विभिन्न संतों में विद्यमान प्रतीत अलौकिक तेज
१. बिना स्नान किए भी केवल मुख पर हाथ फेरते ही लाल-गुलाबी एवं तेजस्वी दिखाई देनेवाले प.पू. भक्तराज महाराज !
एक बार हम प.पू. भक्तराज महाराजजी के साथ उज्जैन गए थे । उस समय रात में प.पू. बाबा (प.पू. भक्तराज महाराजजी) के भक्त श्री. चोरे के घर में निवास की व्यवस्था था । प्रातः जागने पर हमें प.पू. बाबाजी का मुखमंडल थोडा झुर्रियों से युक्त तथा उनके केश थोडे से बिखरे हुए दिखाई दिए । किसी ने प.पू. बाबा से कहा, ‘प.पू. बाबा, अब आपको स्नान करना चाहिए ।’ उस समय प.पू. बाबा ने तुरंत ही केश एवं मुख पर अपने हाथ फेरे । उन्होंने उनका दाहिना हाथ बाएं हाथ पर तथा बायां हाथ दाहिने हाथ पर फेरा और कहने लगे, ‘अब आपको मैंने स्नान किया है, ऐसा लगता है न ?’’ उस समय प.पू. बाबा के मुखमंडल पर अकस्मात तेज आया था । उनका मुखमंडल तत्काल ही लाल-गुलाबी हो गया था ।उस क्षण मुझे प.पू. धांडे शास्त्रीजी के शब्दों का स्मरण हुआ । वे कहते थे, ‘भक्तराज मुझे प्रिय है, वह मोहक है ।’ वह मोहकता आज भी आंखों के सामने आती है ।
२. प.पू. धांडे शास्त्रीजी के मुखमंडल पर दिखाई देनेवाला अलौकिक तेज !
प.पू. धांडे शास्त्रीजी के साथ (इंदौर के एक संत) भी बहुत कुछ ऐसा ही था । उनकी दाढी भले ही बढी होती थी; परंतु उनके मुखमंडल पर बहुत तेज था । उनकी आयु सौ वर्ष (उन्होंने १०१ वर्ष के उपरांत देहत्याग किया) पूर्ण होने के उपरांत भी उनके मुखमंडल पर ऐसा तेज दिखाई देता था ।
३. प.पू. डोंगरे महाराजजी में विद्यमान ब्रह्मचर्य का तेज प्रतीत होकर आदर से मस्तक झुक जाना
‘एक बार मैं मेरी माता श्रीमती नलिनी एवं पत्नी श्रीमती आशा को लेकर वडोदरा गया था । वडोदरा जाने पर पता चला, ‘आज प.पू. डोंगरे महाराजजी घर (प.पू. डोंगरे महाराजजी के पिता के घर) आनेवाले हैं ।’ दूसरे दिन सवेरे जब मैं प.पू. डोंगरे महाराजजी के घर गया, उस समय वे पूजा कर रहे थे । उनके मुखमंडल पर मुझे बहुत तेज दिखाई दिया । ‘ब्रह्मचर्य का तेज कैसा होता है ?’, यह मैं नहीं जानता; परंतु मुझे लगा कि ‘यह वही तेज है ।’ मैं उस तेज का वर्णन नहीं कर सकता । उस तेज को देखकर आदरर्पूक मेरा मस्तक नीचे झुक गया ।’
– श्री. अनिल वामन जोग, इंदौर, मध्य प्रदेश. (२९.३.२०२३)