चीनी (फेंगशुई) वास्तुशास्त्र अच्छा अथवा भारतीय वास्तुशास्त्र श्रेष्ठ ?
१. ‘फेंगशुई’ में सतत विविध प्रयोग करने पडते हैं
१ अ. प्रत्येक २ वर्षाें में परिवर्तन करने के लिए बताया जाना : ‘फेंगशुई’ में निश्चित नियम अथवा निश्चित उत्तर नहीं, साथ ही स्थायी निर्णयात्मक रचना भी नहीं है । प्रत्येक व्यक्ति, कुटुंब, घर, वर्ष एवं क्रमांक के अनुसार सब कुछ सतत परिवर्तनशील रचना ! इस वर्ष जो रचना की है, दो वर्षाें के उपरांत उसका लाभ नहीं होगा; अर्थात २ वर्षाें में पुन: रचना में परिवर्तन करें । अर्थात चित्र, फर्नीचर, दर्पण, डेकोरेशन, दरवाजों की रचना, पार्टिशन इत्यादि सभी में पुन: परिवर्तन करें । प्रत्येक २ वर्ष में सब कुछ परिवर्तित करवानेवाला यह कैसा शास्त्र है ! ऐसा भी नहीं कि पुन: घर के सभी व्यक्तियों को समान लाभ मिलेगा ही । निरंतर केवल प्रयोग करते रहना है ।
१ आ. सतत परिवर्तन करने के पश्चात भी कोई लाभ न मिले, तो पुन: आरंभ की ही रचना करने के लिए बताएं : चीनी वास्तुशास्त्र समान परिवर्तन करें । इससे कुछ लाभ ध्यान में न आए, तो ३ सप्ताह उपरांत अन्य प्रकार की रचना करें । यदि इस रचना के कारण कुछ बुरे अनुभव आएं, तो पुन: पहले समान रचना करें । पुन: ३ सप्ताह रुकें । कुछ अंतर ध्यान में न आए, तो पहले समान रचना करें, तो भी यदि पहले की तुलना में कुछ लाभ न हो, तो आपके घर में आरंभ में जैसी रचना थी, वैसी कर सुख से रहें ।
२. भारतीय वास्तुशास्त्र में निश्चित नियम होना
भारतीय वास्तुशास्त्र में निश्चित नियम हैं । ये नियम किसी भी व्यक्ति, कुटुंब एवं घर के लिए समान रूप से ही लागू हैं । पुन: पुन: रचना में परिवर्तन करने की थोडी भी आवश्यकता नहीं । ‘अच्छे अथवा अनिष्ट परिणाम किस कारण होते हैं ?’, यह भी स्पष्ट रूप से बताया है । व्यय (खर्च) करना हो, तो एक बार ही करें । प्रत्येक २ वर्ष में व्यय करने की आवश्यकता नहीं । भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमानुसार रचना करने से लाभ होगा; परंतु हानि १०० प्रतिशत नहीं ।
३. चीनी वास्तुशास्त्र में उनके द्वारा बनाई गई विविध वस्तुओं की विक्री की जाना
विचित्र वस्तुओं की बिक्री ‘फेंगशुई’ की प्रमुखता है । चीनी वास्तुशास्त्र के जो ‘तथाकथित विशेषज्ञ’ हैं, वे सदैव भिन्न-भिन्न वस्तुओं का उपयोग करने के लिए कहते हैं; क्योंकि वे वस्तुएं सदैव उनके पास उपलब्ध होती हैं । उन वस्तुओं की विक्री करना, ‘फेंगशुई’ का मुख्य भाग है । ग्राहक उनकी सामग्री खरीदें; इसलिए उन्हें आकर्षित करने अथवा उनका मन उस ओर मोडने के लिए उपयोग की गई युक्ति होती है । (It has become a marketing gimmick), हांगकांग के एक ‘फेंगशुई’ विशेषज्ञ का ऐसा स्पष्ट मत है ।
४. ऊंचे मूल्यों पर विविध वस्तुओं का विक्रय करना
कुछ वर्ष पूर्व पीतल की रिक्त (खोखली) नलियों (ट्यूबों) से बनी विंडचाइम्स २०-२५ रुपए में मिलती थीं; परंतु अब ये ८५ से ४५० रुपए में बेची जा रही हैं । तीन पैरोंवाले सिक्के के मुंहवाले मेंढक, विविध आकार के ‘क्रिस्टल’, चीनी सिक्के इत्यादि भारी दामों में बेचना ही मुख्य व्यवसाय बन गया है ।
५. १५ से २० दिनों में ‘फेंगशुई’ विशेषज्ञ कैसे तैयार होते हैं ?
