खालिस्तानियों का प्रबंध !
ऑस्ट्रेलिया में भारत का ध्वज ले जा रहे लोगों पर वहां के कुछ खालिस्तानियों ने आक्रमण कर उनके साथ मारपीट की तथा उनके हाथों में स्थित ध्वजों का भी अनादर किया । यह घटना इसका संकेत है कि अब ऑस्ट्रेलिया में भी खालिस्तानियों की प्रभुता बढा रही है । भारत में खालिस्तानियों की गतिविधियां रोकने के लिए सरकार अब कौनसी कठोर नीति अपनाएगी, यह स्पष्ट होना अपेक्षित है ।
१८ सितंबर २०२२ को कनाडा के ब्रैंप्टन नगर में १० सहस्र से अधिक खालिस्तानी एकत्र हुए । भारत से अलग पंजाब प्रांत की मांग करनेवाले भारतविरोधी खालिस्तानी संगठन ने यह आंदोलन किया । उस समय कनाडा की सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यह आंदोलन होने दिया । कनाडा के द्वारा इतनी प्रचंड संख्या में भारत विरोधी संगठनों को फैलने देना भारत की विदेश नीति की दृष्टि से चिंता का विषय है; क्योंकि इस घटना के उपरांत विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने उस समय इस घटना को हास्यास्पद कहकर ‘कट्टरवादियों का देश तोडने का षड्यंत्र’ होने की बात कही थी । भारत को तोडने का कोई भी षड्यंत्र हास्यास्पद नहीं हो सकता, अपितु उसे योजनाबद्ध एवं विचारपूर्वक किया गया है ।
खालिस्तानियों का इतिहास एवं योजना
९३ वर्ष पूर्व मोतीलाल नेहरू ने ‘संपूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव रखा । उस समय ३ गुटों ने उसका विरोध किया । उनमें से पहला गुट जिन्ना की मुस्लिम लीग का था, दूसरा डॉ. आंबेडकर के दलित गुट था, तो तीसरा तारासिंह के शिरोमणि अकाली दल का था । यही खालिस्तानियों की जड थी । तब से सिखों को भारत तोडकर एक भिन्न प्रांत चाहिए था । ‘इंदिरा गांधी ने वर्ष १९८४ में जो ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ अभियान चलाया था, उससे भारत के टुकडे करने के अलगाववादियों के मनसूबों पर पानी फेर दिया गया है’, ऐसा भारतीयों को लग रहा था । उसी समय इंदिरा गांधी की हत्या हुई । उसके उपरांत विदेशों में गुप्त पद्धति से खालिस्तानियों का संगठन बढता रहा । वर्ष २००७ में गुरपतवंत सिंह पन्नू ने अमेरिका में ‘सिख फॉर जस्टिस’ नाम से जो भारत विरोधी संगठन की स्थापना की, वही भारत विरोधी संगठन आज पूरे विश्व में ‘जनमत संग्रह’ करने के नाम पर भारत विरोधी द्वेष फैलाकर खालिस्तान की मांग करते हुए खालिस्तानियों का संगठन खडा कर रहा है । देहली के शाहीनबाग आंदोलन के विपुल भोजन की आपूर्ति करनेवाले खालिस्तानी थे तथा कृषि कानून रद्द करने की मांग को लेकर देहली की सडकों पर १ वर्ष तक सरकार विरोधी आंदोलन कर सरकार को त्रस्त करने की तथा अंततः उन कानूनों को रद्द करने पर बाध्य करने के पीछे गुप्त शक्ति भी खालिस्तानियों की थी, यह बात किसी से छिपी नहीं है । इन घटनाओं से भारत विरोधी खालिस्तानियों की शक्ति, उनका भारत के बाहर विकसित होना तथा विदेशों से इन अलगाववादियों को मिलनेवाली बडी आर्थिक सहायता उजागर हुई । ५ जनवरी २०२२ को पंजाब के फिरोजपुर में भाजपा की ‘रैली’ में भाग लेने गए प्रधानमंत्री मोदी को मार्ग में एक पुल पर रुकना पडा तथा कुछ ही समय में सुरक्षा के कारणों से वापस जाना पडा । खालिस्तानियों का गुप्त षड्यंत्र अब देश के प्रधानमंत्री के प्राणों पर संकट बनने तक जा पहुंचा है, यह भी उस समय स्पष्ट हुआ । देश के पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या करनेवाले खालिस्तानी कितने घातक कदम उठा रहे हैं ?, उसके उपरांत इसका संज्ञान लेकर सरकार ने इसके लिए उचित कदम उठाए ही होंगे ।
वैचारिक प्रतिवाद भी चाहिए !
