पू. भगवंत कुमार मेनराय के कक्ष में रखा हुआ तुलसी का पौधा पूरी तरह फला फूला होने के पश्चात भी उसके पत्ते नीचे की ओर झुके हुए हैं
१. पू. भगवंत कुमार मेनराय के कक्ष का तुलसी का पौधा पूरी तरह खिल फला फूला होने पर भी उसके पत्ते नीचे की ओर झुके हुए हैं ।
पू. पिताजी की (पिता पू. भगवंत राय की) इच्छा थी, ‘कक्ष में तुलसी का पौधा रखेंगे ।’ १३.११.२०२१ को पू. पिताजी के कक्ष में एक छोटा सा तुलसी का पौधा रखा । केवल ६ माह में ही तुलसी अच्छी तरह से खिल गई । तुलसी अच्छी तरह खिलने के पश्चात भी उसके पत्ते नीचे की ओर झुके हुए हैं । अतः मैंने वह तुलसी रामनाथी आश्रम के खेती विभाग में सेवा करनेवाले साधक श्री. दादा कुंभार (आध्यात्मिक स्तर ६५ प्रतिशत) को दिखाई ।
२. कुछ साधकों के कक्ष में स्थित तुलसी के पौधों का अधिक न बढना; किंतु पू. मेनराय काका के कक्ष की तुलसी के पौधे में अच्छी तरह फूल आने की बात साधक ने बताई
कक्ष की तुलसी देखकर श्री. दादा कुंभार ने आश्चर्य व्यक्त किया । उन्होंने कहा, ‘यह तुलसी का पौधा कितना अच्छा बढ गया है ! कुछ माह पूर्व अन्य साधकों ने भी अपने कक्ष में तुलसी के पौधे रखे थे; किंतु यह ध्यान में आया कि वे पौधे अधिक फले फूले नहीं हैं ।’
३. ‘तुलसी पौधे के पत्ते नीचे की ओर झुकने का क्या कारण होगा ?’, ऐसा प्रश्न मन में आया
तुलसी का पौधा अत्यंत अच्छी प्रकार से फल फूल रहा है तथा उसके पत्ते भी अच्छे हैं; किंतु वे पत्ते नीचे की ओर झुके हुए हैं । ‘क्या इसके पीछे स्थूल कारण है अथवा कोई आध्यात्मिक कारण ?, इस बात की जानकारी हो, इसलिए मैंने कु. मधुरा भोसले से यह प्रश्न पूछा । उस पर उनके द्वारा प्राप्त उत्तर नीचे लेख में प्रस्तुत किया है ।
– श्री गुरुचरणों में समर्पित, सुश्री (कु.) संगीता मेनराय (पू. मेनराय काका की बेटी), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा । (१७.५.२०२२)
पू. भगवंत कुमार मेनराय के कक्ष में रखे गए तुलसी के पौधे की ओर देखकर सनातन के संतों को आईं विशेष अनुभूतियां
१. ‘इस तुलसी के पौधे की ओर देखकर पू. मेनराय काका को आगे का दृश्य दिखाई देता है, ‘वासुदेव यमुना जल में सिर पर टोकरी में बालकृष्ण को रखकर मथुरा से गोकुल जा रहे हैं तथा शेषनाग ने बालकृष्ण पर अपने फन का छत्र रखा है ।’
२. पू. मेनराय काका को तुलसी की ओर देखकर कभी कभी यह प्रतीत होता है कि शिव तांडव नृत्य कर रहे हैं ।
३. सद्गुरु पिंगळे काका को तुलसी के सीधे तने (खोड) की ओर देखकर प्रतीत होता है कि वह वृंदवृंद ऋषि की सुषुम्ना नाडी है ।
४. हम तुलसी के विषय में बात कर रहे थे, उस समय सनातन के ७२ वें संत पू. नीलेश सिंगबाळ को यह दिखाई दिया कि तुलसी आनंद से हिल रही है ।
– सुश्री (कु.) संगीता मेनराय (पू. मेनराय की बेटी), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा । (१७.५.२०२२)
पू. भगवंत मेनराय के कक्ष में गमले में रोपे गए तुलसी के पौधे की आध्यात्मिक विशेषताएं !
