सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के विषय में संतों द्वारा व्यक्त किए गए गौरवोद्गार
‘जो ब्रह्म को जानता है, वह स्वयं ही ब्रह्म बन जाता है’, वेदों में वर्णित यह वाक्य सार्थ करनेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ! – पू. डॉ. शिबनारायण सेन
१. ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का ‘ट्रुथ’ साप्ताहिक के नियमित पाठक होना’, यह अत्यंत गौरव की बात है !
‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के अवतार का प्रकटीकरण दिवस था ११ मई २०२३ । ‘ट्रुथ’ साप्ताहिक के वे नियमित पाठक हैं’, मेरे लिए यह अत्यंत गौरव की बात है । वे साप्ताहिक नियमित पढते एवं तदनंतर ‘इसमें चैतन्य है’, ऐसा कहकर वह प्रति संभालकर रखते ।
२. मानवजाति के कल्याण के लिए ‘अध्यात्म की संकल्पना, पारंपरिक विषय एवं धार्मिक विधि’, के आधारभूत शास्त्र वैज्ञानिक भाषा में प्रस्तुत करने के लिए कार्यरत परात्पर गुरुदेवजी !
वे स्वयं ज्ञानी हैं एवं ‘अध्यात्म की प्रत्येक संकल्पना, पारंपरिक विषय तथा धार्मिक विधि’, के आधारभूत शास्त्र वैज्ञानिक भाषा में प्रस्तुत करने के लिए कार्यरत हैं । ‘जाति, वर्ण, संप्रदाय अथवा निर्धन-धनवान’, ऐसा विचार करने की अपेक्षा संपूर्ण मानवजाति के कल्याण के लिए उन्होंने अद्वितीय पद्धति से इन सूत्रों का विशिष्टतापूर्ण विश्लेषण ‘भौतिक, आदिभौतिक एवं अध्यात्म के परिमाण’ द्वारा प्रस्तुत किया है ।
३. परात्पर गुरुदेवजी द्वारा सिखाई गई स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन प्रकिया साधकों को आध्यात्मिक शिखर पर ले जाती है !
परात्पर गुरुदेवजी के मार्गदर्शन में स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन प्रक्रिया क्रियान्वित करने से साधकों में हो रहे परिवर्तन हम अति आश्चर्य तथा कुतूहल से देखते हैं । उनके द्वारा सिखाई गई यह प्रक्रिया पूरे देश के असंख्य साधकों को सेवाभावी, बुद्धिमान, विनम्र एवं शांत बनाकर उन्हें एक आध्यात्मिक शिखर पर ले जाती है ।
४. ‘यहां-वहां घूमनेवाले जीवों को श्रीकृष्ण की चरणप्राप्ति की दिशा में मोडना’, उनके श्रीचरणों में एक ‘कौस्तुभ मणि’ अर्पण करना’ है ।
५. परात्पर गुरुदेवजी की महानता शब्दों में प्रस्तुत करने का प्रयत्न, अर्थात ज्योति से तेज की आरती !
स्त्री-पुरुष, युवक-युवतियां, सभी को गुरुसेवा एवं शरणागत होकर श्रीकृष्ण की चरणभक्ति की ओर ले जाने का उनका ‘कैङ्कर्य’ (देव, गुरु एवं उनके भक्तों की अविरत सेवा) अत्यंत प्रशंसनीय है । वेदों में ‘ब्रह्मविद् ब्रह्मैव भवति’, अर्थात ‘जो ब्रह्म को जानता है, वह स्वयं ही ब्रह्म बन जाता है’, ऐसा उल्लेख है । ऐसे महान विभूति की महानता शब्दों में प्रस्तुत करने एवं कृतज्ञता व्यक्त करने का मेरा प्रयास, मोमबत्ती के टिमटिमाते प्रकाश से सूर्य की आरती करने समान है । तत् क्षामये (क्षमा करें ।)
६. ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ की स्थापना एवं उसके माध्यम से किए जा रहे शोधकार्य के कारण आजकल के अंग्रेज बने युवकों में व्याप्त नास्तिकता मूल से डगमगा गई है ।
७. परात्पर गुरुदेवजी ने धर्मरक्षा के प्रयासों से पूरे देश के संत, विद्वान एवं नेता के साथ ही असंख्य लोगों के मन जीत लिए हैं !