आज तक हिन्दुओं ने कभी भी सिखों को भिन्न धर्म के न मानकर हिन्दू धर्मी ही माना था; परंतु अंग्रेजों की प्रेरणा से कांग्रेसी हिन्दूद्वेषी राजनीतिज्ञों ने ‘सिख धर्म’ के नाम से उल्लेख करना आरंभ किया । कुछ ही दिन पूर्व हरकिशन सिंह पब्लिक स्कूल की एक संगीत अध्यापिका ने देवी सरस्वती का पूजन किया; इसलिए ‘देहली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी’ ने उसे सीधे निलंबित किया । ‘क्या यह मूर्तिविरोधी इस्लाम के साथ निकटता रखनेवाले खालिस्तानी विचारों का प्रभाव है ?’, यह प्रश्न इस घटना के कारण उठ रहा है । भारतीय एवं हिन्दुओं के प्रति द्वेष का पोषण करनेवाले खालिस्तानियों ने आतंकवादियों से हाथ मिलाया है, यह भारत में सरकार विरोधी आंदोलन से समय-समय पर स्पष्ट हुआ । ‘सैकडों सिख क्रांतिकारियों ने इस भारतभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान दिया है, क्या वह अलग खालिस्तान मिले इसलिए ! अब उन्हीं के समाज की अगली पीढी भारतमाता के टुकडे करने के लिए आतुर बन गई है, यह कितना उचित है ?’, यह प्रश्न पूछकर सिख भाईयों में राष्ट्र की अस्मिता जागृत करना आवश्यक है । भारत के शत्रु के रूप में आंतकियों से अपनापन जतानेवाले सिख पाकिस्तान में सिख लडकियों एवं भाईयों पर हो रहे अत्याचारों की अनदेखी करते हैं । ‘पाकिस्तान में भी सिखों के गुरुद्वारा एवं तीर्थस्थल हैं; तो क्या खालिस्तानी वहां की भी भूमि मांगेंगे’, उनसे यह प्रश्न किया जाना चाहिए । ‘इस्लाम की दृष्टि में सिख भी काफिर ही हैं’, यह सच्चाई उनकी नसों-नसों में भर देनी चाहिए । सिख धर्मगुरुओं ने इस्लाम के विरुद्ध किया हुआ संघर्ष, उसके लिए बनाई गई सेना, इस्लामी राजाओं द्वारा सिखों का किया हुआ अनन्वित उत्पीडन तथा उसके विरुद्ध लडते समय सिखों द्वारा दिए गए बलिदान की सीख सिख समाज में निरंतर जागृत रखकर उन्हें ही खालिस्तानियों का विरोध करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए । क्या सरकार इस दृष्टि से कुछ कदम उठा रही है ?, यह सरकार को बताना चाहिए ।
सिख भाईयों तथा खालिस्तानप्रेमियों को उनके सच्चे इतिहास का स्मरण दिलाकर उनमें राष्ट्राभिमान जागृत करना चाहिए । अंततः किसी भी अभियान अथवा आंदोलन के पीछे कुछ न कुछ वैचारिक नींव तो होती ही है । खालिस्तानियों की वैचारिक नींव कैसे खोखली है तथा उनका वास्तविक शत्रु भारत अथवा हिन्दू नहीं, अपितु इस्लाम ही है, यह उन्हें बताया गया, तो खालिस्तानी आंदोलन का विरोध करनेवालों को सहायता मिलेगी । इस्लाम की त्रुटियां वैचारिक स्तर पर आगे आने पर आज पूरे विश्व से इस्लाम का विरोध हो रहा है । जिस प्रकार कूटनीति का उपयोग कर खालिस्तानी आंदोलन कठोरता से तोड डालना चाहिए, साथ ही यहां के सिखों का भी वैचारिक प्रबोधन किया जाना चाहिए !