अधिवक्ताओं की कमी के कारण देश में ६३ लाख से अधिक प्रकरण न्यायदान से वंचित हैं ! – मुख्य न्यायाधीश
जिला न्यायालयों को गौण समझने की जनसामान्य को अपनी मानसिकता में परिवर्तन करने का आवाहन !
अमरावती (आंध्र प्रदेश) – भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ ने यहां बताया कि अधिवक्ताओं की कमी के कारण देश में ६३ लाख से अधिक प्रकरण लंबित हैं । वे ‘आंध्र प्रदेश विधि अकादमी’ के उद्घाटन के अवसर पर बोल रहे थे । उन्होंने आवाहन भी किया कि नागरिक इस तथ्य को समझें, कि जिला न्यायालय न्यायिक प्रणाली की रीढ़ हैं तथा यद्यपि वे कनिष्ठ स्तर पर हैं तथापि उन्हें गौणमानने की अपनी मानसिकता बदलें ।
NJDG data says 63 lakh cases considered delayed due to non-availability of counsel: CJI Chandrachud https://t.co/cxz6nu4Lcx
— Republic (@republic) December 30, 2022
मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा,
१. चूंकि अनेक न्यायालयों से अभी आंकड़े प्राप्त नहीं हुए हैं, यह संख्या कम भी हो सकती है, किन्तु हमारे न्यायालयों को कुशलतापूर्वक कार्यपालन करने के लिए ´बार संघों´ (बार एसोसिएशन ) के साथ समर्थन और सहयोग करने की आवश्यकता है ।
२. नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड के अनुसार १.४ लाख से अधिक प्रकरण, प्रासंगिक साक्ष्य उपलब्ध न होनें या संबंधित कागज पत्रों की न्यूनता के कारण लंबित हैं । यह न्यायालय के नियंत्रण से बाहर है ।
३. ‘जमानत, कारावास नहीं है, अपितु आपराधिक न्याय प्रणाली के सबसे बुनियादी नियमों में से एक है । भारत के कारगृहों में बंदीवास भोग रहे कच्चे बंदियों की (दंड-पूर्व कारावासी ) संख्या को देखते हुए एक विपरीत छवि उभर कर सामने आती है । बड़ी संख्या में ऐसे बंदियों को जमानतकी प्रतीक्षा है ।
४. आपराधिक संहिता की धारा ४३८ (जमानत) और धारा ४३९ (जमानत से छूट) को अर्थहीन, यांत्रिक, मात्र प्रक्रियात्मक उपायों के रूप में नहीं माना जाना चाहिए । यदि जिला न्यायालय मेंप्रकरण अस्वीकृत होता है, तो तुरंत उच्च न्यायालय में न्यायदान की याचना की जाती है ।
५. जिला न्यायपालिका को स्वयं इसके समाधान पर अनुसंधान करना चाहिए, क्योंकि जिला न्यायालयों को देश के वंचित और गरीब वर्गों के लिए न्याय का आधार माना जाता है । इस वर्ग पर उनका बहुत प्रभाव है ।