित करने को इच्छुक है; परंतु अमेरिका एवं पश्चिमात्य देशों को यह स्वीकार नहीं है । ये देश रूस-यूक्रेन युद्ध को अधिक महत्त्व दे रहे हैं । पश्चिमात्य देशों ने निरंतर भारत-चीन संघर्ष को बढावा दिया है ।’’