भावविभोर होकर नृत्य करनेवालीं तथा नृत्यकला से दैवी आनंद का अनुभव करनेवालीं देहली की कत्थक नृत्यांगना श्रीमती शोभना नारायण !
अक्टूबर २०२२ में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत, संगीत विशारद एवं संगीत समन्वयक) ने देहली में गायन, वादन एवं नृत्य से संबंधित २८ कलाकारों से भेंट की । इसके निमित्त कलाकारों के अंतर् में चल रही संगीत साधना का अध्ययन करना संभव हुआ । ‘४०-५० वर्षाें से अधिक संगीत के लिए समर्पित इन कलाकारों की ‘संगीत साधना’ अगली पीढी के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो’, इस उद्देश्य से महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से इन कलाकारों के साथ संवाद किया गया । इस लेख के माध्यम से इस संवाद का कुछ अंश हम प्रकाशित कर रहे हैं । आज के इस भाग में देहली पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त कत्थक नृत्यांगना श्रीमती शोभना नारायण के साथ हुआ संवाद देखेंगे ।
१. पद्मश्री श्रीमती शोभना नारायण द्वारा कला के विषय में व्यक्त किया गया मनोगत !
१ अ. ‘विभिन्न देवताओं का नृत्य, गायन अथवा वादन से संबंध होने के कारण उससे ‘सभी कलाएं ईश्वरप्राप्ति के लिए ही हैं’, यह संकेत मिलना : ‘भारत की सभी कलाएं ईश्वरप्राप्ति के विभिन्न मार्ग हैं । हिन्दुओं के देवताओं की ओर देखने से ही यह ध्यान में आता है । हमने हिन्दुओं के देवताओं को कला के रूप में देखा है । इससे ‘कलाएं ईश्वरप्राप्ति के लिए ही हैं’, यह एक बडा संकेत मिलता है । इसके कारण ही कत्थक नृत्यकला को भी भक्ति एवं ईश्वर की (आनंद की) प्राप्ति का एक मार्ग माना गया है ।
१ आ. कत्थक का उद्गमस्थान मंदिर होना तथा वह एक दैवी कला होना : कथा विशद करते समय भावविभोर होकर नृत्य करनेवाले कलाकारों को ‘कथक कलाकार’ कहा जाता है । अयोध्या में आज भी कथा बताकर कत्थक नृत्य करनेवाले लोग हैं । एक बार मैं अयोध्या गई थी, उस समय इन कलाकारों को देखकर मुझे समझ में आया कि ‘इस नृत्य का मूल बीज ‘कथक कलाकार’ हैं तथा उन्हीं से ‘कत्थक’ शब्द लिया गया है । ये नर्तक (कथक) कत्थक के माध्यम से नृत्याराधना करते हैं । उनकी परंपरा का मंदिर में किया जानेवाला नृत्य आज रंगमंच पर किया जा रहा है । उनकी कला देखकर यह स्पष्ट होता है कि ‘ईश्वर के प्रति भाव कैसा होना चाहिए ?’ उनकी कला का उद्देश्य ‘भावविभोर होकर गायन, वादन एवं नृत्य करना तथा उससे ईश्वरप्राप्ति की अनुभूति करना’ है । मंदिर में उपस्थित श्रोताओं के सामने कथा विशद कर कत्थक नृत्य प्रस्तुत करते समय नृत्य करनेवाले तथा दर्शक भावविभोर हो जाते हैं । इससे यह समझ आता है कि ‘मंदिरों से उद्गमित कत्थक एक दैवी कला है ।’
२. नृत्यसाधना करते समय श्रीमती शोभना नारायण को प्राप्त विभिन्न अनुभूतियां
२ अ. नृत्य करते समय भावविभोर होने के कारण नृत्य करते समय आई चोट का भान न होना
२ अ १. नृत्य करते समय बिंदी ढीली होकर आंख के सामने चुभते रहने से वहां घाव होकर उससे लहू आना : एक बार मैं देहली के एक सभागार में नृत्य कर रही थी । उस समय मैं नृत्य करते समय भावविभोर हुई थी । नृत्य करते समय मेरी बिंदी थोडीसी ढीली हो जाने से वह निरंतर मेरी आंख के पास आकर चुभ रही थी । कुछ समय पश्चात वहां से कुछ बह रहा था, उस समय मुझे लगा, ‘मुझे पसीना छूटने से उसकी बूंदें चेहरे पर बह रही हैं’; परंतु उसे पोछते समय मेरी समझ में आया कि ‘वह पसीना नहीं, अपितु मेरी आंख के पास घाव होकर उससे लहू आ रहा है ।’ नृत्य करते समय ‘मुझे घाव हुआ है’, इसका भान भी नहीं हुआ ।
२ आ. कत्थक कलाकारों का नृत्य प्रस्तुतीकरण देखकर भावविभोर होकर समय का भान न रहना : एक बार कत्थक नृत्य पर शोध करने के लिए मैं अयोध्या गई थी । उस समय मुझे ऐसा लगा कि मैं कत्थक कलाकारों का चित्रीकरण कर १० मिनट में वापस आ जाऊंगी’; परंतु उन्होंने कथा का प्रस्तुतीकरण देखकर मैं भावविभोर हो गई और उसमें ‘एक घंटा कब बीत गया’, यह मेरी समझ में ही नहीं आया ।
२ इ. नृत्य करते समय मैं जिस दैवी जगत का आनंद अनुभव कर पा रही थी, वह ईश्वरीय आनंद था ।
कलाकारों ने यदि भगवान के प्रति भाव जागृत रखकर कला प्रस्तुत की, तो उसे रंगमंच पर भी ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं । कलाकार यदि कला की आराधना करते समय स्वयं को
भूलकर भौतिक जगत से परे चले गए, तो कलाकारों को वे दैवी लोक में होने की अनुभूति ले सकते हैं ।’
– श्रीमती शोभना नारायण, कत्थक नृत्यांगना, देहली (१७.१०.२०२२)
देहली की पद्मश्री से विभूषित कथक नृत्यांगना श्रीमती शोभना नारायण !