‘तुलसी के पौधे अनेक स्थानों पर पाए जाते हैं । इन पौधों की ओर देखने के पश्चात हम प्रसन्न होते है; किंतु तुलसी के पौधे से निरंतर प्राणवायु तथा विष्णुतत्त्वमय चैतन्य की लहरें प्रक्षेपित होती हैं । इस प्रकार रामनाथी सनातन आश्रम में रहनेवाले संत पू. भगवंत कुमार मेनराय के निवास कक्ष में एक गमले में यह पौधा अच्छी तरह से फला फूला दिखाई दिया । उसकी ओर देखने से आनंद ही प्रतीत होता है; किंतु इस पौधे के सभी पत्ते नीचे की ओर झुके हुए दिखाई देते हैं । इसके पीछे का अध्यात्मशास्त्र इस प्रकार है ।
१. तुलसी का सर्वसाधारण पौधा तथा पू. मेनराय काका के कक्ष में स्थित पौधा, इनके मध्य होनेवाला अंतर
सर्वसाधारण तुलसी के पौधे में श्रीविष्णुतत्त्व ग्रहण तथा प्रक्षेपण करने की क्षमता ५ से १० प्रतिशत तक रहती है । पू. मेनराय काका में स्थित भाव के कारण उनके कक्ष में होनेवाले तुलसी के पौधे में यह क्षमता २० से २५ प्रतिशत जितनी है ।
२. पू. मेनराय काका के कक्ष के तुलसी के पौधे में सूक्ष्म में ‘वृंदवृंद’ नामक ऋषि का वास होना
इस तुलसी के पौधे में ‘वृंदवृंद’ नामक ऋषि का सूक्ष्म वास रहता है । वे तुलसी के पौधे में रहकर कलियुग में ध्यानमार्ग की साधना कर श्रीविष्णु को प्रसन्न करने हेतु प्रयत्नरत हैं । अतः इस पौधे की ओर देखने के पश्चात हमारा भी ध्यान लग जाता है तथा यह प्रतीत होता है कि उसमें से दिव्य प्रकाश बाहर निकल रहा है ।
३. परात्पर गुरुदेवजी के चैतन्यदायी निवास के कारण पू. मेनराय काका के कक्ष में स्थित तुलसी के पौधे में अधिक मात्रा में चैतन्य कार्यरत होना
पू. मेनराय काका के कक्ष के बराबर नीचे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का कक्ष है । परात्पर गुरुदेवजी के चैतन्यदायी निवास के कारण पू. मेनराय काका के कक्ष में स्थित तुलसी के पौधे में अधिक मात्रा में चैतन्य कार्यरत हुआ है । अतः इस पौधे से चैतन्य का सुवर्ण प्रकाश वातावरण में प्रक्षेपित होकर वातावरण की शुद्धि होती है ।
४. तुलसी के पत्तों का नीचे की ओर झुकने के पीछे का कार्यकारणभाव
४ अ. भक्तियोग के अनुसार कार्यकारणभाव : पू. मेनराय काका के मन में विष्णुस्वरूप परात्पर गुरुदेवजी के प्रति निस्सीम शरणागत भाव है । यही भाव अंकित होकर तुलसी के पौधे पर गिरता है; उससे इस दैवी पौधे में स्थित तुलसीदेवी के अंश का भी श्रीविष्णु के प्रति निस्सीम शरणागतभाव जागृत हुआ है । अतः इस पौधे के पत्तों पर शरणागत भाव अंकित होकर उसके पत्ते प्रतिसादरूपी प्रतिबिंब के अनुसार झुकी हुई स्थिति में हैं । इससे यह सूत्र सीखने मिला कि संतों के मध्य गुरु अथवा ईश्वर के प्रति होनेवाले भाव का परिणाम उनके संपर्क में आनेवाली वनस्पति पर भी किस प्रकार होता है ।
४ आ. ज्ञानयोगानुसार कार्यकारणभाव : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा अधिक मात्रा में निर्गुण-सगुण स्तर पर अवतारी चैतन्य का प्रक्षेपण होता है । पू. मेनराय काका के कक्ष में होनेवाले इस तुलसी के पौधे को यह चैतन्य सहन न होने के कारण इस पौधे के पत्ते चैतन्य से युक्त होने पर भी वे स्थूल में नीचे की ओर झुके हुए हैं ।
४ इ. ध्यानयोगानुसार कार्यकारणभाव : तुलसी के पौधे में वृंदवृंद नामक ऋषि सूक्ष्म में वास करते हैं । जिस समय उनका ध्यान उर्ध्वगामी रहता है, उस समय उसका परिणाम तुलसी के पौधे पर होने के कारण यह पौधा स्थूल रूप में अधिक फला फूला है । यह ऋषि निर्विकल्प समाधि-अवस्था में रहते हैं, तो उनकी कुंडलिनी शक्ति कभी सहस्रार की ओर, तो कभी मूलाधार की ओर प्रवाहित होती है । जिस समय ये ऋषि व्यष्टि साधना करते हैं, उस समय उनकी कुंडलिनी शक्ति का प्रवाह मूलाधार से सहस्रार की ओर जाता है । वर्तमान में वे पृथ्वी पर हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने हेतु तुलसी के पौधे में ध्यानधारणा कर रहे हैं । अतः अब उनकी साधना समष्टि की ओर चल रही है । ऐसे समय पर उनकी इस निर्विकल्प समाधि का परिणाम उनकी कुंडलिनी शक्ति पर होकर वह सहस्रार से मूलाधार की ओर प्रवाहित होती है । तुलसी के पौधे पर इसका परिणाम होकर उसके पत्ते नीचे की ओर झुके हुए हैं ।
कृतज्ञता
श्री गुरुदेवजी की कृपा से पू. मेनराय काका के कमरे में स्थित तुलसी के पौधे के पत्ते नीचे की ओर झुकने के पीछे का आध्यात्मिक कार्यकारण भाव ज्ञात हुआ तथा यह सीखने मिला कि संतों की साधना का प्रभाव उनके आसपास की वनस्पतियों पर किस प्रकार होता है ? ‘श्री गुरुदेवजी ने तुलसी के पौधे के माध्यम से मुझे अध्यात्मशास्त्र का नया भाग (अंग) सिखाया, इसलिए मैं श्री गुरुदेवजी के चरणों में कोटि कोटि कृतज्ञ हूं ।’
– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म द्वारा प्राप्त ज्ञान, आध्यात्मिक स्तर ६४ प्रतिशत) , सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (३.६.२०२२)
इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक
सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है । |