बच्चो, राष्ट्र एवं धर्म प्रेमी बन कर, आदर्श भारत का निर्माण करो !
स्वतंत्रता दिवस के निमित्त…
बच्चे राष्ट्र एवं धर्माभिमानी हों !
राष्ट्र के भावी नागरिक के रूप में बच्चों की ओर देखा जाता है । ‘यदि बालक-युवक सक्षम, तो राष्ट्र सक्षम’, ऐसा सीधा-सीधा संबंध है । छत्रपति शिवाजी महाराज के बचपन में उनकी वीरमाता जीजाबाई ने उन्हें रामायण-महाभारत की कथाएं सुनाकर सुसंस्कृत किया । महाराज ने अपनी युवावस्था में हिन्दवी स्वराज की स्थापना का बडा लक्ष्य लेकर उसे पूर्ण भी किया । वीर सावरकर ने अपने बचपन में एक सार्वजनिक भाषण प्रतियोगिता में भाग लेकर उसमें ओजस्वी एवं वीरतापूर्ण भाषण देकर प्रथम स्थान प्राप्त किया । बचपन में ही उत्पन्न राष्ट्रकार्य करने की लालसा उनकी युवावस्था में विकसित हुई । उन्होंने युवावस्था में अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति आंदोलन खडा करने का लक्ष्य लेकर उसे पूर्ण किया ।
इन राष्ट्रपुरुषों को बचपन में जो संस्कार मिले थे, उनके अनुसार युवावस्था में बडा राष्ट्रीय ध्येय सामने रखकर उसके लिए उन्होंने प्रयासों की पराकाष्ठा कर दी । इस यात्रा में उन पर अनेक दुखद, मानहानि तथा अपमानजनक अनेक प्रसंग आए, साथ ही अनेक संकट एवं समस्याएं आईं; परंतु वे डगमगाए नहीं । उनकी अतुलनीय ध्येयनिष्ठा, ध्येय के लिए कोई भी त्याग करने की तैयारी एवं प्रखर मनोबल के आधार पर वे कार्यरत रहे तथा भीषण पराक्रम कर उन्होंने ध्येय पूर्ण किया ।
स्वामी विवेकानंद भी कहते थे, ‘मुझे ध्येय से युक्त १०० युवकों की आवश्यकता है । इन युवकों के द्वारा मैं भारत में आमूल परिवर्तन लाऊंगा !’ जिस देश में ऐसे राष्ट्रीय चरित्रवाले महापुरुष जन्मे हैं, वहां किस बात का अभाव होगा ?
भारत जैसे विविधता से संपन्न देश में उत्तुंग चरित्र के महापुरुषों का भले ही जन्म हुआ हो; परंतु आज के भारत के अधिकतर बच्चों एवं युवाओं की स्थिति भिन्न है । उनकी स्थिति गलितगात्र, तेजोहीन, बलहीन, स्वार्थी एवं संकीर्ण, कुछ ऐसी हुई दिखाई देती है । नैतिकता के पतन के कारण स्वत्व भी खो जाने के कारण आज वे छोटी-छोटी समस्याओं के सामने असहाय दिखाई दे रहे हैं । बचपन में ही उनके हाथ में चल-दूरभाष आने से वे उन पर अनावश्यक एवं अर्थहीन वीडियो देखकर भटक गए हैं तथा अधिकाधिक संकीर्ण बनते जा रहे हैं । वे छोटी-छोटी मांगों के लिए अभिभावकों से हठ करते हैं तथा उनकी बातें अनसुनी करते हैं; परंतु कुछ बालक अपनी भिन्नता संजोकर उन्हें मिले संस्कार की वृद्धि कर रहे हैं । बचपन में ही अपने सामने ध्येय रखकर उसके लिए प्रयत्नशील बन रहे हैं । इसके लिए आवश्यक है कि अभिभावक उन पर संस्कार कर उन्हें तैयार करते रहें । ऐसा हुआ, तो निश्चित रूप से आज के ये बच्चे छत्रपति शिवाजी महाराज, वीर सावरकर, स्वामी विवेकानंद आदि राष्ट्रपुरुषों का आदर्श सामने रखकर अच्छे ढंग से अपना युवा जीवन व्यतीत कर राष्ट्र के सक्षम नागरिक बनेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं !
– श्री. यज्ञेश सावंत, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल (८.४.२०२३)