अंतर्मन को सुसंस्कारी बनानेवाली हिन्दी पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ संबंधी सेवा !
‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों के माध्यम से विगत अनेक वर्षों से समाजप्रबोधन किया जा रहा है । ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकोंद्वारा ‘राष्ट्र एवं धर्म पर हो रहे प्रहार, संतों का मार्गदर्शन, साधकों को हुई अनुभूतियां, सूक्ष्म ज्ञान’ आदि के संबंध में विविध लेखों के माध्यम से समाज के व्यक्तियों का मार्गदर्शन किया जाता है एवं उन्हें साधनाप्रवण किया जाता है । दैनिक ‘सनातन प्रभात’ मराठी में ४ संस्करण, साप्ताहिक ‘सनातन प्रभात’ मराठी एवं कन्नड, पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषाओं में प्रकाशित किया जाता है । गुरुकृपा से मुझे लगभग ७ वर्ष हिन्दी पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ से संबंधित सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
इस लेख के माध्यम से कु. रेणुका कुलकर्णी को सीखने के लिए मिले सूत्र समझ लेंगे ।
१. हिन्दी पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ के भिन्न विषयों से संबंधित विशेष अंकों से संबंधित सेवा करते समय वैचारिक व्यापकता में वृद्धि होना
हिन्दी पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ में राष्ट्र-धर्म से संबंधित विविध लेख प्रकाशित होते हैं । ‘गोमाता की महिमा, ज्योतिष, इतिहास पुनर्लेखन, आपातकालीन तैयारी, संगीत, आयुर्वेद, प्राचीन भारतीय तंत्रज्ञान, औषधीय वनस्पतियों का रोपण, हिन्दुत्वनिष्ठों का मार्गदर्शन’ इत्यादि अनेक विषयों से संबंधित विशेषांक प्रकाशित हुए हैं । उसके संबंध में सेवा करते समय मुझे अनेक विषयों की जानकारी मिली, जिनसे मेरे विचारों में व्यापकता आई ।
२. हिन्दी साहित्य का परिचय होने से ‘हिन्दी भाषा कितनी समृद्ध है !’,
यह ध्यान में आना यह सेवा करते समय ही हिन्दी भाषा से मेरा परिचय हुआ । मैं हिन्दी व्याकरण सीख पाई । पाक्षिक के लिए मैंने हिन्दी लेखों का संकलन करना सीखा । ‘हिन्दी भाषा कितनी समृद्ध है !’, यह बात मेरे ध्यान में आई । मैंने संकलन की सेवा की, इससे मेरे ध्यान में आया कि ‘विस्तार से बोलने की अपेक्षा पर्याप्त एवं अर्थपूर्ण बोलना चाहिए ।’ हिन्दी पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ में शुद्ध हिन्दी भाषा का प्रयोग होता है । इससे पाठकों को आरंभ में वे लेख समझने में कठिन लग सकते हैं; परंतु आगे चलकर उन्हें शुद्ध हिन्दी भाषा की आदत हो जाती है । हिन्दी भाषा में ‘विदेशी शब्द कौन से हैं ?’, यह मेरी समझ में आया एवं मुझे संस्कृतनिष्ठ हिन्दी शब्द बोलने की आदत हो गई ।
३. राष्ट्र एवं धर्म संबंधी समाचार पढकर मन विचलित होना; परंतु तदुपरांत सर्व समस्याओं का समाधान, ‘साधना करना एवं हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना’ ही है, यह ध्यान में आकर मन स्थिर होना
मेरे पास हिन्दी पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ के लिए समाचार संकलित करने की सेवा थी । उस समय राष्ट्र एवं धर्म पर हो रहे प्रहार पढकर मैं उदास हो जाती । तदुपरांत मैं उन समाचारों की ओर साक्षीभाव से देखने लगी । मेरे ध्यान में आया कि सर्व समस्याओं पर समाधान ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना’ एवं ‘साधना करना’ ही है । इससे मेरा मन स्थिर हुआ ।
४. ‘सनातन प्रभात’की सेवा करते समय अंतर्मन की प्रक्रिया होने के लिए तथा स्वयं में आमूल परिवर्तन करने के लिए यह सेवा मिली है’, यह ध्यान में आना
