हास्यास्पद साम्यवाद !
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘वनस्पति, प्राणी, मानव इत्यादि में समानता नहीं । इतना ही नहीं, पृथ्वी के ७०० करोड से अधिक मानवों में से किन्ही दो मानवों के धन, शिक्षा, शरीर, मन, बुद्धि और चित्त में समानता नहीं । ऐसा होते हुए भी ‘साम्यवाद’ कहना क्या हास्यास्पद नहीं है ?’
✍️ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक संपादक, ʻसनातन प्रभातʼ नियतकालिक