किसी भी शास्त्र की पूरी जानकारी हेतु पर्याप्त ज्ञान प्राप्त करने के लिए बहुत कष्ट लेने पडते हैं । इसके बिना उस विषय का ज्ञान आत्मसात नहीं कर सकते । ‘शनिवार एवं रविवार छुट्टी के दिनों में पंचतारांकित ‘होटल’ में जाकर कुछ दिन उस विषय की जानकारी लेना, अर्थात उस विषय का विशेषज्ञ होना नहीं’, ऐसा एक प्रसिद्ध ‘फेंगशुई’ विशेषज्ञ का स्पष्ट मत है । ‘३ सहस्र से लेकर १० सहस्र रुपए तक व्यय कर प्रमाणपत्र (सर्टिफिकेट) मिल गया, अर्थात हम ‘फेंगशुई’ विशेषज्ञ हो गए; परंतु दुर्भाग्य से वैसा नहीं होता । पाश्चात्य ‘फेंगशुई’ विशेषज्ञ ने लिखा है कि अनेक स्थानों पर प्रतिष्ठान एवं समाज की हानि हुई है ।
अपने भारत में किसी भी ‘फेंगशुई विशेषज्ञ के विज्ञापनों में वह क्या-क्या एवं कौन-कौन सी वस्तुएं बेचता है ?’, सर्वप्रथम इसके ही विज्ञापन होते हैं । मासिक में लेख लिखा, तब उसमें भी ‘यह वस्तु मेरे पास उपलब्ध है’, यह वाक्य महत्त्वपूर्ण होता है ।
६. एक ‘फेंगशुई’ विशेषज्ञ कहलवानेवाली महिला द्वारा ‘फेंगशुई’ के टोटकों में भारतीय वास्तुशास्त्र संबंधी उपाय बताना
६ अ. ‘फेंगशुई’ के समाधानों में नंदादीप, रंगोली एवं त्रिशूल अंतर्भूत हैं : वर्तमान में ‘फेंगशुई’ संबंधी अर्थात चीनी वास्तुशास्त्र संबंधी लेख एवं विज्ञापन इतने जोरदार हैं कि एक ‘फेंगशुई’ विशेषज्ञ कही जानेवाली महिला द्वारा लिखे लेख में चक्र, नंदादीप, त्रिशूल, रंगोली इत्यादि उपाय सुझाए गए हैं । ‘चीनी वास्तुशास्त्र में भाग्यवान बनानेवाले २५ सुनहरे मार्ग’ शीर्षक के अंतर्गत उस महिला ने यह लेख लिखा । उस लेख के अंतर्गत सुस्पष्ट अक्षरों में चौखट में विज्ञापन दिया था । विज्ञापन में विविध वस्तुओं की सूची एवं उसके साथ यह भी लिखा था कि ‘ये सभी वस्तुएं हमारे पास उपलब्ध हैं ।’
उस तथाकथित ‘फेंगशुई’ विशेषज्ञ महिला ने जो उपाय सुझाए हैं, उन २५ उपायों में से १४ उपाय शुद्ध भारतीय हैं । मैंने चल-दूरभाष कर उस महिला से पूछा, ‘चीनी लोग त्रिशूल, रंगोली, नंदादीप इत्यादि का उपयोग कब से करने लगे ?’ तब उसने उत्तर दिया, ‘मैंने ‘फेंगशुई’ का ‘कोर्स’ किया है । मैंने जो लिखा है, वह उचित है ।’ अब मैं क्या बोलता ? मेरे पास विदेशी विशेषज्ञों द्वारा लिखी ‘फेंगशुई’ की जो २७ पुस्तकें हैं, मैंने उन्हें पढकर देखा; परंतु मुझे अब तक नंदादीप, त्रिशूल एवं रंगोली का उल्लेख नहीं मिला । इसमें ‘लोगों को भ्रम में डालना’ ही मुख्य उद्देश्य होता है, और कुछ नहीं ।
६ आ. छिद्र युक्त सिक्का अथवा मेंढक क्यों नहीं ?
