सनातन के ‘घर-घर रोपण’ अभियान के अंतर्गत मुंबई, ठाणे, रायगड एवं गुजरात क्षेत्र के साधकों द्वारा किए गए विशेष प्रयास
भावी भीषण आपातकाल की तैयारी के रूप में वर्ष २०२१ की कार्तिकी एकादशी के शुभमूहूर्त पर सनातन ने ‘घर-घर रोपण’ अभियान का आरंभ किया । इस अभियान के अंतर्गत ‘सनातन प्रभात’ के माध्यम से घर-घर सब्जियों एवं औषधीय वनस्पतियों का रोपण करने के विषय में साधकों का उद्बोधन किया गया । इस वर्ष कार्तिकी एकादशी को इस अभियान को १ वर्ष पूर्ण हुआ । उसके उपलक्ष्य में मुंबई, ठाणे, रायगड एवं गुजरात क्षेत्र के साधकों द्वारा विगत पूरे वर्ष में किए प्रयास देखेंगे ।
१. ‘रोपण’ विषय पर आधारित सनातन के ग्रंथों का वितरण करना
सनातन का ‘घर-घर रोपण’ अभियान जब आरंभ हुआ, तब से ‘भूमि की उपलब्धता के अनुसार ‘औषधीय वनस्पतियों का रोपण’ एवं ‘औषधीय वनस्पतियों का रोपण कैसे करें ?’, ये ग्रंथ कितने साधकों के पास हैं, इसकी समीक्षा की । इसके साथ ही जिन साधकों को ये ग्रंथ चाहिए थे, उनके लिए समयसीमा निर्धारित कर ग्रंथ उपलब्ध कराए गए । सभी साधकों को इन ग्रंथों का अध्ययन करने के लिए कहा गया, साथ ही इस विषय के संबंध में साधकों की शंकाएं भी लिख ली गईं ।
२. रोपण के संबंध में एकत्रित अध्ययन करना
‘रोपण करने के लिए कितने साधकों के पास कितनी भूमि उपलब्ध है ?, अल्प भूमि में रोपण करने के लिए क्या उपाय किए जाएं ? तथा उपलब्ध भूमि में प्रधानता से किन पौधों का रोपण किया जा सकेगा ?, इसका सभी साधकों ने मिलकर अध्ययन किया । उसके कारण ‘प्रत्येक साधक कितना और कौनसे पौधों का रोपण करेगा ?, यह स्पष्ट हुआ । ‘सुनिश्चित किए अनुसार जो पौधे खरीदने आवश्यक थे, क्या वे कहीं निःशुल्क मिल सकते हैं ?’, इसकी खोज की गई । इसके अंतर्गत कुछ पौधा वाटिकाओं के मालिकों से संपर्क किया गया । उन्होंने साधकों को पौधे, मिट्टी एवं गमले अल्प मूल्य में उपलब्ध कराईं ।
३. एक-दूसरे के सहयोग से रोपण करना
रोपण के संदर्भ में पुणे की श्रीमती ज्योति शाह ने ‘यू ट्यूब’ पर जो ऑनलाइन अभ्यासवर्ग लिए, उसमें बताए अनुसार साधकों से सभी कार्य करा लेने का नियोजन किया गया । कुछ साधकों ने जीवामृत (देसी गाय का गोबर, गोमूत्र, गूड एवं बेसन से बनाया जानेवाला एक प्राकृतिक उर्वरक) बनाकर उसे अन्य साधकों को देना, जो पौधे तैयार कर सकते हैं; उनसे पौधे तैयार कर अन्यों को देना आदि कार्य करने से साधकों में इस विषय में संगठित भाव उत्पन्न होने में सहायता मिली ।
४. भूमि अल्प होते हुए भी रोपण करना
मुंबई महानगर में भूमि की उपलब्धता पर बहुत मर्यादाएं होती हैं, तब भी कुछ साधकों ने खिडकियों पर लटकाने योग्य गमलों में, साथ ही ‘बाल्कनी’ में छोटे-छोटे गमले अथवा प्लास्टिक के डिब्बे रखकर उनमें पौधों का रोपण किया । (छायाचित्र देखें) लगन हो, तो ईश्वर मार्ग दिखाते हैं; इसकी साधकों को अनुभूति हुई ।
५. रोपण के संबंध में संतों का सत्संग आयोजित करना
‘साधकों द्वारा किए गए अच्छे प्रयास सभी की समझ में आएं, साथ ही इस अभियान में सम्मिलित होने से कैसे हमारी साधना होनेवाली है’, यह साधकों के ध्यान में आए; इसके लिए सद्गुरु अनुराधा वाडेकरजी एवं पू. (श्रीमती) संगीता जाधवजी ने सभी साधकों का एकत्रित अभ्यासवर्ग लिया । संतों के सत्संग के कारण साधकों का उत्साह बढा । साधकों की समीक्षा कर उन्हें आनेवाली समस्याओं पर उपाय निकाले गए ।’ (१७.७.२०२२)
– अधिवक्ता (श्रीमती) ऋचा सुळे, वडोदरा, गुजरात