शराबबंदी का प्रश्न !
शराब पीने से अनेक प्रकार की समस्याएं निर्मित होती हैं। शराब का व्यसन लगने पर व्यक्ति का विनाश तो होता ही है; उसके परिवार की भी बुरी स्थिति होती है, यह हम कनिष्ठ मध्यमवर्गीय और विशेषकर निम्न वर्ग में सदैव देखते हैं। मद्यपान करने से किसी का भला हुआ, ऐसा कह ही नहीं सकते; किन्तु हानि कितनी होती है, इस की कल्पना भी नहीं कर सकते, तो भी विश्वभर में बडी मात्रा में शराब की निर्मिति होती हैे और उसका सेवन किया जाता है। इससे प्रत्येक देश को कई करोड रुपयों का कर मिलता है और उसका उपयोग विकासकार्याें में किया जाता है।
शराब के समान ही तंबाकूजन्य पदार्थ भी हैं, जो मनुष्य के स्वास्थय के लिए हानिकारक हैं; परंतु उन पर कोई भी प्रतिबंध नहीं है। उनकी खुली ब्रिक्री की अनुमति है। उससे भी शासन को कर मिलता है। विगत २ वर्षों से कोरोना के कारण लागू यातायात बंदी के कारण सब कुछ बंद था, तब केवल कर मिले; इसके लिए शराब की बिक्री को अनुमति दी गयी थी, यह ध्यान रखना चाहिए। अभी अभी देहली शासन ने तो कोरोना के समय में शराबशराब विक्रेता और उत्पादकों की आर्थिक हानि हुई है, इसलिए उन्हें कर में छूट दी है, ऐसा सामने आया है।
इससे शराब का शासन की दृष्टि से महत्त्व समझ में आता है। कोरोना के समय शराब न मिलने के कारणबहुतों की मानसिक स्थिति अत्यंत बिगडने के वृत्त प्रसिद्ध हुए थे। कुछ लोगों ने शराब बिक्री आरंभ करने की शासन से मांग भी की थी। कहा जाता है कि कुछ लोगों ने शराब न मिलने से आत्महत्या की । ‘शराब पीकर वाहन न चलाएं’, ऐसा नियम है। उसका पालन होता है कि नहीं, इसकी यातायात पुलिस द्वाराजांच भी होती है। तो भी शराबशराब पीकर वाहन चलाने से अनेक दुर्घटनाएं होती हैं और अनेक निरपराधी बिना कारण अपने प्राण गंवाते हैं।
शराब से होनेवाली हानि जानते हुए भी उसको प्रतिबंधित करने का आश्वासन चुनाव में कोई भी नहीं देता। यदि किसी भी राजकीय पक्ष ने ऐसा आश्वासन दिया, तो उसे चुनाव में मत नहीं मिलेंगे, यह प्रकट रहस्य है। अर्थात् समाज को भी शराब चाहिए और शासन को भी ! तो भी भारत के कुछ राज्यों में और केंद्रशासित प्रदेशों में शराब प्रतिबंधित की गई है। मोहनदास गांधी के राज्य गुजरात में गत ७० वर्षाेंं से शराबबंदी है। बिहार राज्य ने २ वर्ष पहले शराब पर प्रतिबंध लगाया।
मिजोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप में भी गत कुछ वर्षाें से शराब प्रतिबंधित है। प्रतिबंध के पश्चात् शराब का उत्पादन, विक्रय न होना अपेक्षित हैे; परंतु प्रत्यक्ष में ऐसा होता नहीं दिखता। गुजरात में कई बार विषैली शराब के सेवन से लोगाें की मृत्यु होने की घटनाएं हुई हैं । कुछ सप्ताह पहले ही ऐसी घटना गुजरात में हुई और कुछ लोगाें को अपना जीवन गंवाना पडा। बिहार में दो दिन पहले विषैली शराब पीने से दो लोगाें की मृत्यु हुई।
शराबबंदी होते हुए ऐसी घटनाएं होती हैं, यह चिंताजनक है। विषैली शराब केवल शराबबंदीवाले राज्यों में बेची जाती है ऐसी नहीं, अब तक देश के अनेक राज्यों में जिनमें महाराष्ट्र भी हैे, विषैली शराब से लोगाें की मृत्यु हुई है। यह क्यों होता है, यह जनता जानती है और शासक भी जानते हैं। इसपर स्थायी उपाययोजना कभी भी नहीं निकाली जाती। इसलिए ऐसी घटनाएं थोडे थोडे समय में देश में कहीं न कहीं होती रहती हैं।
व्यसनमुक्ति के लिए साधना आवश्यक !