‘हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के माध्यम से ‘धर्मराज्य’ स्थापित हो’, इसके लिए लोगों में चेतना जागृत करने के उनके अथक प्रयत्न दशक से भी अधिक कालावधि से जारी हैं । उनके इन प्रयासों ने आज पूरे देश के संत, विद्वान एवं नेताओं के साथ ही असंख्य लोगों के मन जीत लिए हैं ।
‘परात्पर गुरुदेवजी द्वारा ईश्वर की सेवा निरंतर हो’, इसलिए उन्हें उत्तम स्वास्थ्य के साथ ही दीर्घायु प्राप्त हो’, श्रीहरि के श्रीचरणों में ऐसी अंतःकरणपूर्वक प्रार्थना !’
– पू. डॉ. शिबनारायण सेन, संपादक, साप्ताहिक ‘ट्रुथ’. (अप्रैल २०२३)
महर्षि एवं संतों द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अवतारी कार्य का परिचय पूरे विश्व को कराना, अर्थात समष्टि के लिए प.पू. डॉक्टरजी का तत्त्व ही कार्यरत होने की अनुभूति – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति
‘समाज, साधक एवं शिष्य कभी भी श्रीगुरुदेवजी को पहचान नहीं सकते । श्रीगुरुदेवजी के रूप में कार्य करते समय उस अवतार को पहचान पाना असंभव है । अतएव वे ही शिष्यों को अपने अवतारत्व की अनुभूति प्रदान करते हैं और साधक एवं समाज को इससे परिचित करवाते हैं । इतना ही नहीं, अपितु श्रीविष्णु के अवतारी कार्य की पहचान उनके भक्त एवं अखिल मानवजाति को हो; इसलिए संत, महर्षि, सप्तर्षि आदि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में अपना योगदान देते हैं ।
गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी, प.पू. योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन, प.पू. कर्वे गुरुजी, प.पू. आबा उपाध्ये, जैसे महर्षितुल्य संत प.पू. डॉक्टरजी के अवतारी कार्य के विषय में साधक एवं समाज को परिचित करवा रहे हैं । साथ ही सप्तर्षि जीवनाडी के माध्यम से महर्षि पू. डॉ. ॐ उलगनाथनजी एवं अनेक नाडीसंहिताओं के माध्यम से अनेक महर्षि वंशज प.पू. डॉक्टरजी के अवतारी कार्य तथा हिन्दू राष्ट्र के विषय में विश्व को परिचित करवा रहे हैं ।’
हिन्दू-संगठन हेतु आध्यात्मिक शक्ति का माग गुरुदेवजी ने दिखाया ! – (पू.) अधिवक्ता हरिशंकर जैन, सर्वाेच्च न्यायालय
‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का ब्रह्मोत्सव मनाया जा रहा है, यह अत्यंत आनंद की बात है । वास्तव में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ईश्वर स्वरूप में अवतरित हुए हैं । वे प्रेरणास्रोत हैं । उन्होंने संपूर्ण समाज एवं मानवजाति को जो शिक्षा दी एवं जो मार्ग दिखाया, उस पर चलकर हम संपूर्ण देश को बहुत आगे ले जा सकते हैं और पूरी मानवजाति की सेवा कर सकते हैं । आज हिंदू समाज का संगठित होना आवश्यक है और इस संगठन के लिए आध्यात्मिक शक्ति का अधिष्ठान आवश्यक है । इस आध्यात्मिक शक्ति का मार्ग माननीय गुरुजी ने (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले जी ने) दिखाया है । उसका अनेक लोगों ने लाभ लिया है । प्रतिवर्ष अनेक लोग सनातन के रामनाथी फोंडा स्थित आश्रम में आते हैं और उनके दर्शन कर कृतकृत्य हो जाते हैं । जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर ईश्वर उन्हें दीर्घायु एवं निरोगी रखें, जिससे हमें आगे उनके अत्यधिक आशीर्वाद मिले, ऐसी मैं ईश्वर के चरणों में प्रार्थना करता हूं ।’
(२.५.२०२३)