‘ब्राह्मण’ नाम किसका है ? (ब्राह्मण किसे कहें ?)
।। श्रीकृष्णाय नम: ।।
वज्रसूचिकोपनिषद्में ‘ब्राह्मण नाम किसका है ?’ ऐसा प्रश्न उपस्थित कर अलग-अलग संभावनाएं बताकर उनका निराकरण किया है । अंतमें ‘ब्राह्मण’ नाम किसका है, यह स्पष्ट किया है । जिज्ञासुओंके लिये यह जानकारी आगे दी है । मूल संस्कृत और उसका अर्थ देनेपर विस्तार बहुत बढेगा, इसलिये यह जानकारी आगे केवल हिंदी भाषामें दी है । मूल उपनिषद् जिस पद्धतिमें लिखा गया है, सामान्यत: उसी पद्धतिमें आगे जानकारी दी है । क्वचित् किंचित् संक्षिप्त किया है । इसमें प्रस्तुतकर्ताका विवेचन नहीं है ।
‘चार वर्णाेंमें ब्राह्मण मुख्य है, ऐसा वेद और स्मृतियोंमें भी बताया है । उस विषयमें शंका होती है कि ब्राह्मण नाम किसका है ? जीव, देह, जाति, ज्ञान, कर्म, धार्मिक (व्यक्ति), इनमें से कौन ब्राह्मण है ?’
जीव – ‘जीव ब्राह्मण नहीं हो सकता । क्योंकि पहलेके और आगे होनेवाले अनेक विभिन्न शरीराेंमें जीव वहीं रहता है । कर्माेंके कारण वह अनेक शरीरोंको धारण करता है, किंतु (उन) सभी शरीरोंमें जीव एक ही होता है ।’
देह – ‘देह ब्राह्मण नहीं हो सकता । सभी मनुष्योेंके देह पंचमहाभूतोंके बने होते हैं और उन देहोंको वृद्धत्व, मृत्यु समान ही होते हैं । ब्राह्मण गोरा, क्षत्रिय लाल, वैश्य पीला, शूद्र काला होगा, ऐसा नियम नहीं है । देहको ब्राह्मण माना तो मृत पिताके शरीरको अग्नि देनेसे पुत्रको ब्रह्महत्या करनेका पाप लगनेकी संभावना रहेगी ।’
जाति – ‘जाति ब्राह्मण है, ऐसा नहीं हो सकता । विभिन्न जातिके प्राणियोंसे अनेक जातिके महर्षि उत्पन्न हुये हैं; यथा मृगीसे ऋष्यश्रृंग, कुशसे कौशिक, जम्बूकसे (सीयार) जाम्बूक, मल्लाहकी कन्यासे व्यास, शशपृष्ठसे (खरगोशकी पीठसे) गौतम, उर्वशीसे वसिष्ठ, कलशसे अगस्त्य उत्पन्न हुवे, ऐसा सुना जाता है । इनमें अनेक जातिके विना भी पहले पूर्ण ज्ञानवान् ऋषि हुवे हैं । इसलिये जाति ब्राह्मण नहीं है ।’
ज्ञान – ‘ज्ञान ब्राह्मण है, ऐसा नहीं हो सकता । बहुतसे क्षत्रिय (जनक, अश्र्वपति) आदि भी परमार्थको जाननेवाले तत्त्वज्ञ हुवे हैं ।’
कर्म – ‘कर्म ब्राह्मण नहीं हो सकता । सभी प्राणियोंमें प्रारब्ध, संचित और क्रियमाण कर्माेंमें समानता देखी जाती है और कर्माेंसे प्रेरित होकर वे मनुष्य क्रिया करते हैं । इसलिये कर्म ब्राह्मण नहीं है ।’
धार्मिक – ‘धार्मिक (है इस आधारपर व्यक्ति) ब्राह्मण नहीं हो सकता । बहुतसे क्षत्रिय आदि भी सुवर्णका दान करनेवाले हुवे हैं ।’
‘तब ब्राह्मण नाम किसका है ? जो कोई अद्वितीय आत्मा जाति, गुण और क्रियासे रहित, छह ऊर्मियां (टिप्पणी १) तथा छह विकार (टिप्पणी २) आदि सभी दोषोंसे रहित, सत्-चित्-आनंद एवं अनंतस्वरूप, निर्विकल्प होकर अनंत कल्पोंका आधार, अनंत प्राणियोंमें अंतर्यामीरूपसे रहनेवाला, सदा वर्तमान, आकाश जैसा सबके भीतर-बाहर परिपूर्ण, अखंड आनंद स्वभावका, अप्रमेय (इंद्रियां और अंत:करणसे न जाननेमें आनेवाला), केवल अनुभवसे जाननेयोग्य, प्रत्यक्ष प्रकाशित, करतलपर रखें आंवले जैसा परमात्माका साक्षात्कार कर कृतकृत्य हुवा, काम-अनुराग आदि दोषोंसे रहित, शमदमसंपन्न; मत्सर, तृष्णा, आशा, मोह आदि से रहित एवं जिसका चित्त दंभ, अहंकार आदि दोषोंसे निर्लिप्त है, वहीं वास्तविक ब्राह्मण है – ऐसा श्रुति, स्मृति, पुराण और इतिहासका अभिप्राय है । इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकारसे ब्राह्मणत्व सिद्ध नहीं होता ।’
टिप्पणी १ – छह ऊर्मियां :- प्यास-भूख, शोक-मोह, वृद्धत्व-मृत्यु ।
टिप्पणी २- छह विकार :- उत्पत्ति, वृद्धि, स्थिति, परिवर्तन, ह्रास, नाश ।
प्रस्तुतकर्ता – अनंत आठवले. ०४.०५.२०२३
।। श्रीकृष्णापर्णमस्तु ।।
पू. अनंत आठवलेजी के लेखन का चैतन्य न्यून न हो इसलिए ली गई सावधानीलेखक पू. अनंत आठवलेजी के लेखन की पद्धति, भाषा एवं व्याकरण का चैतन्य न्यून (कम) न हो; इसलिए उनका लेख बिना किसी परिवर्तन के प्रकाशित किया गया है । – संकलनकर्ता |