‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के अंतर्गत ‘हस्त एवं पाद समुद्रशास्त्र’ के संदर्भ के शोध कार्य में सम्मिलित होकर साधना के स्वर्णिम अवसर का लाभ लें !

व्यक्ति की हथेलियों एवं तलवों की रेखाएं, उनका एक-दूसरे से संयोग, चिन्ह, उभार एवं आकार से व्यक्ति का स्वभाव, गुण-दोष, आयुर्दाय (दीर्घायु), भाग्य, प्रारब्ध इत्यादि ज्ञात कर सकते हैं । यह शास्त्र ‘हस्त एवं पाद समुद्रशास्त्र’ के नाम से प्रसिद्ध है । इस प्राचीन विद्या के संवर्धन के लिए ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में शोध किया जाएगा । यह शोध आध्यात्मिक विषयों पर होगा । इस कार्य में सहभागी होने का अवसर है ।

वर्तमान में फोंडा, गोवा स्थित शोध केंद्र में हस्त-पाद समुद्रशास्त्र के संदर्भ में निम्नांकित सेवाएं उपलब्ध हैं ।

१. शोध के आध्यात्मिक विषय

१ अ. व्यक्ति को आध्यात्मिक स्वरूप के कष्ट होना : व्यक्ति का अनिष्ट प्रारब्ध एवं समय की प्रतिकूलता के कारणों से सूक्ष्म द्वारा अस्तित्व में रही अनिष्ट शक्तियां व्यक्ति को भिन्न प्रकार से कष्ट देती हैं । इसे ‘आध्यात्मिक कष्ट’ कहते हैं । हस्त-पाद सामुद्रिक शास्त्र के द्वारा ‘क्या व्यक्ति को आध्यात्मिक कष्ट होने का ध्यान में आता है ?’, इस संदर्भ में शोध करना है ।

१ आ. व्यक्ति का जन्म उच्च लोक से होना : सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने स्वर्ग, महर्, जन आदि उच्च लोकों से पृथ्वी पर जन्मे १ सहस्र से अधिक बालकों को पहचाना है । उन्हें ‘दैवी बालक’ कहा जाता है । ये बालक जन्मतः आध्यात्मिक दृष्टि से प्रगल्भ हैं । इन बालकों में से जो बालक अब युवावस्था में हैं, उनका हस्त-पाद समुद्रशास्त्र की दृष्टि से अध्ययन कर ‘क्या उनका जन्म उच्च लोक से हुआ है, ऐसा ध्यान में आता है ?’, इस संदर्भ में शोध करना है ।

१ इ. संत एवं सद्गुरु के संदर्भ में शोध : गुरुकृपायोगानुसार साधना कर २८.११.२०२२ तक १२२ साधकों ने संतपद प्राप्त किया है । ‘संत एवं सद्गुरु के हस्त-पाद समुद्रशास्त्र की दृष्टि से अध्ययन कर उसमें क्या कुछ विशेषतापूर्ण तथ्य दिखाई देते हैं ?’, इसका अध्ययन करना है । जिन्हें आध्यात्मिक कष्ट है, ऐसे व्यक्ति, उच्च लोक से जन्मे बालक, संत तथा सद्गुरु पद प्राप्त साधकों की हथेलियों तथा तलवों के कुछ छाप एवं छायाचित्र ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के संग्रह में हैं ।

आवश्यक कौशल : इसके लिए हस्त-पाद समुद्रशास्त्र का प्राथमिक ज्ञान एवं संगणक का ज्ञान होना आवश्यक है । (यह सेवा घर पर रहकर भी की जा सकती है ।)

२. हस्त-पाद समुद्रशास्त्र के विषय में ग्रंथों का निर्माण

‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ को इस विज्ञान से संबंधित ग्रंथ-निर्मिति करने की इच्छा है, जिससे समाज को हस्त-पाद समुद्रशास्त्र की जानकारी मिल सके, साथ ही विज्ञान के नए शोध होकर शास्त्र का संवर्धन हो । विश्वविद्यालय के संग्रह में उपस्थित लेखन, संदर्भ ग्रंथ एवं नए शोध के आधार पर ग्रंथों की निर्मिति संभव है । ग्रंथों की निर्मिति तीव्र गति से होने के लिए लेखन का संकलन करना, ग्रंथों की अनुक्रमणिका तैयार करना, अनुक्रमणिका के अनुसार लेखन रचना कर उसका अंतिम संकलन करना इत्यादि सेवाओं के लिए साधकों की आवश्यकता है ।

आवश्यक कौशल : इसके लिए हस्त-पाद समुद्रशास्त्र का प्राथमिक ज्ञान, एवं संगणक का ज्ञान होना आवश्यक है । मराठी भाषा का व्याकरण एवं शब्द रचना का न्यूनतम ज्ञान होना आवश्यक है । इससे ग्रंथ संकलन सिखाना सरल होगा । यदि आप उपरोक्त सेवा करने के लिए इच्छुक हैं; परंतु इस सेवा का ज्ञान नहीं है, तो संबंधित साधकों को उस विषय में प्रशिक्षण दिया जाएगा । जो साधक उपरोक्त सेवा करने के लिए इच्छुक हैं, वे जिलासेवकों के माध्यम से निम्नांकित सारणी के अनुसार अपनी जानकारी mav.research2014@gmail.com  इस संगणकीय पते पर अथवा डाक पते पर भेजें । कृपया ई-मेल भेजते समय उस विषय में ‘हस्त-पाद सामुद्रिक,’ (Hast-Paad Samudrik), इस प्रकार उल्लेख करें । (२८.११.२०२२)

डाक पता

श्री. आशिष सावंत, द्वारा ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’, भगवतीकृपा अपार्टमेंट्स, एस-१, दूसरा तल, बिल्डिंग ए, ढवळी, फोंडा, गोवा. ४०३४०१.