हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने का अर्थ भारत को गंवा देना !
भाजपा के नेता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने ‘राज्यों की जनसंख्या के आधार पर वहां के हिन्दुओं को ‘अल्पसंख्यक’ की श्रेणी मिले; इसके लिए सर्वाेच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की है । इस विषय में न्यायालय के निर्देश के अनुसार केंद्र सरकार ने सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों से यह जानकारी मांगी थी । उसके अनुसार देश के २४ राज्यों तथा ६ केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा दी गई जानकारी केंद्र सरकार ने सर्वाेच्च न्यायालय में प्रस्तुत की । उसका अध्ययन करने के उपरांत सर्वाेच्च न्यायालय उस पर उचित निर्णय लेगा । कदाचित जिन राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, उन राज्यों में हिन्दुओं को ‘अल्पसंख्यक’ की श्रेणी तथा सुविधाएं मिलेंगी; परंतु जिन बहुसंख्यक हिन्दुओं से मिलनेवाले कर पर देश की अर्थव्यवस्था चलती है, हिन्दुओं के जिन पूर्वजों ने देश की साधन संपत्ति एवं संस्कृति अक्षुण्ण रखने हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया, उन हिन्दुओं को भारत में अच्छी सुविधाएं मिलें; इसके लिए ‘अल्पसंख्यक’ होने की उपाधि लगानी पडे, तो यह समस्त हिन्दुओं के लिए अपमानजनक है । आक्रांताओं से देश की रक्षा तथा हिन्दुत्व के लिए सर्वस्व का त्याग करनेवाले सभी राष्ट्रपुरुषों को अपमानित करनेवाला है, अब प्रश्न यह है, क्या हिन्दुओं का इसका भान तो हो रहा है ?
जो धर्म ‘वन्दे मातरम्’ बोलने की मान्यता नहीं देता, उस धर्म के आधार पर ‘अल्पसंख्यक’ के रूप में उन्हें मातृभूमि की साधन-संपत्ति बांटी जा रही है । देश के तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री (डॉ. मनमोहन सिंह) का कहना है, ‘इस देश की साधन-संपत्ति पर सबसे पहले मुसलमानों का अधिकार है !’ समस्त हिन्दुओं के लिए यह स्थिति स्वीकार्य नहीं है । विश्व के किसी भी देश में बहुसंख्यक नागरिकों के अधिकारों का हनन कर अल्पसंख्यकों से लाड-प्यार नहीं किया जाता; परंतु भारत में बहुसंख्यकों को सुविधाएं प्राप्त करने के लिए ‘हम अल्पसंख्यक हैं’, ऐसा बताते हुए सर्वाेच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट करनी पड रही है । यह कैसा विरोधाभास है ? इसलिए अब हिन्दुओं को समय रहते ही क्या उन्हें ‘अल्पसंख्यक’ बनकर आर्थिक एवं भौतिक लाभ प्राप्त करने हैं ?, इसका विचार करना चाहिए ।
आधुनिकतावादी तो हिन्दुओं को ही अपराधी प्रमाणित करेंगे !
