राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र देहली सरकार (संशोधन) विधेयक २०२३
१. ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र देहली सरकार (संशोधन) विधेयक २०२३’ कानून की दिशा में अग्रसर !
‘राज्यसभा ने सोमवार दिनांक ७ अगस्त २०२३ को १०२ के विरुद्ध १३१ मतों से विवादास्पद ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र देहली सरकार (संशोधन) विधेयक २०२३’ अर्थात गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ देहली (अमेंडमेंट) बिल २०२३’ को पारित कर दिया गया । यह विधेयक (bill) लोकसभा ने ३ अगस्त को ही ध्वनि मत (आवाजी मतदान) से पारित कर दिया था । अब यह विधेयक राष्ट्रपति के पास उनके हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा तथा शीघ्र ही यह कानून का रूप ले लेगा । उल्लेखनीय है कि यह बिल सरकार द्वारा १९ मई २०२३ को निकाले गए अध्यादेश (ordinance) के स्थान पर लाया गया है किंतु यह उससे बहुत भिन्न है । इस अध्यादेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी जिस पर निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इसके अनेक प्रावधानों से असहमति जताई थी एवं कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी देहली की सरकार को मात्र तीन विषयों; भूमि, पुलिस एवं प्रशासन को छोडकर सभी विषयों पर प्रशासनिक दृष्टि से नियंत्रण रखने का अधिकार है । अध्यादेश में सेक्शन ‘३ ए’ के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया था कि देहली विधानसभा को संविधान के शेड्यूल ७ लिस्ट एंट्री नंबर ४१ में प्रदत्त कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं होंगे, जो राज्य की सेवाओं से संबंधित हैं । अध्यादेश का सेक्शन ३ यह भी स्पष्ट करता था कि यह प्रावधान लागू होगा, भले ही इसके पूर्व न्यायालय से किसी भी प्रकार की डिग्री, आदेश अथवा निर्णय इसके विरुद्ध आया हो ।
इससे स्पष्ट है कि अध्यादेश में यह प्रावधान इसलिए किया गया था जिससे सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय को निष्प्रभावी किया जा सके; परंतु जो बिल लोकसभा से पारित होकर राज्यसभा में आया तथा राज्यसभा में भी पारित हुआ उसमें इस विषय पर कोई चर्चा नहीं है । स्पष्ट है कि केंद्र सरकार भी सर्वोच्च न्यायालय से किसी प्रकार का टकराव नहीं चाहती थी ।’
२. ‘राष्ट्रीय राजधानी नागरिक सेवा प्राधिकरण’ के कारण देहली राज्य सरकार के अधिकारों पर आई आंच !
‘इस बिल का जो सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है वह यह है कि इस बिल के माध्यम से ‘राष्ट्रीय राजधानी नागरिक सेवा प्राधिकरण’ (National Capital Territory Civil Services) की स्थापना की गई है तथा पूरे विवाद का यही सबसे बडा सूत्र है । इस प्राधिकरण अर्थात ऑथारिटी के माध्यम से राष्ट्रीय राजधानी देहली की सरकार को लगभग पूर्णरूप से अपंग कर दिया गया है । कहने के लिए तो देहली का मुख्यमंत्री इस प्राधिकरण का प्रमुख होगा, किंतु इसमें देहली सरकार के मुख्य सचिव तथा प्रमुख सचिव (गृह) भी सम्मिलित होंगे । स्वाभाविकरूप से निर्णय बहुमत से लिया जाएगा तथा यदि मुख्यमंत्री एवं दोनों सचिवों के मध्य टकराव होता है, तो दोनों सचिव जो निर्णय लेंगे वही अंतिम निर्णय होगा । तात्पर्य यह कि संभवतः देहली एकमात्र राज्य होगा जहां नौकरशाही राजनीतिक नेतृत्व के निर्णय को परिवर्तित कर सकेगी । इतना ही नहीं, कोई भी बैठक बुलाने के लिए मुख्यमंत्री की सहमति आवश्यक नहीं होगी तथा दोनों सचिव मीटिंग बुला सकते हैं तथा ३ में से २ होने के कारण कोई भी निर्णय ले सकते हैं । इसमें यह भी प्रावधान है कि राष्ट्रीय राजधानी देहली नागरिक प्राधिकरण द्वारा सर्वसम्मति से अथवा बहुमत से लिए गए निर्णय को देहली के उप राज्यपाल के पास भेजा जाएगा तथा उप राज्यपाल के ऊपर यह बाध्यता नहीं होगी कि वह इस निर्णय को स्वीकार करें । उप राज्यपाल इस निर्णय के विरुद्ध भी निर्णय ले सकते हैं तथा वही अंतिम निर्णय होगा । इस प्रकार से इस बिल के अंतर्गत देहली के मुख्यमंत्री की नियुक्ति, विधान एवं प्रशासन संबंधी लगभग सारे अधिकार समाप्त कर दिए गए हैं । इसके आगे सेक्शन ‘४५ डी’ में केंद्र सरकार के पक्ष में तथा देहली राज्य सरकार के विरुद्ध इससे भी अधिक कडे प्रावधान किए गए हैं ।’
३. देहली सरकार के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह !
