व्यक्ति जो आहार ग्रहण करता है, उसका व्यक्ति पर आध्यात्मिक स्तर पर होनेवाला परिणाम

 

‘आजकल घर में बनाए जानेवाले पौष्टिक आहार की अपेक्षा उपाहार गृह में मिलनेवाले चटपटे पदार्थाें का सेवन करने की ओर लोगों का झुकाव दिखाई पडता है, साथ ही मांसाहार करने का स्तर भी बढ गया है । व्यक्ति जो आहार लेता है, उसका उस पर आध्यात्मिक स्तर पर क्या परिणाम होता है, इसका अध्ययन करने के लिए ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ ने एक परीक्षण किया । इस परीक्षण के लिए ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण का उपयोग किया गया । इस परीक्षण में प्राप्त निरीक्षणों का विवेचन आगे दिया गया है ।

यू.ए.एस. उपकरण द्वारा जांच करते श्री. आशीष सावंत

१. परीक्षण में प्राप्त निरीक्षणों का विवेचन

पहले प्रयोग में व्यक्ति को उपाहार गृह में बनाए गए शाकाहारी (मिक्स वेज) एवं मांसाहारी (फिशफ्राई एवं चिकनफ्राई) पदार्थ खाने के लिए दिए गए । दूसरे प्रयोग में उसे सात्त्विक स्थान पर (सनातन के आश्रम में) बनाई गई सब्जी खाने के लिए दी गई । प्रत्येक प्रयोग में व्यक्ति द्वारा पदार्थ का सेवन करने से पूर्व तथा करने के उपरांत ‘यू.ए.एस. (युनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण की सहायता से परीक्षण किए गए । व्यक्ति को इन पदार्थाें का सेवन करने देने से पूर्व उन पदार्थाें के भी परीक्षण किए गए ।

श्रीमती मधुरा कर्वे

१ अ. उपाहार गृह में बने शाकाहारी एवं मांसाहारी पदार्थाें में बहुत नकारात्मक ऊर्जा होना; परंतु इसके विपरीत सात्त्विक स्थान पर बनाई गई सब्जी में बहुत सकारात्मक ऊर्जा होना : उपाहार गृह में बने शाकाहारी एवं मांसाहारी पदार्थाें में किसी प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा नहीं थी, अपितु अत्यधिक नकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी । इसके विपरीत सात्त्विक स्थान पर बनाई गई सब्जी में नकारात्मक ऊर्जा बिल्कुल नहीं थी, अपितु बहुत सकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी । आगे दी गई सारणी से यह ध्यान में आता है ।

१ आ. उपाहार गृह में बने शाकाहारी एवं मांसाहारी पदार्थ सेवन करने से व्यक्ति पर नकारात्मक परिणाम होना; किंतु सात्त्विक स्थान पर बनाई गई सब्जी का सेवन करने से उस पर सकारात्मक परिणाम होना : व्यक्ति के द्वारा उपाहार गृह में बनाए गए शाकाहारी एवं मांसाहारी पदार्थ सेवन करने से पूर्व उसमें नकारात्मक एवं सकारात्मक ऊर्जा थी । उसने जब उन पदार्थाें का सेवन किया, उसके उपरांत उसमें विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा में बडे स्तर पर वृद्धि हुई तथा उसमें जो सकारात्मक ऊर्जा थी, वह क्षीण अथवा नष्ट हुई । इसके विपरीत व्यक्ति ने जब सात्त्विक स्थान पर बनाई गई सब्जी का सेवन किया, उसके उपरांत उसमें विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा अल्प होकर उसकी सकारात्मक ऊर्जा में बहुत वृद्धि हुई । आगे दी गई सारणी से यह ध्यान में आता है ।

२. परीक्षण में प्राप्त निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण

२ अ. मांसाहारी पदार्थाें से प्रक्षेपित तमोगुणी स्पंदनों के कारण उनका सेवन करनेवाले व्यक्ति की आध्यात्मिक स्तर पर हानि होना : मांसाहारी पदार्थ तमोगुणी होते हैं । उसके कारण उनका सेवन करने से व्यक्ति में विद्यमान तमोगुण में वृद्धि होती है । इसका नकारात्मक परिणाम उसकी देह, मन एवं बुद्धि पर होता है । परीक्षण में सहभागी व्यक्ति के द्वारा मांसाहार करने से उसमें विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा में बहुत वृद्धि हुई तथा उसमें विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा नष्ट हुई । संक्षेप में बताना हो, तो मांसाहार करने से आध्यात्मिक स्तर पर उसकी हानि हुई । इससे नियमित रूप से सप्ताह में एक बार अथवा उससे भी अधिक बार मांसाहार करनेवाले लोगों की कितने बडे स्तर पर हानि होती होगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है । अतः मांसाहार करनेवाले लोगों को, आध्यात्मिक दृष्टि से उनका शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहे; इसके लिए मांसाहार टालकर सात्त्विक आहार लेना श्रेयस्कर है !

२ आ. उपाहार गृह की अपेक्षा घर पर बनाए जानेवाले सात्त्विक पदार्थाें का सेवन करना उचित : यहां विशेष रूप से ध्यान में लेने योग्य सूत्र यह है कि उपाहार गृह में बनाए जानेवाले शाकाहारी पदार्थों में किसी प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा नहीं दिखाई दी, अपितु बहुत नकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी । उसके कारण परीक्षण में सहभागी व्यक्ति को उन पदार्थाें का सेवन करने से उसे आध्यात्मिक दृष्टि से लाभ न होकर हानि ही हुई । पदार्थाें में विद्यमान सात्त्विकता अनेक घटकों पर निर्भर होती है, उदा. जहां पदार्थ बनाया जाता है, वह स्थान; उसे बनाने का उद्देश्य, पदार्थ बनानेवाला व्यक्ति इत्यादि । ये घटक जितने सात्त्विक होंगे, वह पदार्थ उतना ही सात्त्विक बनता है । सात्त्विक पदार्थ सेवन करने से उस व्यक्ति को उसमें विद्यमान सात्त्विकता का लाभ मिलता है । परीक्षण में सहभागी व्यक्ति ने सात्त्विक स्थान पर (सनातन के आश्रम में) बनाई गई सब्जी का सेवन किया, उसके कारण उसे ‘उसमें विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा क्षीण होना तथा सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होना’ जैसे आध्यात्मिक स्तर के लाभ मिले । व्यक्ति जब सात्त्विक आहार का सेवन करता है, तब उसके मन में सात्त्विक विचार आते हैं । सात्त्विक विचारों के कारण उसके द्वारा सात्त्विक कार्य होते हैं । इससे उसकी वृत्ति भी सात्त्विक होती है । अतः उपाहार गृह की अपेक्षा घर पर बनाए जानेवाले सात्त्विक पदार्थाें का सेवन करना चाहिए । घर पर बनाए जानेवाले पदार्थाें की सात्त्विकता बढे, इसके लिए उन्हें नामजप करते हुए बनाना चाहिए ।’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२४.६.२०२२)

ई-मेल : mav.research2014@gmail.com