शाकाहार एवं सात्त्विक आहार का सेवन करें !
१. आहार कैसा न हो और कैसा हो ?
अ. मांसाहार तथा तमोगुणी आहार का सेवन न करें ! : अधिक तले एवं मसालेदार पदार्थ, बासी पदार्थ तथा पोषक-मूल्य रहित एवं पचनेमें भारी पिज्जा, चिप्स, वेफर्स जैसे ‘फास्ट फूड’ का सेवन न करें ।
आ. शाकाहार एवं सात्त्विक आहार का सेवन करें ! : दूध, मक्खन, गायका घी, छाछ, चावल, गेहूं, दालें, साग, फल जैसे अथवा इनसे बने सात्त्विक अन्नपदार्थों का सेवन करें ।
इ. पाचनतंत्र स्वस्थ रखने हेतु मिताहार करें ! : भोजन करते समय पेट के दो भाग अन्न सेवन करें । तृतीय भाग जल हेतु एवं चतुर्थ भाग वायु हेतु रिक्त रखें ।
२. भोजन की उचित पद्धति
१. पीढा अथवा आसन लेकर उसपर भोजन हेतु बैठें । आसन्दी-पटल (‘टेबल-कुर्सी’) पर अथवा केवल भूमि पर भोजन हेतु न बैठें ।
२. यथासंभव परिवार के सभी सदस्य रसोईघर अथवा भोजनकक्ष में एक साथ भोजन करें, दक्षिण की ओर मुख कर भोजन न करें ।
३. सर्वप्रथम परोसी हुई थाली (भोजन) ईश्वर को अर्पित करें, तत्पश्चात ईश्वरका प्रसाद समझकर नामजप करते हुए उसे ग्रहण करें ।
४. किसी का भी झूठा अन्न न खाएं; क्योंकि इससे अनिष्ट शक्तियों की पीडा हो सकती है ।
५. थाली में अन्नपदार्थ शेष न रखें । भोजन के उपरांत थाली के आसपास पडे अन्नकण पैरों में न आएं; अत: उन्हें तत्काल उठाएं ।
६. ‘अन्नदाता सुखी भव ।’ ऐसा कहकर, उपास्यदेवता के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त कर आसन से उठें ।
इस विषय की अधिक जानकारी ‘आचारधर्म’ ग्रन्थमाला के अन्तर्गत ‘आहारके नियम एवं उनका अध्यात्मशास्त्रीय आधार’ नामक ग्रन्थ में दी है ।
३. भोजन के उपरान्त वाम अंग पर लेटना
दोपहरके भोजनके उपरान्त २४ मिनट बाईं करवट लेटना, अर्थात वाम अंग पर झपकी लेना ।
अ. अध्यात्मशास्त्र : भोजन के उपरांत अन्नपचन ठीक से हो, इस हेतु आंतों की ओर रक्त की अधिक आपूर्ति होती है । ऐसे में मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति अल्प मात्रा में होने से मस्तिष्क के कार्य में थोडी शिथिलता आती है । इसलिए इस काल में बिलकुल थोडे ही समय के लिए विश्राम करना लाभदायक होता है ।
(संदर्भ – सनातन का ग्रंथ ‘आचारधर्म : दिनचर्या’)