मुझे मिली हुई ‘हिन्दी पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ से संबंधित सेवा मेरे अंतर्मन की प्रक्रिया होने के लिए तथा स्वयं में आमूल परिवर्तन करने के लिए है’, यह मेरे ध्यान में आया । इस सेवा के उपलक्ष्य में तथा उत्तरदायी साधकों के मार्गदर्शन से मैं बहुत कुछ सीख सकी ।
४ अ. सेवा का पूर्वायोजन करना : हिन्दी पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ छपाई के लिए भेजने के लिए समयसीमा रहती है । इससे पूर्व पाक्षिक के सर्व पृष्ठों पर लेखन निश्चित करना, हिन्दी भाषा का लेखन शुद्ध करना, पृष्ठों की रचना पूर्ण करना इत्यादि सेवाएं रहती हैं । पाक्षिक का प्रत्येक पृष्ठ अंतिम करने के लिए समय सीमा सुनिश्चित कर दी जाती है । उत्तरदायी साधकों से मैंने सेवा का पूर्वायोजन करना सीखा । पहले नियोजन में त्रुटियां रहने से तथा सेवा के संदर्भ में गंभीरता अल्प होने से मेरी सेवा में अनेक चूकें होती थीं । परिणामस्वरूप मुझे पाक्षिक के संदर्भ में सेवा करने में अनेक घंटे लगते थे । उत्तरदायी साधिकाओं ने समय-समय पर मेरी चूकों का भान करवाया । इसलिए कुछ समय पश्चात अल्प कालावधि में पाक्षिक से संबंधित मेरी सेवा पूर्ण होने लगी । ‘अन्य सेवाओं तथा व्यक्तिगत जीवन में भी पूर्वायोजन करना चाहिए’, यह मेरे ध्यान में आया ।
४ आ. साधकों से उचित पद्धति से समन्वय करना सीखना : यदि साधकों से उचित पद्धति से समन्वय न हो, तो साधक को अनुचित अथवा आधी-अधूरी जानकारी मिलती है एवं सेवा प्रलंबित रहती है । समन्वय करने में मुझसे चूकें होती थीं, तब उत्तरदायी साधिका ने मुझे ‘क्या सेवा का समन्वय करते समय ‘मन में अनावश्यक विचार रहते हैं ? क्या सेवा का विषय स्पष्ट रहता है ?’, इसका चिंतन करने के लिए कहा । यदि सेवा के संदर्भ में समन्वय ध्यानपूर्वक नहीं किया, तो हमारे बोलने एवं सामनेवाले के सुनने में कुछ अभाव (कम्युनिकेशन गैप) रह सकता है । इसलिए उत्तरदायी साधिका ने मुझे साधकों को संदेश देते समय लघुसंदेश अथवा संगणकीय पत्र (ई-मेल) भी भेजने के लिए कहा ।
४ इ. केवल आकर्षक संरचना करने की अपेक्षा सात्त्विकता की दृष्टि से स्पंदनशास्त्र का अध्ययन करना : अन्य समाचार-पत्रों के संरचनाकार यह विचार करते हैं कि ‘संरचना कैसे आकर्षक हो तथा पाठकवर्ग कैसे बढे ?’ सनातन प्रभात नियतकालिकों में संरचना करते समय ‘सात्त्विकता’ एवं ‘सकारात्मक स्पंदन,’ ये निकष प्रमुखता से रहते हैं । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने यह अध्ययन करना सिखाया कि ‘हिन्दी पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’ के प्रत्येक अंक में अधिकाधिक सात्त्विक स्पंदन कैसे आएंगे ?’ उन्हें पाक्षिक दिखाने पर उन्होंने अध्ययन करने के लिए कहा कि ‘पाक्षिक हाथ में लेते ही कैसे स्पंदनों का भान होता है ?’ इससे प्रत्येक पृष्ठ की संरचना करते समय मेरे द्वारा ‘क्या वह सात्त्विक दिखता है ?’, इस दृष्टि से विचार आरंभ हुआ । तब से मेरे द्वारा रंगीन अंकों में गहरे रंगों की अपेक्षा हलके रंगों का प्रयोग किया जा रहा था । त्योहार एवं उत्सव के अनुसार देवताओं के स्पंदन आकर्षित करनेवाली रचना की जाती थी । उदा. यदि ‘दत्त जयंती’ विशेषांक हो, तो भगवान दत्तात्रेय से संबंधित वस्तुएं उदा. जपमाला, त्रिशूल इत्यादि चित्र लेकर एवं पीले रंग का प्रयोग कर रचना की जाती थी । ‘अक्षर अल्प स्थान में लिखने की अपेक्षा खुलकर लिखने से सकारात्मक स्पंदनों का निर्माण होता है’, यह मैं सीख पाई । इससे मुझे सात्त्विकता भाने लगी ।’
– कु. रेणुका कुलकर्णी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा ।
(१६.१२.२०२२) (क्रमशः)