समलैंगिकता को मान्यता देने से भारत के अनेक कानूनों पर दुष्परिणाम होगा ! – अधिवक्ता मकरंद आडकर, अध्यक्ष, महाराष्ट्र शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्था, नवी देहली
सर्वोच्च न्यायालय में समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता देने की मांग करनेवाली १५ याचिकाएं प्रविष्ट हुई हैं । इन याचिकाओं में हिन्दू विवाह कानून को रद्द करना, २ पुरुषों अथवा २ स्त्रियों द्वारा एक-दूसरे के साथ किए गए समलिंगी विवाहों को कानूनी मान्यता देना आदि मांगें की गई हैं । आज के समय में देश जहां अनेक समस्याओं से जूझ रहा है, तो ऐसे में समलैंगिकता को मान्यता दी जाए अथवा नहीं, इस पर सर्वोच्च न्यायालय में १५ दिन सुनवाई हुई । देश में समलैंगिकता तथा समलैंगिक विवाहों को मान्यती दी गई, तो हिन्दू विवाह कानून का क्या होगा ? भरणभत्ता किसे दिया जाए ? महिलाओं को संरक्षण देनेवाले घरेलु अत्याचार प्रतिबंधक कानून का क्या होगा ? पत्नी पर अत्याचार हुआ, तो पत्नी के रूप में किसे न्याय मिलेगा ? जैसे अनेक प्रश्न हैं; उसके कारण समलैंगिकता को मान्यता देने से भारत के अनेक कानून बाधित हो जाएंगे । ‘समलैंगिकता को मान्यता नहीं दी गई, तो उससे देश की बडी हानि होगी’, ऐसा यदि न्यायाालय को लगता हो; तो न्यायालय उस प्रकार से संसद को बता सकता है; परंतु यह कानून बनाने का अधिकार न्यायालय का नहीं है । केंद्र सरकार ने सर्वाेच्च न्यायालय में ‘समलैंगिकता हमारी संस्कृति नहीं है’, ऐसा शपथपत्र प्रस्तुत किया है । अन्य देशों में क्या चल रहा है, इसकी अपेक्षा भारतीय संस्कृति इसे मान्यता नहीं देती, इसे हमें समझ लेना होगा, ऐसा प्रतिपादन नई देहली के ‘महाराष्ट्र शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्था’ के अध्यक्ष अधिवक्ता मकरंद आडकर ने किया । वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव के तीसरे दिन उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठों को संबोधित करते हुए वे ऐसा बोल रहे थे ।
इस अवसर पर व्यासपीठ पर व्यापार मंडल के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष तथा वाराणसी व्यापार मंडल के अध्यक्ष अजितसिंह बग्गा, सनातन संस्था के धर्मप्रचारक झारखंड के पू. प्रदीप खेमका एवं कछार (असम) के हिन्दू जागरण मंच के जिलाध्यक्ष अधिवक्ता राजीव नाथ उपस्थित थे ।