सर्वाधिक जनसंख्यावाले देश का स्थाई सदस्यों में समावेश न होते हुए भी संयुक्त राष्ट्र विश्व का कैसे प्रतिनिधित्व कर सकते हैं ?

  • प्रधानमंत्री मोदी की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वैश्विक प्रतिनिधित्व पर प्रश्नचिन्ह उठानेवाली स्पष्टतापूर्ण भूमिका !

  • प्रसिद्ध फ्रेंच समाचारपत्र ‘लेस इको’ने की प्रधानमंत्री मोदी से भेंटवार्ता !


नई देहली – फ्रांस की यात्रा के लिए प्रस्थान करने से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी स्पष्टतापूर्ण भूमिका स्पष्ट करते हुए यह प्रश्न उठाया कि भारत अब विश्व का सर्वाधिक जनसंख्यावाला देश बन गया है; इसलिए उसे अपना उचित स्थान प्राप्त करने की पुनः एक बार आवश्यकता है । जब सर्वाधिक जनसंख्यावाले तथा जो देश विश्व का सबसे बडा लोकतंत्र है, ऐसे देश को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता प्राप्त नहीं हो, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद विश्व के हित के विषय में बोलने का कैसे दावा कर सकती है ? प्रधानमंत्री आवास में प्रसिद्ध फ्रेंच समाचारपत्र ‘लेस इको’ के प्रतिनिधि ने उनसे भेंटवार्ता की, उस समय वे बोल रहे थे । प्रधानमंत्री मोदी १३ एवं १४ जुलाई को दो दिवसीय फ्रांस की यात्रा पर जा रहे हैं । उसके उपरांत वे संयुक्त राष्ट्र अमिराति की यात्रा करेंगे ।

क्या प्रधानमंत्री मोदी को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की विश्वसनीयता पर संदेह ?, इस ‘लेस इको’ के प्रतिनिधि के प्रश्न पर मोदी ने कहा कि यहां विषय विश्वसनीयता का नहीं है, अपितु यह उससे बडी बात है । मुझे ऐसा लगता है कि संयुक्त राष्ट्रों को विश्व को दूसरे विश्वयुद्ध के उपरांत बहुदलीय सरकारी व्यवस्थाओं के विषय में प्रामाणिकता के साथ चर्चा करना आवश्यक था । विगत ८ दशकों में विश्वस्तर पर अनेक परिवर्तन आए हैं । अब सदस्य देशों की संख्या चार गुना बढी है । वैश्विक अर्थव्यवस्था के स्वरूप में परिवर्तन आया है । आज हम नई प्रोद्योगिकी के युग में रह रहे हैं । इसके कारण सापेक्षदृष्टि से वैश्विक संतुलन में भी परिवर्तन आए हैं । हमें तापमानवृद्धि, साइबर सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा, कोरोमा महामारी जैसी चुनौतियों का सामना करना पडा है ।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद विसंगति का  प्रतीक ! – प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि आज के स्थाई सदस्य देश क्या विश्व के वास्तविक प्रतिनिधि हैं ?, यह प्रश्न अब उठ रहा है । जिस उद्देश्य से उन्हें स्थाई स्थायी सदस्यों के रूप में स्थापित किया गया, तो क्या आज वे उसकी आपूर्ति करने में सक्षम हैं ? विशेषकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इस विसंगति का प्रतीक है । हम इसके वैश्विक संगठन के रूप में कैसे देख सकते हैं ? जब कि उन्होंने आफ्रिका एवं दक्षिण अमेरिका जैसे उपमहाद्वीपों की संपूर्णतया उपेक्षा की ? इसकी विषम सदस्यता अपारदर्शी निर्णय लेने का नेतृत्व करती है ।

भारत-फ्रांस मित्रता के संदर्भ में मोदी का दृष्टिकोण !

भारत-फ्रांस मित्रता के संदर्भ में मोदी ने कहा कि भारत एवं फ्रांस के मध्य व्यापक स्तर के संबंध हैं, साथ ही उनमें रणनीतिक भागीदारी है । इसके अंतर्गत राजनीतिक, रक्षा, आर्थिक, मानवकेंद्रित विकास एवं स्थिरता अंतर्भूत हैं । जब समान दृष्टीकोण एवं मूल्यवाले देश द्विपक्षीय रूप में एकत्रित होकर काम करते हैं, उस समय वे किसी भी चुनौती का सफलतापूर्वक सामना कर सकते हैं ।

वर्ष २०४७ तक भारत  विकसित देश बनेगा !

भारत की विकास की गति पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्ष २०४७ में हमारी स्वतंत्रता को १०० वर्ष पूर्ण हो रहे हैं, इस दृष्टिकोण से हमारी स्पष्टतापूर्ण भूमिका है । उस दिशा में हम काम भी कर रहे हैं । वर्ष २०४७ में हम भारत को विकसित राष्ट्र के रूप में देखने की कामना करते हैं । हम एक ऐसी अर्थव्यवस्था लाना चाहते हैं कि उससे जनता की शिक्षा, अन्न, स्वास्थ्य, मूलभूत सुविधाएं एवं अवसर इन सभी आवश्यकताओं को पूर्ण किया जा सके । भारत एक सशक्त संघीय लोकतंत्र बना रहेगा । इसमें सभी नागरिकों के अधिकार सुरक्षित होंगे । भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में वैश्विक नेता बनेगा । भारत लोकतंत्र की शक्ति का सशक्त उदाहरण बने, यह हमारी कामना है ।