कब्रें १०० वर्षों से भी अधिक समय से अस्तित्व में हैं; केवल इसलिए वे ‘संरक्षित स्मारक’ नहीं हो सकतीं ! – मद्रास उच्च न्यायालय
चेन्नई – मद्रास उच्च न्यायालय ने कुछ समय पूर्व ही दिए एक आदेश में कहा है कि १०० वर्षों से भी अधिक समय से कब्रें हैं; केवल इसलिए वे ‘प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम,१९५८’ कानून के अंतर्गत ‘संरक्षित स्मारक’ के रूप में घोषित करने का कारण नहीं हो सकता । मद्रास कानून महाविद्यालय के प्रांगण में डेविड येल एवं जोसेफ हायमनर्स की कब्रों का स्थलांतर करने का आदेश मद्रास उच्च न्यायालय ने दिया । याचिकाकर्ता बी मनोहरन् ने इन कब्रों का स्थानांतर करने की विनती करनेवाली एक याचिका मद्रास उच्च न्यायालय में प्रविष्ट की थी । भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा ये कब्रें ‘संरक्षित स्मारक’ के रूप में घोषित किए जाने से कानून महाविद्यालय उसके १०० मीटर आसपास कोई भी विकासकाम नहीं कर पाएगा । इस याचिका को अनुसार ये कब्रें मद्रास प्रांत के तत्कालीन ‘गवर्नर’ एलिहू येल के बेटे एवं मित्र का दफन स्थल है ।
Merely Because A Tomb Has Been In Existence For More Than 100 Years Not A Ground To Declare It As Protected Monument: Madras High Court https://t.co/TiM27qaLHR
Same clauses are not applicable to quash PoW 1991 act?
— भारत पुनरुत्थान Fringe Bharata (@punarutthana) July 8, 2023
मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम्. धनदापानी ने इस याचिका पर सुनवाई के समय कहा, ‘‘किसी भी वास्तु को संरक्षित स्मारक के रूप में घोषित करने के लिए वह ऐतिहासिक अथवा कलात्मक होनी चाहिए । इसके साथ की वह १०० वर्षों से भी अधिक काल अस्तित्व में होनी चाहिए । इस कब्र का ऐतिहासिक एवं कलात्मकदृष्टि से महत्त्व नहीं है ।’’