नम्र, मृदूभाषी एवं साधकों की प्रेमपूर्वक चिंता करनेवाले सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी !
हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी का निवास वाराणसी सेवाकेंद्र में है । वहां के साधकों को सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी से सीखने मिले सूत्र एवं उन्हें हुईं अनुभूतियां आगे दी गई हैं ।
१. कु. सुमन सिंह (आध्यात्मिक स्तर ६४ प्रतिशत)
१ अ. सद्गुरु नीलेशजी ने ‘परिणामकारी एवं भावपूर्ण सेवा कैसे करें ?’ इस विषय में कहना : ‘सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी द्वारा ‘प्रत्येक कृत्य उचित प्रकार से कैसे करें ?, यह सीखने को मिलता है । सत्संग में प्रार्थना की जाती है अथवा भावप्रयोग लिए जाते है । इस विषय में विशद करते हुए वे कहते है, ‘‘प्रार्थना करते समय अथवा भाववृद्धि के प्रयोग लेते समय बहुत ही लंबे एवं अनावश्यक वाक्य नहीं होने चाहिए । छोटे छोटे; परंतु परिणामकारक एवं भावपूर्ण वाक्यरचना करनी चाहिए । प्रार्थना कहते समय बीचमें थोडा रुककर प्रार्थना कहें । तब ‘सत्संग में उपस्थित साधक भी वह प्रार्थना बोल सकेंगे’, ऐसा विचार करें ।’’
१ आ. सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी के कपडे धोना एवं इस्त्री करना, ये सेवाएं ६ माह करने के उपरांत अंतर्मुखता बढकर वृत्ति शांत एवं स्थिर होना : एक बार मुझे छः माह के लिए सद्गुरु नीलेशजी के कपडे धोना एवं इस्त्री करने की सेवा मिली थी । यह सेवा करते समय मेरे द्वारा गुरुदेवजी का अखंड स्मरण होता था । उस समय मुझे अपनी वृत्ति शांत, स्थिर एवं अंतर्मुख हो गई हो, ऐसा लग रहा था । सामान्य की तुलना में इस काल में मेरी सेवा एवं विचार करने की वृत्ति में भी वृद्धि हुई थी ।’
२. श्री. नीलय पाठक
२ अ. नम्र एवं मृदूभाषी साथ ही प्रसंग के अनुरूप कठोर होना : ‘सद्गुरु नीलेशजी जितने सौम्य, निर्मल, नम्र एवं मृदूभाषी हैं, उतना ही उनमें क्षात्रतेज भी हैं । किसी भी कठिन परिस्थिति में वे दृढता से खडे रहते हैं ।
२ आ. वाराणसी धर्मसंघ के महामंत्री पाण्डेय महाराजजी द्वारा ‘सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी के विषय में उच्चारित गौरवोद्गार ! : वर्ष २०१७ में वाराणसी के धर्मसंघ के महामंत्री जगजीतन पाण्डेय महाराजजी को ‘सद्गुरु नीलेशजी संतपद पर बिराजमान हुए हैं’, ऐसा बताया था । तब महाराजजी ने कहा, ‘‘सद्गुरु नीलेजी का बोलना कितना नम्र एवं सौम्य हैं । वे पूर्व से संत ही हैं !’’
३. श्री. चंद्रशेखर सिंह
कोरोना के संक्रमण के समय में साधकों की प्रेमपूर्वक चिंता की ।
(सभी लेख के दिनांक ६.७.२०२२)
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक |