दूध एवं दुग्धजन्य पदार्थ : उनके लाभ, मान्यताएं एवं अनुचित धारणाएं
अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों के प्रति अनगिनत चिंतायुक्त विचार एवं समस्याएं लेकर आते हैं, जैसे ‘डॉक्टर देखिए न, ये दूध ही नहीं पीता है । यदि दूध नहीं पीएगा, तो उसे ‘कैल्शियम’ कैसे मिलेगा ? इसकी हड्डियां कैसे सुदृढ (मजबूत) होंगी ? उसके दांत कैसे सुदृढ होंगे ?’ आरंभ में बच्चे दूध पीते हैं । समय के साथ धीमे-धीमे दूध पीना छोडते जाते हैं । ‘यह ठीक से भोजन नहीं करता’, ऐसी भी समस्याएं रहती हैं । ऐसे में ‘थोडे दिनों के लिए दूध न दें’, इस प्रकार अभिभावकों को कहना पडता है । इसका कारण यह है कि किस प्रकार का दूध बच्चे पी रहे हैं ? कितनी मात्रा में पी रहे हैं ? क्या उसका पाचन ठीक से हो रहा है ? ये बातें ध्यान नहीं रखी जातीं एवं बच्चों को साम, दाम, दंड, भेद कर, बलपूर्वक दूध दिया जाता है । वह दूध पचने की अपेक्षा बच्चों में अपचन करता है । आयुर्वेद के अनुसार यदि कोई पदार्थ हम उचित पद्धति से पचा सकते हैं, तभी शरीर पर उसका अच्छा परिणाम दिखाई देगा । यही नियम दूध पर भी लागू है । हम किस प्रदेश में रहते हैं, अर्थात शुष्क जलवायु (ड्राई वेदर) क्षेत्र हो अथवा आर्द्र जलवायु क्षेत्र (कोल्ड वेदर), इसके अनुसार भी हमें कितना एवं कैसा दूध पीना चाहिए ? यह समझना आवश्यक है । आज के इस लेख में हम दूध एवं दुग्धजन्य पदार्थाें के संदर्भ में जानकारी लेंगे ।
१. दूध
अ. दूध के गुणधर्म : दूध स्वाद में मधुर, शक्तिवर्धक, हमारे शरीर की धातु को बढानेवाला, वायु-पित्त अल्प करनेवाला, कफ बढानेवाला, पचने में भारी एवं शीत है । दूध में गाय का दूध सर्वश्रेष्ठ माना गया है । भैंस का दूध गाय के दूध की अपेक्षा पचने में अधिक भारी एवं शीत होता है । यदि दूध पीना ही है, तो देसी गाय का पीएं । गाय का दूध छोटे-बडे, सभी के लिए पथ्यकारी होता है ।
आ. शुष्क जलवायु में रहनेवाले लोगों को दूध सरलता से पचता है । आर्द्र वातावरण में रहनेवाले लोगों को दूध पचने में समय लगता है ।
इ. दूध पीने के उपरांत २-३ घंटे कुछ भी न खाएं । दूध के साथ फल सेवन न करें ।
ई. यदि रात्रि में दूध पीना चाहते हैं, तो रात्रि का भोजन पचने के उपरांत पीएं; परंतु भोजन करने में देर हुई है एवं सोते समय दूध पीने से वह नहीं पचता ।
उ. कभी भी दूध का प्रयोग बिना गरम किए न करें । वह पचने में अधिक भारी होता है । वर्तमान में युवकों में ‘कोल्ड (ठंडी) कॉफी’ पीने की मात्रा अधिक दिखाई देती है । यह कॉफी दूध की थैली काटकर, तथा बिन गरम हुआ (कच्चा) दूध लेकर मिक्सर में बनाई जाती है । बारंबार ऐसी कॉफी पीने से स्वास्थ्य की समस्याएं होंगी ही ।
ऊ. दूध को अधिक देर तक उबालने से भी वह पचने में भारी होता है । इसलिए बासुंदी, रबडी जैसे मिष्टान्न पचने में अधिक ही भारी होते हैं ।
ए. हम जहां रहते हैं, वहीं आसपास में ग्वाला ढूंढकर देसी गाय का शुद्ध दूध पीएं । मिलावट किए दूध से लाभ की अपेक्षा हानि ही अधिक होती है । यदि गाय का दूध उपलब्ध नहीं है, तो भैंस के दूध में पानी मिलाकर एवं उसमें थोडी सोंठ तथा हलदी मिलाकर पीने से वह उचित पद्धति से पचेगा ।
ऐ. ‘भरपूर दूध पीने से बहुत मात्रा में कैल्शियम मिलता है’, अभिभावक अपने मन से यह नासमझी निकाल दें । यदि दूध शुद्ध है एवं बच्चों को उचित पद्धति से पचता है, तभी उसका लाभ दिखाई देगा । यदि बच्चे को दूध पचता नहीं है, तो कैल्शियम के स्रोतयुक्त अन्य अन्नपदार्थ बच्चों को दे सकते हैं । उदा. सहजन, रागी, बादाम, सूखा अंजीर, तिल इत्यादि ।
