विविध कलाओं में प्रवीण विद्यार्थियों को अध्यात्म एवं कला एक-दूसरे से जोडकर साधना कैसे करनी है, यह सिखानेवाला महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय !
‘३१.३.२०२३ को मुझे पता चला कि हुब्बळी की भरतनाट्यम् नृत्यांगना डॉ. सहना भट का रेडियो पर ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के संदर्भ में एक वार्तालाप एवं ठाणे के शास्त्रीय गायक श्री. प्रदीप चिटणीस के ‘संगीत सीखनेवाले विद्यार्थियों की साधना’ इस विषय पर प्रवचन है ।
तब मन में आगे दिए विचार आए – ‘संगीत वर्ग में अथवा रेडियो पर वार्तालाप के माध्यम से अनके लोगों तक महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोधकार्य का विषय पहुंचा है । आगे विविध गुरुकुल, इन्स्टिट्यूट, एकेडमी में भी यह इसी प्रकार पहुंचेगा और यह विषय समझने पर उनमें से जो जिज्ञासु होंगे, उन्हें इस विषय का महत्त्व समझ में आएगा और ‘हम जो कार्य, साधना कर रहे हैं, उसी सीखने के लिए’ विविध गुरुकुलों के विद्यार्थी महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में आएंगे । अर्थात अनेक विद्यार्थी जिन्होंने संगीत (नृत्य, गायन, वादन) सीखा है, वे अपनी कला में तैयार होकर हमारे पास आएंगे । तब उन्हें केवल सूक्ष्म का भाग ही सिखाना होगा कि ‘कला एवं अध्यात्म को एक-दूसरे से कैसे जोडना है अथवा साधना क्या है, यह बताना है । अत: परात्पर गुरुदेवजी अब हमसे साधना की नींव पक्की करवा ले रहे हैं, उसका लाभ आगे कैसे होगा, वह मुझे दृश्य एवं विचार स्वरूप में दिखाई दिया । इस अवसर पर परात्पर गुरुदेवजी ने समय-समय पर किए मार्गदर्शन का स्मरण हुआ - ‘सीखते रहना, अनंत की प्रक्रिया है । यदि हम अपना संपूर्ण जीवन भी सीखने के लिए दें, तब भी वह अल्प ही है । इस जीवन में साधना की दृष्टि से आवश्यक उतना सीख लेना है । साधना की नींव होगी, साधना होगी, तो उस विषय का ज्ञान भगवान देते ही हैं । उसके लिए अलग से प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं ।’ इस मार्गदर्शन का स्वरूप स्पष्ट हुआ । कला की ओर साधना के विभिन्न दृष्टिकोण से देखकर कलाकारों को साधना हेतु प्रेरित करनेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के श्रीचरणों में कृतज्ञतापूर्वक शतश: नमन !
– श्रीमती सावित्री वीरेंद्र इचलकरंजीकर (नृत्य अध्ययनकर्ता), महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, फोंडा, गोवा.