शिवमंदिर की विशेषताएं
शिवजी विवाहित दंपतियों के देवता, ‘शक्त्यासहितः शंभुः’ हैं । यदि शक्ति न हो, तो शिव का शव होता है । अन्य देवता चूंकि अकेले होते हैं, इसलिए उनकी मूर्तियों में अल्प ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे उनके देवालयों में ठंडक प्रतीत होती है । शिवजी के देवालय में अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होने के कारण शक्ति का अनुभव होता है ।
शिवमंदिर में अन्य देवताओं की प्राण-प्रतिष्ठा (प्रतिष्ठापना) न करना एवं श्रीविष्णु के देवालय में करना
शिवजी ‘लय’ के देवता हैं । ‘लय’ के देवता होने के कारण शिवजी के साथ अन्य देवताओं की आवश्यकता नहीं होती । इसलिए शिवालय में अन्य देवता नहीं होते । इसके विपरीत श्रीविष्णु स्थिति के देवता हैं, इसलिए स्थिति से संबंधित कार्य हेतु अन्य देवता होते हैं । ऐसेमें भी कुछ स्थानों के देवालय की व्यवस्थापन समिति श्रद्धालुओं को एक साथ ही विविध देवताओं के दर्शन का लाभ प्रदान करने के उद्देश्य से अथवा अन्य किसी कारण से शिवजी के साथ ही अन्य देवताओं की स्थापना भी शिवालय में करती है ।
शिवपूजा करनेवाले ब्राह्मण अपनी पूजा को अखंड रखते हैं, इसलिए वे शिवपिंडी से पिछले दिन के बासी चढावन को स्वयं नहीं उतारते; इस कार्य हेतु शिवजी के मंदिर में गुरव तथा पार्वती के मंदिर में भोपे होते हैं । यह उसी प्रकार है जैसे पूजा, विवाह आदि धार्मिक कार्य करनेवाले ब्राह्मण पिंडदान विधि के दौरान भोजन ग्रहण नहीं करते ।
शिवपिंडी का अभिषेक वैदिक ब्राह्मण मंत्रोच्चारण से करते हैं; परंतु भोगप्रसाद को ग्रहण नहीं करते । पूजा करनेवाले ब्राह्मण पिंडदान विधि भी नहीं करते ।
शिवमंदिर की रचना इस प्रकार की होती है जिससे वर्ष में न्यूनतम एक बार शिवलिंग पर सूर्यकिरण पडे ।
शृंगदर्शन के लाभ शिवजी की पिंडी से प्रक्षेपित तेज सह पाना‘शिवजी की पिंडी से प्रक्षेपित तेज सर्वसामान्य व्यक्ति सहसा नहीं सह पाता । नंदी के सींगों से प्रक्षेपित शिवतत्त्व की सगुण मारक तरंगों के कारण व्यक्ति के शरीर में विद्यमान रज-तम कणों का विघटन होता है तथा उसकी सात्त्विकता बढने में सहायता होती है । इस कारण व्यक्ति शिवजी की पिंडी से निकलनेवाली शक्तिशाली तरंगें सह पाता है । नंदी के सींगों के दर्शन किए बिना शिवजी के दर्शन करने पर तेज की तरंगों के आघात से शरीर में उष्णता निर्माण होना, सिर बधीर (सुन्न) होना, शरीर अचानक कांपना आदि कष्ट हो सकते हैं ।’ – श्रीमती प्रियांका गाडगीळ |