विकार-निर्मूलन हेतु शिवजी का जप उपयुक्त
।। ॐ नमः शिवाय ।।
१. शारीरिक विकार
१. ऐंठन, मिरगी अथवा दौरे पडना (कनवलजन), २. मस्तिष्क में रक्तस्राव होना (ब्रेन हेमरेज), ३. स्पर्शबोध न होना, ४. छाले (मुख में अल्सर), ५. लार अल्प बनना, ६. गले के सर्व विकार, ७. रक्तवाहिनियों के सर्व विकार, ८. दमा (अस्थमा), ९. पाचनतंत्र के सर्व विकार, १०. वृक्क का (किडनी का) अक्षम होना, ११. मासिक धर्म के समय अधिक रक्तस्राव होना, १२. स्तनों के सर्व विकार, १३. हड्डियों का क्षरण होना, १४. हड्डियां टेढी होना, १५. गरदन के सर्व विकार, १६. खुजली होना, १७. त्वचा पर लाल चकत्ते आना, १८. रक्त के सर्व विकार, १९. सामान्य ज्वर, २०. खसरा (मीजल्स), २१. गरदन की लसीका ग्रंथि सूजना (गंडमाला), २२. रक्तस्राव, २३. थकान, २४. शरीर भारी होना (सुस्ती आना), २५. सूजे हुए स्थान पर दबाने पर गड्ढा पडना एवं २६. पूरे शरीर में दाह (जलन) होना
२. मानसिक विकार
सर्व मानसिक विकार
३. अन्य लक्षण अथवा विकार (शरीर और मन से संबंधित, तथा किसी भी अवयव में उत्पन्न हो सकनेवाले लक्षण अथवा विकार)
१. शरीर के घटकों का क्षरण होना (उदा. शरीर कृश होना, हड्डियों का क्षरण होना (अस्थि भंगुरता), जोडों की चिकनाई घटना)
२. शरीर में रीतापन बढना (उदा. सिर रीता-सा लगना, पेट फूलना, जोडों में अंतर बढना)
३. ध्वनि आना (उदा. जोडों से ध्वनि निकलना)
४. अवयवों की (उदा. जोडों की गतिविधियों में बाधा आना) तथा
५. पित्तके सर्व विकार
४. अहं न्यून करने के लिए विशेष उपयुक्त
।। श्री रुद्राय नमः ।।
१. शारीरिक विकार : शरीर में बढनेवाली सर्व प्रकार की गांठें
२. मानसिक विकार : यौन क्रिया में सुख न मिलना तथा कामवासना न्यून होना
विकार-निर्मूलन हेतु जप प्रतिदिन विकार की तीव्रता अनुसार १ से ६ घंटे तक कर सकते हैं ।
(संदर्भ – सनातन का ग्रंथ ‘विकार-निर्मूलन हेतु नामजप’ (भाग २)