ऐसा भी कहा जाता है कि जिन राज्याें में शराब की बिक्री अल्प हैे अथवा शराब पीनेवाले लोग अल्प हैं, वहां शराबबंदी करने के लिए शराब उत्पादन करनेवाले आस्थापनों से राज्य शासन पर दबाव बनाया जाता है । क्योंकि जब शराबबंदी होती है, तब कालेबाजारी द्वारा उन राज्याें में शराब बेची जाती है जो उसके मूल मूल्य से कई गुणा अधिक रहती है। अनेक राज्यों में चोरमार्ग से शराब बेची और पी जाती है। देश के अनेक गांवों में महिलाओं ने शराब के विरोध में आंदोलन भी किए हैं और गांव शराबमुक्त किए हैं ।
शराब की दुकाने बंद कराई हैं । शराब के कारण अनेक महिलाओं की गृहस्थियां उजडी हैं, बच्चों की बुरी स्थिति हुई है। यह सब देखते हुए शासन ने कठोर निर्णय लेना चाहिए। कुछ स्थानों पर शराब पीने के लिए शासन से अधिकृत अनुमतिपत्र लेना पडता है; किंतु वैसा अनुमतिपत्र बहुतलोग नहीं लेते। पकडे जाने पर पुलिस घूस लेकर उन्हें छोड देती है, ऐसा भी दिखाई देता है ।
अर्थात् नियम बनाए अथवा प्रतिबंध लगाया, तो भी वैसी कार्यवाही करनेवाले प्रामाणिक न हों, तो उससे कुछ भी साध्य नहीं होता। गणेशोत्सव जैसे त्योहारों के समय नगर में शराबबंदी के आदेश दिए जाते हैं; किंतु तो भी शराब पीकर शोभायात्रा में नाचनेवाले सर्वत्र पाए जाते हैं । जैसे देश के अनेक राज्याें में गोहत्या बंदी हैे; परंतु तो भी प्रतिदिन बडी मात्रा में गोहत्याएं इन राज्याें में होती हैं और गोमांस बेचा जाता है।
इसके लिए भ्रष्ट शासकीय यंत्रणा उत्तरदायी है, तथा शासकों की इच्छाशक्ति की अल्पता ध्यान में आती है। ‘केवल नियम बनाए तो हमारा दायित्व पूरा हुआ’, ऐसा उन्हें लगता है। गुजरात में कई बार विषैली शराब पीने से लोगों की मृत्यु होने पर शासन द्वारा कठोर उपाययोजना ढूंढना आवश्यक था; किंतु ऐसा नहीं हुआ। बिहार में भी बंदी के उपरांत दो बार विषैली शराब से लोगों के प्राण गए, तो भी शासन कठोर कार्यवाही नहीं करता, जिससे दूसरों में डर निर्माण हो। जिस सुसंस्कृत समाज को शराब के गंभीर दुष्परिणाम ध्यान में आते हैं, उसने संगठित होकर इसका विरोध करना चाहिए ।
साथ ही महिला संगठन, महिला आयोग, सामाजिक संगठनों ने भी अगुवाई करना आवश्यक है। इसके साथ शराब के व्यसन से लोगों को मुक्त करने के लिए उन्हें साधना सिखाना, उनसे साधना कराकर लेना अधिक आवश्यक है। साधना से व्यक्ति व्यसनों से दूर रहता है, यह सत्य है। आज वारकरी संप्रदाय अथवा अन्य कुछ आध्यात्मिक संगठनों के कार्य से कितने ही लोगों की शराब छूटने के उदाहरण समाज में पाए जाते हैं। इससे निर्व्यसनी समाज की निर्मिति के लिए साधना और धर्मशिक्षा की कितनी आवश्यकता है, यह ध्यान में आएगा!