विविध आपातकालीन प्रसंगों में किए जानेवाले प्राथमिक उपचार एवं अन्य उपाययोजना
विषबाधा
‘कौनसा विष रोगी के पेट में है’, इसकी जानकारी पाने का प्रयत्न करें । उस विष की जानकारी देनेवाला पत्रक उपलब्ध हो, तो उसे पढें । पत्रक द्वारा उस विषसे बाधा होने पर किए जानेवाले उपचारों की जानकारी मिल सकती है ।
१. विष सेवन के उपरांत स्वास्थ्य संबंधी किस प्रकार की समस्याएं आरंभ हुई हैं, यह रोगी से पूछें ।
२. रोगी ने विषसेवन किया है, यह ३० मिनट में ही पता चला हो और वह विष छीलने जैसा अथवा जलन करनेवाला (करोसिव) विष नहीं है, इसका निश्चित प्रमाण मिला हो, तो रोगी से उलटी करवाएं । उलटी होने के लिए रोगी के गले के पीछे की ओर चम्मच से गुदगुदी करें अथवा उसे दो चम्मच नमक मिला हुआ एक प्याला गुनगुना पानी पिलाएं ।
३. रोगी से उलटी करवाना संभव न हो, तो उसके पेट में गया विष पाचनतंत्र द्वारा शरीर में अवशोषित होने का वेग मंद करने के लिए आगे दी कोई भी एक क्रिया करें ।
अ. रोगी को बहुत ठंडा पानी (यथा संभव बर्फ का पानी) पिलाएं ।
आ. रोगी को एक प्याला नारियल पानी पिलाएं ।
इ. रोगी को एक ग्लास दूध पिलाएं ।
ई. एक कच्चा अंडा फोडकर उसकी जरदी पानी में घोलकर वह पानी रोगी को पिलाएं ।
सर्पदंश
१. ऊंची घास में दंश हुए अथवा अन्य उबड-खाबड स्थान से रोगी को निकट के खुले और सुरक्षित स्थानपर ले जाएं ।
२. रोगी के पैर पर दंश हुआ हो, तो उसे चलने के लिए न कहें ।
३. रोगी को भूमि पर अथवा पलंग पर लेटने के लिए कहें अथवा लिटाएं ।
४. रोगी को मानसिक आधार दें ।
५. रोगी के हाथ पर सर्पदंश हुआ हो, तो उसके हाथ की अंगूठी, घडी, चूडियां तथा पैर में सर्पदंश हुआ हो, तो पादत्राण, बिछिए, पायल आदि वस्तुएं निकालकर उसके संबंधियों को दें; क्योंकि दंश हुआ भाग सूज जाए, तो ऐसी वस्तुओं के कारण रोगी की समस्याएं और बढ जाती हैं ।
६. सर्पदंश हुए अवयव की गतिविधियां न होने दें । रोगी को भी ऐसी गतिविधि न करने के लिए कहें ।
७. सर्पदंश के कारण हुए घाव पर कीटाणुरहित गॉज ड्रेसिंग (वह उपलब्ध न हो, तो सादा ड्रेसिंग, रुमाल आदि) रखकर वहां चिपकनेवाली पट्टी लगाएं ।
८. हाथ अथवा पैर में सर्पदंश हुआ हो, तो उस अवयव के दंश हुए स्थान के दोनों ओर के जोडों की गतिविधि रोकने हेतु, सम्बन्धित अवयव को पैर में खपच्ची बांधें ।
९. रोगी को सोने न दें । वह सो जाए, तो उसके लक्षणों में अथवा उसके कष्ट में होनेवाले परिवर्तन ध्यान में नहीं आएंगे ।
१०. प्राथमिक उपचार करने में अधिक समय न गंवाते हुए रोगी को शीघ्रता से सर्पदंश विषरोधक टीका उपलब्ध रहनेवाले चिकित्सालय में भेजें । रोगी को चिकित्सालय में ले जाते समय उसके सर्पदंश हुए अवयव को हृदय के स्तर से नीचे रखने का प्रयास करें ।
उच्च दबाव का बिजली का झटका लगना
ऊंचाई पर लगे बिजली के तारों से उच्च दबाव में बिजली का प्रवाह (हाइ वोल्टेज करंट) बहता है । बिजली का यह प्रवाह अत्यंत घातक होता है । इन तारों के सपर्क में आया व्यक्ति गम्भीर रूप से जल सकता है । उसके शरीर के स्नायु ऐंठ जाने के कारण वह दूर फेंका जा सकता है तथा उसकी हृदयक्रिया और श्वसनक्रिया बंद पड सकती है ।
१. बिजली का प्रवाह बंद अथवा खण्डित होने का निश्चित रूप से पता चलने तक दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के निकट न जाएं । (उच्च दबाव के बिजली के तारों से न्यूनतम १८ मीटर दूर रहें; क्योंकि उच्च दबाव की तारों में प्रवाहित बिजली १८ मीटर दूर खडे व्यक्ति को खींच सकती है ।)
२. बिजली का प्रवाह बंद अथवा खण्डित होने का निश्चित रूप से पता चलने पर रोगी का परीक्षण करें ।
३. रुग्णयान बुलाकर रोगी को चिकित्सालय भेजें ।
वेल्डिंग करते समय आंखें जल जाने पर किए जानेवाले प्राथमिक उपचार
वेल्डिंग करते समय आंखें जल जाएं, तो तीव्र वेदना होती है । वेल्डिंग की चिंगारियों में पराबैंगनी (अल्ट्रा-वॉयलेट) किरणें होती हैं । उनसे आंखों का संपर्क होने पर रोगी की दृष्टि भी प्रभावित हो सकती है ।
१. पानी में भिगोई हुई कपडे की पट्टी अथवा रुमाल रोगी की जलती आंखों पर रखें ।
२. रोगी को तत्काल नेत्ररोग विशेषज्ञ के पास भेजें ।
बचाव का उपाय : वेल्डिंग करते समय वेल्डिंग शील्ड (welding shield) का उपयोग करें ।
श्वान (कुत्ता) काटना
१. कुत्ते के काटने पर जब तक यह निश्चित रूप से सिद्ध नहीं होता कि ‘वह पागल नहीं है’; तब तक ‘पागल कुत्ते ने काटा है’, ऐसा मानकर सभी प्राथमिक उपचार करें ।
२. रोगी का घाव तत्काल साबुन से (उपलब्ध हो, तो ‘लाइफबॉय’ जैसे ‘कार्बाेलिक’ अम्लयुक्त साबुन से) हलके से धोएं । तदुपरांत घाव पर न्यूनतम १० मिनट तक पानी की धार छोडकर घाव धोएं । कुत्ते के काटने पर रोगी का घाव शीघ्रातिशीघ्र धोना होता है । ऐसा करने पर दंश से घाव में गए विषाणु शरीर के बाहर निकल जाते हैं और उन्हें शरीर में फैलने का अवसर नहीं मिलता । घाव धोने में देरी हो जाए, तब भी घाव धोएं । इससे घाव में बचे कुछ विषाणु तो शरीर से बाहर निकल जाते हैं ।
३. रोगी का घाव धोते समय घाव को अपने हाथों का स्पर्श न हो, इसकी सावधानी रखें । (घाव को स्पर्श करना ही हो, तो एकल प्रयोज्य (डिस्पोजेबल) हस्तत्राण पहनें ।)
४. रोगी के घाव को मिट्टी, मिरची इत्यादि न लगने दें ।
५. अगले उपचारों के लिए रोगी को शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सालय भेजें ।