विध्वंसक चीन !
अस्तित्व मिटते जा रहे तिब्बट को सर्वंकष स्वातंत्र्य प्राप्त कराने की तिब्बटियों की अपेक्षा भारत शासन पूरी करे !
चीन देश मूलत: कुरापाती के रूप में प्रसिद्ध है। प्रत्येक बार कुछ न कुछ षड्यंत्र रचकर दूसरोंपर अन्याय करना और स्वयं को बलाढ्य देश के रूप में दिखाते फिरना,इस के लिए विविध क्लृप्तियां उससे रची जाती हैं। अपनी संस्कृित सर्वत्र जमाने के लिए चीन आग्रही रहता है; इसीलिए तो चीन अब तिब्बट में प्राथमिक शिक्षा से ही चिनी भाषा सिखाना अनिवार्य कर रहा है। ४ से ६ वर्ष आयु के बच्चों को बलात् निवासी विद्यालय में डाला जा रहा है। तिब्बटी संस्कृति और जीवनशैली से वहां केविद्यार्थियाें को दूर रखना और हिंसक चिनी संस्कृति आत्मसात् करने उन्हें सिखाना, इसके लिए चल रहा है यह चीन का घटाटोप ! पहले ही चीन ने तिब्बट पर अवैध रीति से नियंत्रण पाया है। अब शैक्षिक दबावतंत्र के द्वारा तिब्बट की बचीखुची पहचान मिटाने का प्रयास चीन कर रहा है। ‘प्राथमिक शिक्षा से ही विद्यार्थियों पर यदि चिनी भाषा सीखने की कठोरता हो रही हो, तो ‘एकप्रकार से तिब्बटी संस्कृति नष्टसी ही हुई है’ ऐसा कह सकते हैं। चीन ने तिब्बट के धर्मगुरु लामा नियुक्त करने की परंपरा खंडित कर वहां चिनी संस्कृति के लामा नियुक्त करने का वृत्त है। तिब्बटी लोगों को अल्पसंख्य कर वहां चिनी नागरिकों को बहुसंख्य करना, यह दांव भी चीन रच रहा है। तिब्बटियों के लिए वंदनीय रहनेवाले दलाई लामाका नागरिकाें के घर में लगाया छायाचित्र भी चिनी पुलिस से नष्ट किया जाता है। अपने देश की संस्कृति जमानेके लिए दूसरी संस्कृित सीमापार करना, यह षड्यंत्र केवल और केवल चीन ही रच सकता है; क्याें कि वह विध्वंसक, हिंसक, अन्यायी और अत्याचारी है। इस के विपरीत तिब्बट की संस्कृित शांति और करुणा सिखाती है। उसे संजोए रखने का प्रयास भी करती है। प्रत्येक तिब्बटी नागरिक संस्कृति, धर्म और अस्मिता बनाए रखने का प्रयास करता है; किंतु चीन आज यह सब उद़्ध्वस्त करने पर तुला है। चीन इतना धूर्त एवं कांइया है कि उसने अपनी चाल यशस्वी होने के लिए ‘शिक्षाव्यवस्था’ को ही युक्ति (ढाल) के रूप में पहचानकर उसे पकडा है; क्योंकि शिक्षा के माध्यम से बहुत सी बातें साध्य की जा सकती हैं । अब अस्तित्व नष्ट हो रहा है, तो तिब्बत ही इसके विरुद्ध बोलकर संस्कृति की रक्षा करे । समय रहते यदि तिब्बत की संस्कृति एवं भाषा की रक्षा नहीं की गई, तो एक दिन तिब्बत की पहचान ही नष्ट हो जाएगी, उन्हें इसका ध्यान रखना चाहिए !