परिचय : पद्मश्री श्रीमती शोभना नारायण एक प्रसिद्ध एवं मान्यवर कत्थक नृत्यांगना हैं । उन्होंने एक कत्थक कलाकार तथा भारतीय लेखा परीक्षा एवं लेखा विभाग (‘इंडियन ऑडिट एंड एकाउंट्स) में अधिकारी) इस प्रकार से दोनों क्षेत्रों में कार्य किया । उन्होंने देहली में पं. बिरजू महाराज एवं पंडित कुंदनलाल गंगाणी से कत्थक नृत्य की शिक्षा ली । उन्होंने अनेक बडे राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय महोत्सवों में विश्वभर के दर्शकों के सामने नृत्यकला प्रस्तुत कर उन्हें मंत्रमुग्ध किया है । उन्होंने अनेक कत्थक नृत्य कलाकारों को प्रशिक्षण दिया है, जिनमें से कुछ युवा पीढी के प्रमुख नृत्य कलाकार हैं ।
एक कत्थक नृत्यकलाकार एवं गुरु के रूप में वे आज के समय की भारत की सबसे विख्यात एवं उत्कृष्ट कत्थक नृत्य कलाकारों में से एक हैं । एक सृजनशील (नई निर्मिति करने के लिए आवश्यक बुद्धि, संवेदनशीलता एवं कल्पकता से युक्त व्यक्ति) नृत्य निर्देशिका एवं नृत्य प्रस्तुति कलाकार के रूप में सुपरिचित हैं । उन्होंने अभीतक नृत्य के विषय पर १६ से अधिक पुस्तकें, अनेक शोधनिबंध तथा ३०० से अधिक लेख लिखे हैं । वे पद्मश्री, संगीत नाटक एकादमी, इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी सम्मान इत्यादि ४० से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हैं । (१७.१०.२०२२)
श्रीमती शोभना नारायण द्वारा सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी एवं महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के विषय में व्यक्त किए गौरवोद्गार !१. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा संगीत पर किया जा रहा वैज्ञानिक शोधकार्य अद्भुत ! ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के माध्यम से आचार्य (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी) कला के माध्यम से ईश्वरप्राप्ति करने के विषय में समाज में जागृति ला रहे हैं तथा वह आज के काल के अनुसार लोगों की समझ में आए, ऐसी वैज्ञानिक भाषा में संगीत के विषय पर अद्भुत शोधकार्य कर रहे हैं । २. ‘भावपूर्ण गायन अथवा वादन के कारण देवताओं के चित्र में विद्यमान सकारात्मक स्पंदन बढते हैं’, यह बहुत ही अद्भुत शोधकार्य होना महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय ने एक शोधकार्यात्मक प्रयोग में ‘कलाकार पर नाट्यगृह (ऑडिटोरियम) एवं मंदिर के अथवा संतों के आश्रम के सात्त्विक वातावरण का क्या परिणाम होता है ?’, इसका वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से किया गया परीक्षण बहुत अच्छे ढंग से रखा गया है । ‘भावपूर्ण गायन अथवा नृत्य के कारण देवताओं के चित्र में विद्यमान सकारात्मक स्पंदन बढते हैं’, यह इस शोधकार्य से समझ में आया । मुझे यह बहुत ही अद्भुत एवं विशेष प्रतीत हुआ । मुझे लगता है कि ‘विश्व के सभी लोगों को यह शोधकार्य अवश्य देखना चाहिए तथा इस शोधकार्य के मूल उद्देश्य को ध्यान में रख उसे अपनाना चाहिए ।’ ३. सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के द्वारा किया गया दिशादर्शन समझकर उस मार्ग पर अग्रसर होने से आनंदप्राप्ति होना संभव हम जीवन में आनंद की खोज करते हैं तथा उस आनंद को प्राप्त करने के लिए हम भौतिक विषयों का आधार लेते हैं; परंतु उनसे अल्पावधि के लिए भी आनंद नहीं मिलता । वास्तव में उसे ‘आनंद’ कहा ही नहीं जा सकता । वास्तविक आनंद दैवी होता है तथा वही शाश्वत आनंद है । हमारी अंतरात्मा इसी शाश्वत आनंद के खोज में होती है । वास्तविक आनंद की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयासशील रहना होगा । ‘आचार्यजी द्वारा (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी द्वारा) महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के माध्यम से किए गए इस दिशादर्शन को समझकर हमें जीवन में इस मार्ग को अपनाना चाहिए’, ऐसा मुझे लगता है ।’ – श्रीमती शोभना नारायण, कथक नृत्यांगना, देहली (१७.१०.२०२२) |