‘सेक्शन ‘45 डी’ के अंतर्गत यह प्रावधान है कि वर्तमान कानून के अंतर्गत नियुक्त किए गए किसी भी प्रकार के कमीशन, कमिटी, वैधानिक संगठन इत्यादि, जो देहली सरकार द्वारा नियुक्त किए गए हैं, उन्हें परिवर्तित कर राष्ट्रपति (केंद्र सरकार) द्वारा नियुक्त किया जाएगा । सेक्शन ‘45 एच’ में यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई भी नियुक्ति देहली असेंबली के द्वारा बनाए गए किसी नियम के अनुसार की गई है, तब भी सेक्शन ‘45 एच’ के अंतर्गत देहली के उप राज्यपाल उसे परिवर्तित कर सकते हैं तथा नई नियुक्ति कर सकते हैं ।
‘इस बिल पर चर्चा के समय अनेक आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए जिनका उत्तर गृह मंत्री अमित शाह ने अत्यंत तर्कपूर्ण ढंग से दिया । लोकसभा एवं राज्यसभा में चर्चा के समय जो कुछ हुआ, देश के अधिकांश जागरूक नागरिकों ने उसे देखा । अतः उस पर चर्चा की अधिक आवश्यकता नहीं है; परंतु यहां पर कुछ मौलिक प्रश्न हैं जिनको समझना तथा उन पर चर्चा करना आवश्यक है । प्रश्न यह है कि यदि किसी मुख्यमंत्री के पास कानून बनाने, प्रशासन चलाने एवं भूमि का अधिकार नहीं है तो क्या उसके अस्तित्व का कोई अर्थ है ? लोकतंत्र के चार स्तंभ में से दो, अर्थात विधायिका एवं कार्यपालिका का कार्य राज्य सरकार अथवा केंद्र सरकार के पास होता है । इस बिल के कानून बन जाने के उपरांत राष्ट्रीय राजधानी देहली की सरकार के पास उल्लेख करने योग्य संभवत कोई भी वैधानिक अधिकार शेष नहीं रह जाता है । पुलिस, प्रशासन एवं भूमि, उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर होने के कारण प्रशासनिक अधिकार भी लगभग नगण्य हैं । नागरिक सुविधाओं को चलाने का कार्य विभिन्न नगर निगम का है तथा कर (टैक्स) संचय भी वही करते हैं । सच्चाई तो यह है कि वर्तमान स्थिति में देहली के एक पार्षद के पास संभवत: देहली विधायक से अधिक अधिकार हैं । ऐसे में देहली सरकार का अस्तित्व ही प्रश्न चिन्ह बन जाता है ।’
४. देहली राज्य सरकार का इतिहास !
‘राष्ट्रीय राजधानी देहली में चुनी हुई सरकार होनी चाहिए अथवा नहीं?- इस पर अनेक वर्षों तक चर्चा होती रही । यदि हम देहली राज्य का इतिहास देखें तो १९५१ से १९५६ तक यहां पर मुख्यमंत्री का प्रावधान था । उसके उपरांत १९५६ से राष्ट्रीय राजधानी देहली सरकार के पूर्ण दायित्व एवं अधिकार केंद्र के पास चले गए । देहली का प्रशासन सीधे केंद्र सरकार द्वारा उप राज्यपाल के माध्यम से चलाया जाता रहा । देहली का अस्तित्व कुछ ऐसा ही था जैसा कि चंडीगढ का है, अथवा अंडमान एवं निकोबार का है । यहां पर कोई चुनी हुई सरकार नहीं थी, लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास ही सारी शक्तियां थीं । यदि हम देहली के इतिहास को देखें तो लगभग ३७ वर्ष तक देहली में कोई मुख्यमंत्री नहीं था, न ही राज्य सरकार अथवा राज्य विधायिका का कोई प्रावधान था ।
१९५२ से १९५६ तक देहली में दो मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश तथा सरदार गुरुमुख निहाल सिंह रहे । १ नवंबर १९५६ को देहली के मुख्यमंत्री का पद समाप्त कर दिया गया । पुन: दिसंबर १९९३ में, जब देहली को राज्य का दर्जा दिया गया, देहली राज्य के अधिकार बहुत सीमित रखे गए । २ दिसंबर १९९३ को मदन लाल खुराना से आरंभ करके अरविंद केजरीवाल तक कुल ५ मुख्यमंत्री हुए, जिनमें श्रीमती शीला दीक्षित सबसे लंबे समय तक अर्थात १५ वर्ष तक मुख्यमंत्री रहीं । इस ३० वर्ष की अवधि में अधिकारों को लेकर किसी मुख्यमंत्री के कार्यकाल में इस प्रकार का विवाद नहीं हुआ । जबकि अरविंद केजरीवाल के कार्यकाल में किसी न किसी कारण से केंद्र से निरंतर टकराव होता रहा है ।’
५. देहली के मुख्यमंत्री केजरीवाल एवं केंद्र सरकार में संघर्ष !
