साधको; कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग एवं गुरुकृपायोग, इन योगमार्गाें के अनुसार प्रत्येक सेवा कर तीव्र गति से आध्यात्मिक उन्नति करें !
‘आश्रम में रहनेवाले, साथ ही प्रसार में सेवा करनेवाले साधक विभिन्न सेवाएं करते हैं । साधकों ने उन्हें मिली प्रत्येक सेवा यदि कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग एवं गुरुकृपायोग इन योगमार्गाें के अनुसार की, तो वह परिपूर्ण एवं भावपूर्ण होगी ।’ इन योगमार्गाें के अनुसार सेवा कैसे करें?, इस विषय में आगे सूत्र दिए गए हैं ।
१. कर्मयोग
(क्रियमाण का उचित उपयोग कर सेवा करना)
समय का उचित नियोजन कर उसके अनुसार सेवा करना, उदा. परिपूर्ण सेवा होने के लिए स्वयं में पूछेने की तथा बताने की वृत्ति उत्पन्न करना, मिली हुई सेवा समर्पित होकर परिपूर्ण करना तथा सेवा के लिए आवश्यक कौशल (उदा. संगणक, वाहन चलाना आदि) प्राप्त करना इत्यादि । कर्मयोग के कारण हम में गुण उत्पन्न होते हैं, हम से त्याग होता है तथा हम में सीखने की वृत्ति उत्पन्न होती है । सेवा में अन्यों को समा लेने से अन्यों से निकटता होती है तथा उससे हम में ‘प्रीति’, इस गुण का विकास होता है ।
२. ज्ञानयोग
(सेवा अभ्यासपूर्ण होने के लिए चिंतन करना)
सेवा की गहराई समझ लेना, सेवा में विद्यमान सूक्ष्मताओं का अध्ययन करना, सेवा में आनेवाली समस्याओं का अध्ययन करना इत्यादि करें । ज्ञानयोग के द्वारा सेवा के संदर्भ में नई-नई कल्पनाएं सूझती हैं अर्थात ही हमें ज्ञान होता है । उसके कारण हमारी सेवा नवीनतापूर्ण एवं परिपूर्ण होती है ।
३. भक्तियोग
(भगवान से सहायता लेकर सेवा करना)
सेवा करते समय प्रार्थना एवं कृतज्ञता व्यक्त करना, ‘भगवान ही मेरे माध्यम से यह सेवा करवा ले रहे हैं’, यह भाव रखना, निरंतर ईश्वर के आंतरिक सान्निध्य में रहना इत्यादि । भक्तियोग के द्वारा हमारी सेवा सहजता से होती है । सेवा में कोई समस्या आने पर भगवना सहायता करते हैं, साथ ही सेवा में अनिष्ट शक्तियों द्वारा व्यवधान उत्पन्न करने से हमारी रक्षा होती है । मुख्य रूप से भक्तियोग के कारण हमारी सेवा भगवान को प्रिय लगती है तथा उससे भगवान का हम पर ध्यान रहता है ।
४. गुरुकृपायोग
(सेवा के द्वारा स्वभावदोषों एवं अहं का निर्मूलन करना)
सेवा में हुए चूकों के विषय में चिंतन कर उन चूकों के लिए संबंधित साधकों से क्षमा मांगना तथा प्रायश्चित्त करना, सेवा के परिपूर्ण होने में बाधा सिद्ध होनेवाले स्वयं के स्वभावदोषों एवं अहं के पहलुओं का निर्मूलन करना आदि । गुरुकृपायोग के कारण साधक की आध्यात्मिक उन्नति होती है तथा साधना को गति मिलती है । आध्यात्मिक कष्ट हो, तो वह घट जाता है, साथ ही गुरुदेवजी का कृपाशीर्वाद मिलकर मानवजन्म सार्थक होता है ।
साधकों ने उक्त पद्धति से प्रत्येक सेवा की, तो एक ही समय पर अनेक योग साध्य होंगे, साथ ही तीव्रगति से आध्यात्मिक उन्नति भी होगी ।’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (११.१०.२०२२)
साधको, अनिष्ट शक्तियों के साथ सूक्ष्म की लडाई का अंतिम चरण आरंभ होने के कारण भगवान के प्रति श्रद्धा बढाएं तथा श्रद्धा के बल पर सूक्ष्म की लडाई का धैर्य से सामना करें !‘आज के समय में सूक्ष्म की लडाई का अंतिम चरण चल रहा है । इसके अंतर्गत ६ ठे एवं ७ वें पाताल में स्थित अनिष्ट शक्तियों के साथ सूक्ष्म से लडाई चल रही है । उसके कारण सभी स्थानों पर कष्ट बढ गए हैं तथा साधकों के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्ट बढ गए हैं । इस कारण पूर्णकालीन साधना करनेवाले कुछ साधकों के मन में विचार आ रहे हैं कि ‘अब अगली शिक्षा लेनी चाहिए, नौकरी करनी चाहिए अथवा गृहस्थिक जीवन का उपभोग करना चाहिए ।’ ‘नामजपादि उपाय करने पर ये विचार घट जाते हैं’, ऐसा ध्यान में आया । अनिष्ट शक्तियों के साथ लडाई का यह अंतिम चरण है । इसलिए अनिष्ट शक्तियां अपनी सभी शक्ति लगाकर सूक्ष्म से निरंतर आक्रमण कर रही हैं । अनिष्ट शक्तियां ईश्वरीय राज्य की स्थापना के कार्य में सम्मिलित साधकों को अधिकाधिक कष्ट पहुंचाकर उन्हें साधना से परावृत्त करने का प्रयास कर रही हैं । अनिष्ट शक्तियों का बल भले ही अधिक हो; परंतु ईश्वर ही रक्षणकर्ता होने से साधक निराश न हों । ईश्वर एवं सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखकर नामजपादि उपचार कर अपनी साधना बढाएं ! अनुकूल काल में की गई साधना की अपेक्षा प्रतिकूल काल में की जानेवाली साधना का फल अनेक गुना मिलता है । इसलिए साधक गंभीरता से आध्यात्मिक स्तर के उपचार करने के साथ ही साधना के प्रयास बढाने की ओर विशेष ध्यान दें । ‘साधको, श्रद्धा के कारण ही प्रतिकूल काल का सामना करने का बल मिलने से भगवान के प्रति दृढ श्रद्धा रखकर साधनारत रहें !’ – श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (३०.११.२०२२) |