२. दही
अ. दही भी पचने में भारी, परंतु उसका गुणधर्म उष्ण है । भोजन में दही रुचि उत्पन्न करनेवाला एवं कफ-पित्त बढानेवाला है ।
आ. दही का सेवन रात्रि में कभी न करें । यदि खाना चाहें, तो दिन में खा सकते हैं; परंतु वसंत, ग्रीष्म एवं शरद ऋतु में दिन में भी न खाएं ।
इ. दही को कभी भी गरम नहीं करना चाहिए । आधा-अधूरा जमा हुआ दही भी न खाएं ।
ई. उपरोक्त नियम का पालन किए बिना दही खाने से वह विविध त्वचा विकार निर्माण करता है ।
३. छाछ
अ. छाछ पचने में हलकी, वायु-कफ अल्प करनेवाली एवं पाचनशक्ति बढानेवाली है ।
आ. दही मथने का संस्कार होने से छाछ के गुणधर्म दही की अपेक्षा भिन्न हैं ।
इ. यदि पाचन की समस्या है, तो छाछ में थोडा हींग, जीरा पाउडर एवं काला नमक अथवा सेंधा नमक डालकर पीने से ठीक लगता है ।
४. मक्खन
अ. ताजा मक्खन भी शीत गुणधर्म का एवं शक्ति प्रदान करनेवाला, साथ ही पाचनशक्ति बढानेवाला है । आधुनिक शास्त्र के अनुसार मक्खन एवं घी में चरबीयुक्त पदार्थ होते हुए भी उचित मात्रा में सेवन करने से स्वास्थ्य के लिए हितकारी होते हैं ।
आ. प्रतिदिन एक चम्मच मक्खन खाने से हाथ-पांव की जलन, पित्त की वृद्धि होना जैसी समस्याएं न्यून (कम) होती हैं । बाल्यावस्था में बच्चों को मक्खन एवं मिश्री (चीनी) देने से उचित मात्रा में वजन बढकर उनका शरीर सुडौल होता है । मक्खन के कारण वजन बढकर शरीर पुष्ट (अच्छा) होता है तथा हड्डियां सुदृढ (मजबूत) होती हैं ।
इ. हाट में मिलनेवाला मक्खन मिलावटी होता है । इस कारण वह स्वास्थ्य के लिए घातक होता है । साथ ही हाट में मिलनेवाला मक्खन बिना गरम किए हुए दूध मलाई (क्रीम) से बनाया होता है, इसलिए वह पचने में भारी होता है । इसलिए घर में बनाया ताजा मक्खन ही उपयोग में लाएं ।
ई. हाट में बटर (मक्खन) के नाम से ‘मार्जरीन’ (Margarine) जैसा पदार्थ विक्रय करते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । मक्खन की अपेक्षा बहुत ही सस्ता होने के कारण उपाहार गृह में इसी का प्रयोग अधिक मात्रा में होता है । इस कारण ‘कोलेस्ट्रौल’ (लहू का एक घटक) बढना, हृदय विकार एवं कर्करोग जैसी गंभीर बीमारियां होने की संभावना रहती है ।
५. घी
अ. घी स्वास्थ्य की दृष्टि से अति उत्तम है । वह बुद्धि, स्मृति, पाचनशक्ति बढानेवाला तथा त्वचा चमकीली बनानेवाला, बच्चों से लेकर वयोवृद्ध, सभी को शक्ति प्रदान करनेवाला है ।
आ. आधुनिक दृष्टि से भले ही घी में संतृप्त चरबी हो, तब भी प्रतिदिन के भोजन में २ चमच घी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है ।
इ. घी बनाने की बहुत सी पद्धतियां हैं । उनमें से अधिकांश गृहिणियां मलाई संग्रह कर घी निकालती हैं । ८ से १५ दिनों तक प्रतिदिन मलाई निकालकर उसे फ्रिज में रखा जाता है । कभी-कभी वह कडवी भी हो जाती है । ऐसी मलाई से निकाला हुआ घी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है । मलाई में आरंभ से ही छाछ डालकर जमाने की प्रक्रिया कर प्रतिदिन उसमें मलाई डालें । छाछ के होने से मलाई खराब नहीं होगी एवं घी भी अच्छी पद्धति से मिलेगा । इस प्रकार घर पर बनाया घी प्रतिदिन २-३ चमच भोजन में लें ।
ई. मिलावटी घी तथा वनस्पति घी (डालडा) स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । घी में देसी गाय का घी सर्वश्रेष्ठ है ।
उ. रात्रि सोते समय गुनगुने पानी के साथ एक चमच घी लेने से पेट साफ होता है ।
– वैद्या (श्रीमती) मुक्ता लोटलीकर, पुणे, महाराष्ट्र. (३१.७.२०२३)