६ आ १. ऐश्वर्य संपन्न श्री महालक्ष्मी केवल चीनी सिक्कों पर ही प्रसन्न क्यों ? : जिन विविध वस्तुओं का उपयोग चीनी वास्तुशास्त्र में किया जाता है, उसमें कहते हैं, ‘चीनी सिक्के को एक लाल धागे में पिरोकर, उसका उपयोग करने से आर्थिक समृद्धि होती है ।’ मैं भ्रम में पड गया कि ऐश्वर्य संपन्न श्री महालक्ष्मी केवल चीनी सिक्कों पर ही क्यों प्रसन्न हैं ? हमारे पास पहले तांबे के छिद्र युक्त सिक्के थे । अब भी कुछ लोगों के पास वे सिक्के मिल जाएंगे ।
६ आ २. चीनी वस्तुओं पर भारतीयों का पैसे व्यय करना; परंतु अपने ही देवताओं की पूजा करने की मानसिकता न होना : एक फेंगशुई विशेषज्ञ से पूछा, ‘तांबे के छिद्र युक्त सिक्कों का उपयोग करेंगे, तो चलेगा क्या ?’ इस पर वह मुझसे बोला, ‘नहीं । उसके लिए चीनी सिक्का ही लगता है । इसका कारण तो पता नहीं; पर हमारे ‘मास्टर’ ऐसा बताते हैं ।’ अर्थात मूलत: श्री लक्ष्मी एवं कुबेर, ये हमारे भारत के ऐश्वर्य एवं समृद्धि के देवता हैं; परंतु उनकी पूजा एवं प्रतिमा घर में रखकर उसकी पूजा करने के लिए लोगों को समय नहीं; परंतु महंगे चीनी सिक्के खरीदकर उसे लाल धागे में पिरोने के लिए समय है; क्योंकि चीनी सिक्के धन देते हैं !
६ इ. मुंह में सिक्का डाला हुआ महंगा मेंढक पूजना; घर में जीवित मेंढक आ जाए तो उसे मारने की मानसिकता रखना : तीन पैरोंवाला और मुंह में सिक्का लिए मेंढक डेढ हजार रुपए में खरीदकर उसे लोग अपने बैठक कक्ष की टेबल पर रखेंगे; क्योंकि बताते हैं कि उससे आर्थिक लाभ होता है; परंतु अपने बंगले के परिसर में फुदकते हुए मेंढक यदि बैठक कक्ष में आ जाए, तो उसे लाठी से बाहर निकाल देंगे अथवा मारने दौडेंगे । कितना विपर्यास (विरोधाभास) ! वास्तव में अब भी गांव में सुसंस्कृत घरों में शाम के समय मेंढक घर में फुदकता हुआ आ जाए, तो ‘लक्ष्मी आई, कुमकुम दो’, ऐसा कहती हुई घर की महिलाएं उस मेंढक पर कुमकुम डालती हैं; परंतु हम अंधश्रद्धा कहते हुए उस पर प्रहार करेंगे ! हमारी ‘कथनी और करनी’ में कितना अंतर !
७. लकडी मूलभूत तत्त्व कैसे ?