चीन की ये कार्यवाहियां रोकने के लिए तिब्बतियों ने अनेक बार अपनी मांगें रखी हैं; किंतु उस पर कोई सकारात्मक पहल होती दिखाई नहीं देती । अर्थात यदि मान जाए, तो वह चीन कैसा ? तिब्बती कहते हैं, ‘हम अंतिम श्वास तक चीन के विरुद्ध संघर्ष करते रहेंगे । भारत एवं अमेरिका इसमें हमारा सहयोग करें।’ इस दृष्टि से दोनों देशों की भूमिका महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी ।
चीनका दमनचक्र एवं भारत की भूमिका
चीन जिस प्रकार सांस्कृतिक आक्रमण कर तिब्बत को समाप्त करना चाहता है, उसी प्रकार बडी मात्रा में खनन कर आर्थिक आक्रामकता के माध्यम से अर्थव्यवस्था तथा वैकल्पिक रूप से पर्यावरण को भी संकट में डाल रहा है । अपने अकालग्रस्त क्षेत्र की ओर तिब्बत का पानी मोडकर चीन तीसरे चरण के आक्रमण का भी षड्यंत्र रच रहा है । तिब्बत की राजधानी ल्हासा नगर में चीनी नागरिकों की संख्या २ लाख एवं तिब्बतियों की संख्या १ लाख हो गई है । संक्षेप में कहा जाए, तो चीन तिब्बत का चीनीकरण करना चाहता है । यदि भारतीय छात्रों को चीन का इतिहास पढाया जा रहा है तथा भारत के गौरवशाली इतिहास को सरलता से दबाया जा रह है, तो भारत के शिक्षा विभाग को भी इस पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक है । और तो और, उस इतिहास में चीन के काले कृत्य नहीं, अपितु उसके शासकों एवं प्रशासकों की स्तुति का गान ही किया जाता है । इस माध्यम से यही दिखाया जाता है कि चीन एक शक्तिशाली देश है । यदि ऐसा ही होता रहा, तो भारतीय विद्यार्थियाें को कब चीन की यह धूर्त नीति ध्यान में आएगी? केंद्र सरकार को भी चीन का सत्य इतिहास सामने के लिए शिक्षा विभाग को आदेश देने चाहिए ।
तिब्बतियों का विचार करें !
चूंकि संस्कृति तथा धर्म सब कुछ निर्वासित किया जा रहा है, ऐसे में अस्तित्व के प्रश्न से जूझते तिब्बती अब जाएं तो कहां ? उनकी अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के विषय में अंतरराष्ट्रीय मानवधिकार संगठन थोडा भी संवेदनशील क्यों नहीं ? भारत में अल्पसंख्यकों पर कथित अत्याचार होने पर मानवाधिकार संगठन भारत असुरक्षित होने का हो-हल्ला मचाते हैं; वैसे में ये संगठन चीन के विरुद्ध एक साथ आकर क्या तिब्बत को यथोचित न्याय दिला पाएंगे ? अथवा अपनी परिधि केवल भारत तक ही मर्यादित रखेंगे ? अन्य देशों के नागरिकों के मानवाधिकारों पर पूर्रतया निष्क्रिय रहनेवाले संगठनों को भारतीय नागरिकों को फटकारना चाहिए !
तिब्बत का भूतकाल एवं वर्तमानकाल कठिन ही है; किंतु भविष्य भारत के हाथ में है, ऐसा तिब्बतियों को लगता है । भारत तथा तिब्बत के संबंध पारदर्शी हैं; इसलिए ‘भारत में कुछ मात्रा में अस्तित्व वाली तिब्बती संस्कृति की रक्षा करने के लिए भारत चीन के विरुद्ध खडा होकर तिब्बत को सहयोग करे’, तिब्बतियों की ऐसी अपेक्षा है । तिब्बत की प्रतीकात्मक आभासी सरकार भारत की धर्मशाला से चलती है । इसलिए तिब्बत को सार्वभौमिकता एवं सर्वांग स्वतंत्रता मिले, इसके लिए भारत सरकार को कार्यवाही करनी चाहिए । ऐसा होने पर ही तिब्बती संस्कृति की लडखडाहट रुकेगी ।