महिलाओं को मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की अनुमति है !
सर्वोच्च न्यायालय में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का प्रतिज्ञापत्र !
नई देहली – मुस्लिम महिलाएं चाहें तो मस्जिद में जाकर नमाज पढ सकती हैं । इस्लाम में महिलाओं के मस्जिद में पढ़ने पर कोई बंधन नहीं है किन्तु उन्हें मस्जिद में पुरुषों के बीच या उनके साथ नहीं बैठना चाहिए । ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक प्रतिज्ञापत्र में सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि यदि किसी मस्जिद की प्रबंधन समिति ने महिलाओं के लिए अलग जगह निर्धारित की है, तो महिलाएं वहां जा सकती हैं । पुणे की अधिवक्ता फरहा अनवर हुसैन शेख ने वर्ष २०२० में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट कर मांग की थी कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को अवैध घोषित किया जाए । सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को प्रतिज्ञा पत्र प्रस्तुत करने का आदेश दिया था, तदनुसार बोर्ड ने उपरोक्त जानकारी दी ।
'मस्जिद में अलग बैठकर नमाज पढ़ सकती हैं महिलाएं,' सुप्रीम कोर्ट में बोला मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड #SupremeCourt https://t.co/PgB3sYfcF0
— AajTak (@aajtak) February 9, 2023
याचिका में दावा किया गया था कि इस्लाम की पवित्र किताब कुरान में महिलाओं को मस्जिदों में प्रवेश की अनुमति नहीं देने का कोई उल्लेख नहीं है । यह प्रतिबंध मुस्लिम महिलाओं के गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करने के अधिकार सहित उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है । महिला तीर्थयात्री अपने परिवारों के पुरुषों के साथ मक्का और मदीना में हज कर सकती हैं।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने प्रतिज्ञापत्र में निम्नलिखित बिंदुऒं का उल्लेख किया है;
१. मस्जिद में नमाज के लिए जाना है या नहीं यह महिलाओं की इच्छा पर निर्भर है । मुसलमान महिलाओं पर ५ बार नमाज पढने या शुक्रवार की नमाज़ पढने की कोई बाध्यता नहीं है । यदि महिलाएं घर में या मस्जिद में नमाज पढ़ती हैं, तो उन्हें वही पुण्य प्राप्त होगा, किन्तु पुरुषों के लिए ऐसा नहीं है । नियमानुसार उन्हें केवल मस्जिद में ही नमाज पढ़नी चाहिए ।
२. बोर्ड विशेषज्ञों का एक निकाय है । वह इस्लाम के सिद्धांतों पर परामर्श देता है किन्तु वह किसी भी धार्मिक विषय पर प्रतिक्रिया नहीं देता ।
३. मक्का या मदीना में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था है । पुरुषों और महिलाओं को अलग रखना इस्लामी शास्त्रों में निहित एक धार्मिक आवश्यकता है । इसे समाप्त नहीं किया जा सकता । मक्का और मदीना के संबंध में याचिकाकर्ता की स्थिति पूरी तरह अयोग्य और भ्रामक है । मक्का के संबंध में पुरुष और महिला दोनों को एक दूसरे से दूरी बनाए रखने का परामर्श दिया जाता है । जहां पुरुष एवं महिलाएं अलग-अलग समूहों में होने के कारण विलग रहते हैं ।
४. भारत में मस्जिद समितियां महिलाओं के लिए अलग स्थान बनाने के लिए स्वतंत्र हैं । मुस्लिम समुदाय को भी नई मस्जिद बनाते समय महिलाओं के लिए ऎसा स्थान रखने का पूरा ध्यान रखना चाहिए।