परमाचार्य डॉ. देवकरण शर्माजी का अमृतत्व की ओर मार्गक्रमण ! – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे
उज्जैन (मध्य प्रदेश) – ‘‘वयम् अमृतस्य पुत्रा:’ । अर्थात हम अमृत अर्थात अविनाशी ईश्वर के पुत्र हैं । उस ईश्वरीय तत्त्व का, अमृतत्व का अनुभव यह अमृत महोत्सव है । देहबुद्धि अल्प होकर जब व्यक्ति आत्मबुद्धि में स्थिर होता है, तब मैं अविनाशी का अंश हूं, इसका वह अनुभव करता है ।’’ आचार, विचार और व्यवहार से डॉ. देवकरणजी का मार्गक्रमण अमृतत्व की ओर हो रहा है । युगों का क्रम सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि, ऐसे होता है । पर व्यक्ति जब धर्माचरण या साधना करता है, तो धीरे-धीरे वह पिछले युग में अर्थात परमात्मा की ओर प्रवास करता है । आज अमृत महोत्सव पर परमाचार्य द्वापर से सत्य युग की ओर प्रवास कर रहे हैं, ऐसा अनुभव हो रहा है । उत्तम गृहस्थाश्रम के पश्चात एक संन्यस्त जीवन के साथ गुरुकुल एवं मंथन, चिंतन और लेखन द्वारा समाज को नई दिशा देने का कार्य इसका प्रमाण है ।’’, ऐसा प्रतिपादन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने किया ।
वे सप्तर्षि गुरुकुल के संस्थापक परमाचार्य डॉ. देवकरण शर्मा अर्थात ‘देव’ के अमृत महोत्सव के अंतर्गत कालिदास अकादमी में आयोजित सम्मान एवं अभिनंदन ग्रंथ विमोचन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे । इस समय मंच पर रामानुज पीठाधीश्वर श्री रंगनाथाचार्य महाराजजी, महामंडलेश्वर श्री अतुलेशानंद महाराजजी, मध्य प्रदेश शासन के कैबिनेट उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति श्री. अखिलेश कुमार पांडेय, पूर्व कुलपति डॉ. मोहन गुप्त, देवप्रवाह के प्रधान संपादक श्री. शिव चौरसिया उपस्थित थे ।
इस समय सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा देकर डॉ. देवकरण शर्माजी का सम्मान किया । डॉ. देवकरणजी के सुपुत्र एवं मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग आयुक्त डॉ. कर्मवीर शर्मा ने स्वागत भाषण किया, तथा उनके ज्येष्ठ सुपुत्र एवं राज्य कर विभाग के संयुक्त आयुक्त डॉ. धर्मपाल शर्मा ने आभार प्रदर्शन किया ।
रामानुज कोट के मठाधीश्वर रंगनाथाचार्य महाराजजी ने कहा, ‘‘देवकरणजी सदैव ईश्वर आराधना में रत रहते हैं और योग्यता होने पर भी सर्वसाधारण बन कर रहते हैं । उनमें अपनी संस्कृति, संस्कार के संरक्षण और राष्ट्रोत्थान का जोश है और उसी स्वप्न को साकार करने में देवजी लगे रहते हैं ।’’
महामंडलेश्वर श्री अतुलेशानंदजी महराज ने कहा कि ‘‘आपके जीवन में धर्म है, कर्म है, हर्ष है और यश है । जिस प्रकार जड में पानी देने से वृक्ष की शाखाएं फलती-फूलती हैं, वैसे ही परिवार और समाज की जड देवकरणजी हैं ।
प्रमुख अतिथि उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा, ‘देवकरणजी ने दूसरों को शिक्षा देने का आजीवन व्रत लिया है ।’’ पूर्व कुलपति मोहन गुप्त ने कहा कि ‘‘आपके जीवन का उद्देश्य समाज और राष्ट्र का कल्याण रहा है ।’’
परमाचार्य डॉ. शर्माजी के अमृतत्व की ओर यात्रा के संकेत !
अपने वक्तव्य में सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी ने कहा कि गुरुवार के शुभ दिन पर तथा १३ तारिख को यह अमृत महोत्सव हो रहा है । अमृतत्व को जानने के लिए गुरुकृपा आवश्यक है । दिनांक १३ ‘सब कुछ तेरा, कुछ नहीं मेरा’, यह संकेत देती है और परमाचार्यजी का जीवन भी ऐसा ही रहा है । आज सभागृह में आगमन करते ही उन्होंने संतजनों को पैर छूकर प्रणाम किया । उनके इस आचरण से ‘विद्या विनयेन शोभते’ यह उक्ति उनके जीवन में है, यह ध्यान में आता है । कार्यक्रम के प्रारंभ में मिला हुआ वरुण देवता का आशीर्वाद आदि सभी बातें परमाचार्यजी के अमृतत्व की ओर यात्रा का संकेत करती है ।
हिन्दू राष्ट्र् की स्थापना, यह मेरा जीवन संकल्प ! – परमाचार्य डॉ. देवकरण शर्माअपने अभिनंदन के प्रत्युत्तर में परमाचार्य डॉ. देवकरण शर्मा ‘देव’ ने कहा कि मेरे जीवन के संकल्प का सार है – भारत को पुनः जगदगुरु के पद पर प्रतिष्ठित करना । मैकाले की शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन कर नैतिक, धर्मनिष्ठ और भारतीय जीवन दर्शन और मूल्यों से ओतप्रोत शिक्षण व्यवस्था बनाना मेरा लक्ष्य है। मॅकोलेवाली शिक्षा देनेवाले शिक्षा देनेवाली संस्थाए घोडे के तबले बन जाएं । जहा नैतिकता, चरित्र, भारतीयता, अपनत्व, स्वाभिमान का अभाव है । केवल भोग की शिक्षा दि जा रही है । यह घटकर धर्म की शिक्षा प्रस्थापित करनी होगी । शतायुषी का आशीर्वाद अभी संतों ने मुझे दिया । तो अब मेरे जो २५ वर्ष शेष है, वे राष्ट्र, संस्कृति, धर्म और हिन्दू राष्ट्र के लिए समर्पित है । मेरा उत्तराधिकार धन-दौलत या खेती-बाडी का नहीं है । मेरी वसीयत है भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना । मॅकोले की शिक्षा हटाकर भारतीय मूल की शिक्षा व्यवस्था स्थापित करना है । |
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति अखिलेश कुमार पांडेय, गजेन्द्र शर्मा, डॉ. ईश्वर शर्मा, विधायक रामलाल मालवीय, पिंग्लेश कचोले, डॉ. पिलकेंद्र अरोरा, हर्षवर्धन शर्मा, आयुषी शर्मा, अशोक भंडारी, शरद नागर आदि ने अपने विचार व्यक्त किए । सरस्वती वंदना दीप्ति शर्मा ने प्रस्तुत की । संचालन नई दुनिया के वृत्त संपादक श्री. ईश्वर शर्मा ने किया ।