अल्पसंख्यक हैं; इसलिए भारत के हिन्दुओं ने कभी भी मुसलमानों अथवा अन्य पंथियों पर अपना धर्म थोपने का प्रयास नहीं किया; परंतु इसके विपरीत मुसलमानों ने तलवार के बल पर लाखों हिन्दुओं का धर्मांतरण एवं संहार किया । ईसाईयों ने लालच देकर अथवा धोखाधडी से हिन्दुओं का धर्मांतरण किया; परंतु तब भी स्वतंत्रता के उपरांत हिन्दुओं ने इन दोनों पंथों को स्वयं में समा लिया । अपनी सुविधा के अनुसार इसकी अनदेखी कर आधुनिकतावादियों के गुट ईसाईयों एवं मुसलमानों का पक्ष लेकर हिन्दुओं को अत्याचारी प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं । ईसाई तथा मुसलमान अल्पसंख्यक हैं; इस कारण कथित आधुनिकतावादी अथवा मानवतावादी गुट (गिरोह) उनके प्रति सहानुभूति दिखा रहे हैं, ऐसी किसी की अवधारणा हो सकती है परंतु जिन राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, वहां के हिन्दुओं के प्रति इन लोगों ने कभी भी सहानुभूति नहीं दिखाई । केवल इतना ही नहीं, अपितु कश्मीर से विस्थापित ४.५ लाख कश्मीरी पंडित, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश के अल्पसंख्यक पीडित हिन्दुओं की स्थिति के विषय में भी ये लोग अपनी सुविधा के अनुसार मौन धारण किए रहते हैं । उसके कारण ‘हिन्दूद्वेष’ ही इन लोगों का काम करने का एजेंडा है, इसे हिन्दुओं को ध्यान में लेना होगा ।
यह तो कांग्रेसी राजपथ !
‘मुसलमानों का शैक्षिक, आर्थिक एवं सामाजिक विकास हो’, इसके लिए कांग्रेस ने वर्ष २००५ में सच्चर आयोग का गठन किया । इस समिति ने कुल ७६ अनुशंसाएं प्रस्तुत कीं । उसमें मुसलमानों को जानबूझकर पिछडा दिखाने का प्रयास किया गया; परंतु उस पिछडेपन का कारण ‘इस्लामी कट्टरतावाद’ है, यह नहीं बताया गया । यह ब्योरा मिलते ही केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मुसलमानों के विकास के लिए १५ सूत्री कार्यक्रम घोषित किया । वर्ष २०१० के देश के बजट में भिन्न-भिन्न सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यकों के लिए १५ प्रतिशत धनराशि सुरक्षित रखी गई । वर्ष २००७ से २०१२ की पंचवर्षीय योजना में तो अल्पसंख्यकों की विकास योजनाओं के लिए ७ सहस्र करोड रुपए पारित किए गए । अभी भी भारत में केंद्र सरकार की ओर से अल्पसंख्यकों के विकास के लिए ४१ योजनाएं चल रही हैं तथा सच्चर आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर चलाया जानेवाला १५ सूत्रीय कार्यक्रम और भी भिन्न है । भारत में मुसलमानों को बहुसंख्यक बनाने के लिए कांग्रेस के द्वारा बनाया गया यह ‘राजपथ’ है ।
वर्तमान स्थिति में देश के ८ राज्यों में हिन्दू ‘अल्पसंख्यक’ हैं । उसके कारण हिन्दुओं को इस राज्य में ‘अल्पसंख्यक’ के रूप में सुविधा मांगने की स्थिति आ गई है । इन राज्यों में हिन्दुओं के अल्पसंख्यक बनाने की प्रक्रिया चरणबद्ध पद्धति से चल रही है । भविष्य में भारत के अन्य कुछ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए, तो क्या होगा ?, इसकी भयावहता ध्यान में आने के लिए हिन्दुओं को ‘कश्मीर’ से पलायन करने के लिए विवश कश्मीरी पंडितों का उदाहरण अपने सामने लाना चाहिए । यह अतिशयोक्ति नहीं है । वर्ष १९४७ में देश का विभाजन होकर पाकिस्तान बना । उससे पूर्व अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, तिब्बत, श्रीलंका, म्यांमार जैसे देश भारत से विभाजित होकर स्वतंत्र देश बने । इनमें से एक भी देश हिन्दुओं का नहीं रहा; इसलिए हिन्दुओं का अल्पसंख्यक बनना क्या है ?, इसका उत्तर है, ‘भारत को गंवा देना ही !’ इसलिए अल्पसंख्यक बनना है ? अथवा वैभवशाली भारत का निर्माण करना है ?, यह हिन्दुओं को सुनिश्चित करना होगा ।