फेंगशुई में लकडी को ५ तत्त्वों में से एक मूलभूत तत्त्व माना गया है । ‘लकडी मूलभूत तत्त्व कैसे हो सकती है ?’, मिट्टी, पानी एवं अग्नि आदि मूलभूत तत्त्व हैं । लकडी बनाने के लिए मूलतः वृक्ष होने चाहिए । यह वृक्ष उत्पन्न होने के लिए बीज चाहिए । वह अंकुरित होकर उसका वृक्ष अर्थात लकडी बनती है । मिट्टी किसी वस्तु से नहीं बनती, उसका अस्तित्व ही है । पानी भी पहले से ही है; परंतु लकडी का वैसा नहीं है । वृक्ष नहीं होगा, तो लकडी नहीं मिलेगी एवं बीजांकुर के बिना वृक्ष नहीं । जिसका अस्तित्व दूसरे पर निर्भर है, वह मूलभूत तत्त्व हो ही नहीं सकता; परंतु चीनी तत्त्ववेत्ता ‘कन्फ्यूशियस’ ने उसकी कल्पना के अनुसार मूलभूत तत्त्व बताए एवं तब से ही उनपर कार्रवाई होने लगी ।
८. कुछ राजाओं द्वारा उनकी बौद्धिक क्षमता के अनुसार किया जाना, उसमें निश्चित तत्त्व ऐसा कुछ न होना
ईसवी सन ६७२ पूर्व काऊ नामक राज्यशासन में एवं पश्चात राजा वॉन एवं राजकुमार टॅन ने उनकी बौद्धिक क्षमता के अनुसार अलग-अलग अर्थ निकाले । उसके अनुसार ८ प्रकार की रेखांकित आकृतियां बनाईं । तत्पश्चात वे ६४ हुईं एवं फिर उनके अलग अलग अर्थ निकालना प्रारंभ हुआ । उसके पीछे निश्चित तत्त्व कुछ नहीं है । ये रेखाएं किसने बढाईं, इसका अता-पता नहीं है । ‘६४ क्यों ? १२८ क्यों नहीं ?’, इसका भी उत्तर नहीं है ।
९. वर्तमान में चीनी वस्तुओं का महत्त्व बढना
९ अ. प्रारंभ में ७ प्रकार की वस्तुएं थीं अब उनमें वृद्धि होना : वर्ष १९६० से ८० की अवधि में अलग-अलग चीनी वस्तुएं उपायस्वरूप ७ प्रकार की थीं; परंतु उन वस्तुओं की वृद्धि सहित मूल्य में भी वृद्धि हुई, उदा. पहले पीतल की खोखली नलियों का विंडचाईम था । अब प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग परिवर्तन करने लगा है । ९ खोखली नलियां, ७ मोटी नलियां एवं ४ खोखली नलियां, नीचे लटकता हुआ लोलक अथवा गोल चक्रिका आदि अनेक प्रकार के विंड चाइम मिलते हैं । कुछ में पीतल की तार, कुछ में लाल धागा तथा कुछ में लाल एवं पीला धागा आदि ।
९ आ. ‘मेंढक कहां रखें ?’, इस संबंध में भी निश्चिति न होना : ‘मेंढक कहां रखें ?’, इस संबंध में भी निश्चिति नहीं है । कुछ लोग कहते हैं, ‘द्वार के सामने रखें’; कुछ कहते हैं, ‘छोटी टेबल पर रखें’; कुछ लोगों का कहना है, ‘कोने में रखें’; जिससे वह देखेगा कि ‘पैसे आ रहे हैं कि नहीं ?’ वाह क्या परामर्श है । एक जन कहता है, ‘दिन के समय द्वार की ओर मुख कर रखें एवं रात्रि में उसका मुख घर के भीतर की ओर रखें । कहते हैं ९ मेंढक रखना अच्छा होता है । एक ने घर में नेवला रखने के लिए कहा है । सफेद बाघ रखें, जिससे वह आपको धैर्य देगा । कहते हैं बालकों के जन्मदिन न मनाएं, वह बुरा होता है । केवल वृद्ध व्यक्तियों के ६० वर्ष की आयु के पश्चात जन्मदिन मनाने चाहिए’, ऐसा फेंगशुई विशेषज्ञों का कहना है । १० वें शतक में लुईहाइ नामक एक मंत्री ने ३ पैरों के मेंढक की नई बात निकाली; क्योंकि वे बोले कि वह प्रत्यक्ष (डायरेक्ट) आकाश से गिरा है ।
९ इ. पुरुष अपने कक्ष के कोने में लाल चोंचवाली मुर्गी रखे एवं महिला हो, तो वह उसके कक्ष के कोने में मुर्गा रखे ।
९ ई. हेन राज्यकर्ताओं द्वारा निकाले सिक्के गले में बांधने के लिए कहना : ईसवी सन पूर्व २०६ वें में वर्ष हेन राज्यकर्ताओं ने जो सिक्के निकाले, वे ९ सिक्के गले में बांधने से बहुत संपत्ति मिलती है, ऐसा कहना है ।
