देवालय में परिक्रमा करने से व्यक्ति को होनेवाले आध्यात्मिक स्तर के लाभ !
‘देवालय में देवता के दर्शन करने के उपरांत हम उनकी परिक्रमा करते हैं । परिक्रमा करने से हमें चैतन्य मिलता है । ‘देवालय में परिक्रमा करने से व्यक्ति की सूक्ष्म-ऊर्जा पर क्या परिणाम होता है ?’, इसका विज्ञान द्वारा अध्ययन करने हेतु परिक्रमा करने से पूर्व एवं परिक्रमा करने के उपरांत आध्यात्मिक पीडाग्रस्त एवं पीडारहित साधकों का ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण द्वारा परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के निरीक्षणों का विवेचन एवं अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण आगे दिया है ।
१. परीक्षण के निरीक्षणों का विवेचन
इस परीक्षण में आध्यात्मिक पीडाग्रस्त एवं पीडारहित साधकों ने एक गणपति मंदिर में मूर्ति के दर्शन कर उनकी परिक्रमा की ।
१ अ. देवालय में परिक्रमा करने के उपरांत आध्यात्मिक पीडाग्रस्त एवं पीडारहित साधकों की नकारात्मक ऊर्जा बहुत घट जाना तथा उनमें विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा में अत्यधिक वृद्धि होना : देवालय में परिक्रमा करने से पूर्व आध्यात्मिक पीडाग्रस्त एवं पीडारहित साधकों में नकारात्मक तथा सकारात्मक ऊर्जा थी । उनके द्वारा परिक्रमा करने के उपरांत उनमें विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा बहुत घट गई अथवा दूर हो गई । उनकी सकारात्मक ऊर्जा भी बहुत बढ गई । निम्नांकित सारणी से यह समझ में आएगा ।
२. कसोटी के निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण
२ अ. परिक्रमा करने से आध्यात्मिक पीडाग्रस्त एवं पीडारहित साधकों को आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होना : देवालय के गर्भगृह में विद्यमान चैतन्य गर्भगृह में एवं गर्भगृह के आसपास वर्तुलाकार घूमता रहता है । परिक्रमा करने से परिक्रमा करनेवाले को इस चैतन्य का लाभ मिलता है । परीक्षण में सम्मिलित आध्यात्मिक पीडाग्रस्त एवं पीडारहित साधकों को यह चैतन्य उनके भाव के अनुसार ग्रहण हुआ । इस कारण उन पर विद्यमान कष्टदायक स्पंदनों का आवरण बहुत घट गया तथा उनकी सात्त्विकता बहुत बढ गई । इससे समझ में आता है, ‘परिक्रमा करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होते हैं ।’
– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२०.१२.२०२२)
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