सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के करकमलों से श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को उत्तराधिकार पत्र प्रदान !

वर्ष २०२२ में दत्तात्रेय जयंती के दिन अर्थात ७.१२.२०२२ को सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणियां श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं  श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को स्वहस्तों से लिखा आध्यात्मिक उत्तराधिकार पत्र सौंपा । यह उत्तराधिकार पत्र धातु पर उकेरा गया है । इस समारोह में वह धातु पर उकेरा गया उत्तराधिकार पत्र सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को प्रदान किया । सनातन की गुरुपरंपरा के ये अनमोल क्षण साधकों ने भावपूर्ण स्थिति में अनुभव किए । श्री. विनायक शानभाग ने उत्तराधिकार पत्र का वाचन किया ।

श्रीसत्‌शक्‍ति (सौ.) बिंदा सिंगबाळ, सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले और श्रीचित्‌शक्‍ति (सौ.) अंजली गाडगीळ


सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के हस्तों लिखा उत्तराधिकार पत्र

उत्तराधिकार पत्र का हिन्दी अनुवाद

‘सनातन धर्म’ ही मेरा नित्यरूप है । इस रूप में मैं सदा सर्वत्र हूं । जैसे वेदों के ‘श्रुति’ एवं ‘स्मृति’ नामक दो अंग हैं, उसी प्रकार मेरे दो अंग हैं – श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळ । मेरे उपरांत सनातन धर्म की रक्षा करने का कार्य ये दोनों करेंगी । जिस प्रकार ‘श्रुति’ एवं ‘स्मृति’ ‘शब्दप्रमाण’ हैं, उसी प्रकार श्रीसत्शक्ति एवं श्रीचित्‌शक्ति का प्रत्येक शब्द मेरा शब्द है । मेरे उपरांत आनेवाले काल में सनातन संस्था के सद्गुरु, संत, श्रद्धावान साधक भक्तों की रक्षा, परिपालन एवं आध्यात्मिक उन्नति करवाने का अधिकार (क्षमता) श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ एवं श्रीचित्‌शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळ को छोडकर अन्य किसी में भी नहीं है । जैसे वेद चिरंतन हैं, वैसे मेरे ये शब्द चिरंतन हैं ।’

– डॉ. जयंत बाळाजी आठवले (दत्तात्रेय जयंती) ७.१२.२०२२


अध्यात्म एवं धर्म प्रसारकार्य उत्तरोत्तर तीव्र ग्रति से बढता जाएगा !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी द्वारा व्यक्त कृतज्ञता एवं साधकों को दिए कृपाशीर्वाद !

मैं अपने गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी के चरणों में प्रार्थना कर अपना मनोगत व्यक्त करता हूं ! प.पू. भक्तराज महाराजजी मुझे गुरु रूप में प्राप्त हुए । उन्होंने मुझे सब कुछ सिखाया एवं विश्वभर में अध्यात्मप्रसार करने का आशीर्वाद दिया । उनके आशीर्वाद के परिणाम हम आज देख रहे हैं । गत ८ वर्षाें से पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से परमवंदनीय महर्षि जो आज्ञा दे रहे हैं, उसके अनुसार ही हम साधना कर रहे हैं । आज पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से परमवंदनीय महर्षि की आज्ञा से हमने यह कार्यक्रम आयोजित किया है । इस निमित्त मुझे आप सबसे वार्तालाप का अवसर मिला है, इसके लिए मैं महर्षि के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करता हूं । अब मैं इस कार्य के संबंध में कुछ बताता हूं ।

१. देश : वर्तमान में अध्यात्मप्रसार का कार्य २७ देशों में चल रहा है ।

२. साधक : अध्यात्मप्रसार, हिन्दू-संगठन आदि विविध क्षेत्रों के साधक दायित्व लेकर कार्य करने लगे हैं । मुख्यतः वे साधक स्वयं कार्य करते हुए अन्य साधकों को भी तैयार रहे हैं । यह कार्य कितनी बडी मात्रा में बढ गया है । केवल कार्य ही नहीं बढा है, अपितु उस मात्रा में साधकों की आध्यात्मिक उन्नति भी होने लगी है ।

३. संत : सनातन के १२४ संत अध्यात्म के सूक्ष्म क्षेत्र में इतना कार्य कर रहे हैं कि उसमें मुझे कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं रह गई है ।आयु के अनुसार बढती थकान के कारण मैं गत अनेक वर्षाें से कहीं बाहर नहीं गया हूं, अनेक साधकों ने मुझे प्रत्यक्ष कभी नहीं देखा है, तब भी आप सभी साधक मेरे गुरु द्वारा बताया  कार्य तीव्र गति से बढा रहे हैं । इसलिए मैं आज आप सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं । यह सर्व देखकर मुझे विश्वास हो गया है कि यह कार्य आगामी काल में इसी प्रकार तीव्र गति से उत्तरोत्तर बढता जाएगा ।

प.पू. भक्तराज महाराज, परमवंदनीय सप्तर्षि एवं पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के चरणों में वंदन कर मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं । नमस्कार !

– डॉ. जयंत आठवले (११.५.२०२३)


सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का उनके कृपाशीर्वादात्मक संदेश द्वारा वैश्विक कल्याण का संकल्प करना

ब्रह्मोत्सव समारोह में जब श्री. विनायक शानभाग श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के मनोगत का वाचन कर रहे थे, तब श्री. विनायक शानभाग के स्थान पर श्रीविष्णु के परमभक्त देवर्षि नारदजी के दर्शन हुए । वे कीर्तनभक्ति के माध्यम से श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के दिव्य वचन श्रीविष्णुवाणी के माध्यम से सब तक पहुंचा रहे हैं, ऐसा भान हुआ ।

उसी प्रकार श्रीविष्णु का गुणगान करने के लिए समर्पित मुद्रा में श्रीविष्णुवाहन गरुडदेव एवं दास्यभाव में हनुमानजी का तत्त्व श्री. विनायक शानभाग में कार्यरत होता प्रतीत हुआ । श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने उनके मनोगत से संपूर्ण सृष्टि के कल्याण का संकल्प समष्टि के समक्ष व्यक्त कर वैश्विक कल्याण का संकल्प किया है, ऐसा प्रतीत हुआ । तब श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के हृदय से उफनकर बहनेवाले गुलाबी रंग की प्रीतिगंगा के असंख्य प्रवाह दशदिशाओं में उपस्थित भक्तों की ओर वेग से बहने लगे । यह प्रवाह सबका कल्याण करने के लिए उन पर प्रीतिमय चैतन्य एवं वात्सल्य का अपार वर्षाव कर रहा है, ऐसा प्रतीत हुआ । इसलिए गुरुदेवजी का मनोगत सुनकर सर्व साधकों का मन उनके प्रति कृतज्ञभाव से भर आया है, ऐसा प्रतीत हुआ ।

– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म आयाम से मिला ज्ञान), (आध्यात्मिक स्तर ६४ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

(१३.५.२०२३)

  • सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है ।
  • सूक्ष्म परीक्षण : कुछ घटना अथवा प्रक्रिया के विषय में चित्त को (अंतर्मन को) जो अनुभव होता है, उसे ‘सूक्ष्म परीक्षण’ कहते हैं ।