उक्त सर्व प्रकारों को आज इन सुशिक्षित उच्च एवं उच्च मध्यमवर्गीय लोगों को विज्ञापन के कारण मान्यता प्राप्त होती है । प्रत्यक्ष में क्या हुआ है ?, यह वे ही जानें; परंतु पैसे खर्च कर वस्तुओं की खरीदारी चल रही है । ऐसे अनेक प्रकार आजकल चीनी वास्तुशास्त्र के नाम पर देखने को मिलते हैं ।
१०. भारतीय पद्धति के चिन्ह, प्राणि एवं रीतिरिवाजों का उपयोग दिखाई देना
अभी की पुस्तकों में तो चीनी वास्तुशास्त्र के नाम पर सीधे भारतीय पद्धति के चिन्ह, प्राणी एवं रीतिरिवाजों का उपयोग होता दिखाई देता है । भारतीय वास्तुशास्त्र में जिस प्रकार हजारों वर्ष पूर्व लिखकर रखा है कि ‘जो सुमंगल, नयनरम्य चित्र लगे, वह घर में लगाएं । युद्ध का दृश्य अथवा हिंस्र पशुओं के चित्र आदि न लगाएं । ठीक ये ही बातें आजकल की फेंगशुई की पुस्तकों में दिखाई देती हैं । एक पुस्तक में तो गाय का चित्र अच्छा होता है, यह लिखा है ।
भारतीय वास्तुशास्त्र में जो बताया है, तब किसी ने नहीं सुना । छोटे बच्चों के गले में अभिमंत्रित काला धागा अथवा किसी देवता का पदक पहनाने के लिए कहा जाता था । यह हमारे लोग नहीं मानते । उनका उपहास करते हैं; परंतु अब छोटे बच्चों के गले में चीनी सिक्के धागे में बांधने के लिए तैयार रहते हैं ।
११. भारतीय वास्तुशास्त्र की श्रेष्ठता
११ अ. तुलनात्मक रूप से भारतीय वास्तुशास्त्र श्रेष्ठ होना : तुलनात्मक दृष्टि से दोनों शास्त्रों का अध्ययन करने पर अंत में भारतीय वास्तुशास्त्र ही सर्वाेपरि श्रेष्ठ दिखाई दिया । हजारों वर्ष पूर्व जो नियम भारतीय वास्तुशास्त्र में बताए गए हैं, वे ही आज सर्वत्र लागू हैं तथा भविष्य में भी वे ही अस्तित्व में रहनेवाले हैं । वे नियम शाश्वत हैं, चिरंतन हैं; क्योंकि वह ज्ञान है । पृथ्वीतल के किसी भी मनुष्य के लिए वे लागू हैं । किसी भी प्रकार के घर में वे लागू हैं । किसी भी वर्ष वे ही नियम सटीक लागू होंगे । वर्ष के अनुसार घर की रचना में परिवर्तन नहीं करना पडता । ‘घर के द्वार के समान फर्नीचर, रंग एवं रचना परिवर्तित नहीं करनी पडती । घर में कितने भी लोग हों, नियम वे ही रहते हैं । परिवार के प्रत्येक व्यक्ति की जन्म दिनांक के अनुसार घर के कक्षों की रचना निरंतर परिवर्तित नहीं करनी पडती ।
११ आ. वास्तुशास्त्र के नियमानुसार भवन निर्माण करने से उसका लाभ होना : वास्तुशास्त्र के नियमानुसार नया भवन निर्माण करने से सदैव आनंद ही मिलेगा । अधिकाधिक आनंद, स्वास्थ्य, समाधान समृद्धि प्राप्त करनी हो, तो अलग-अलग अच्छे ढंग से घर सुशोभित कर सकते हैं; परंतु न करने पर हानि नहीं होती । इतना ही नहीं आज हम जिस स्थान पर रह रहे हैं, उसी रचना में थोडा-बहुत परिवर्तन करने से अच्छे फल मिल सकते हैं । ‘अधिक तोडफोड करनी पडती है, अधिक व्यय करना पडता है’, ऐसा भ्रम फैलाया गया है । जिस शास्त्र में ईश्वर को स्थान नहीं है, वह चीनी वास्तुशास्त्र अच्छा है कि हमारा भारतीय वास्तुशास्त्र अच्छा है ? यह प्रत्येक को निश्चित करना है । ‘भारतीय वास्तुशास्त्र में पहले मंदिर तत्पश्चात शेष रचना होती है । कोई भी भारतीय मनुष्य सब कुछ पढने एवं समझने के पश्चात यही कहेगा कि भारतीय वास्तुशास्त्र अच्छा है, सर्वाेत्कृष्ट है । इसकी मुझे निश्चिति है ।’
– अधिवक्ता अरविंद वझे
(सौजन्य : ‘आध्यात्मिक ॐ चैतन्य’, मई २००४)