‘इस प्रकार का विवाद होने के मुख्यतः दो कारण हैं: पहला, उचित एवं संवैधानिक कारण है तथा दूसरा राजनैतिक । पहला उचित इसलिए कि कोई किसी भी प्रदेश का मुख्यमंत्री है तो उसके पास समानुपातिक अधिकार भी होने चाहिए । प्रदेश का मुख्यमंत्री दिखाने (show piece) के लिए नहीं होना चाहिए; परंतु यहां यही प्रश्न आता है । श्री अमित शाह ने लोकसभा में भी कहा कि जब श्री अरविंद केजरीवाल ने चुनाव लडा तो उन्हें भली-भांति ज्ञात था कि देहली के पास सीमित अधिकार हैं तथा उसको समझते हुए उन्होंने यहां के मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया । तो अब विवाद के लिए स्थान कहां है ? हालांकि यह स्वाभाविक राजनैतिक और मानवीय प्रक्रिया है कि कोई व्यक्ति जहां रहता है वह अपने अधिकार क्षेत्र को अधिकाधिक बढाना चाहता है । देहली के मुख्यमंत्री अपने अधिकारों को बढाने की बात कर रहे हैं तो यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है; परंतु इसके साथ-साथ यह भी सर्वविदित है कि देहली के मुख्यमंत्री राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के कारण भी अनेक विषय उठाते हैं । उनके द्वारा उठाए गए अधिकारों के ये प्रश्न भले ही उचित हों, किंतु अधिकांश लोग इसे एक राजनीतिक चाल के तौर पर देखते हैं ।’
६. केंद्र सरकार द्वारा देहली का शासन चलाने से होगी सहस्रों करोड रुपए की बचत !
‘स्वतंत्र राजनैतिक विश्लेषकों का कहना यह है कि देहली जैसे अति संवेदनशील शहर की बागडोर किसी मुख्यमंत्री को नहीं देनी चाहिए । देहली भारत की राजधानी है तथा यहां पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्र सरकार के अतिरिक्त पूरे विश्व के देशों के राजदूतावास, उच्च आयोग तथा विश्व स्तर की अनेक संस्थाओं के शाखा कार्यालय अथवा मुख्यालय हैं । ऐसी स्थिति में एक प्रदेश के मुख्यमंत्री को इस प्रदेश अथवा इस राजधानी नगर की बागडोर देना उचित नहीं है । देहली एक ‘नगर राज्य’ (city state) है, इसका प्रशासन सिंगापुर की तरह एकल सरकार के पास ही होना चाहिए । अनेक लोग तो यह प्रश्न भी उठाते हैं कि देहली को राज्य का स्तर देने की आवश्यकता ही क्या थी ।
जिस तरह से चंडीगढ का प्रशासन है (चंडीगढ का प्रशासन एक उत्तम प्रशासन है) तथा लेफ्टिनेंट गवर्नर के माध्यम से केंद्र सरकार उसका प्रशासन चलाती है, उसी प्रकार से देहली को भी केंद्र सरकार द्वारा लेफ्टिनेंट गवर्नर अर्थात उप राज्यपाल के माध्यम से प्रशासित किया जाना चाहिए । शेष नागरिक सुविधाओं का प्रबंधन करने के लिए देहली नगर निगम है । वहां पर उनके चुने हुए प्रतिनिधि अर्थात पार्षद हैं । भूमि, प्रशासन एवं पुलिस जैसे महत्त्वपूर्ण विषय वैसे भी केंद्र सरकार के पास हैं तो देहली में विधानसभा, मंत्रियों एवं मुख्यमंत्री की आवश्यकता ही क्या है ? देहली सरकार का २०२२-२३ का बजट ७५,८०० करोड रुपए का है, जो पूर्ण राज्य का स्तर प्राप्त अनेक राज्यों से अधिक है । इसमें से बहुत बडी राशि मंत्रियों के वेतन, भत्ते, घर, वाहन, विधान सभा को चलाने, साथ ही वहां की नौकरशाही आदि चलाने में व्यय होता है । देहली का राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया जाता है तो सरकार को ही बडी धनराशि की बचत हो जाएगी । अनेक राजनीतिक विश्लेषक इस बात से सहमत हैं कि देहली में राज्य सरकार की आवश्यकता ही नहीं है अत: देहली का स्तर २ दिसंबर १९९३ के पूर्व जो था वही कर दिया जाना चाहिए ।’
– मेजर सरस त्रिपाठी (निवृत्त), लेखक एवं प्रकाशक, उत्तर प्रदेश. (११.८.२०२३)