स्नान पूर्व करने योग्य प्रार्थना एवं स्नान करते समय उपयुक्त श्लोकपाठ
१. जलदेवता से प्रार्थना
‘हे जलदेवता, आपके पवित्र जल से मेरे स्थूलदेह के सर्व ओर निर्माण हुआ रज-तम का कष्टदायक शक्ति का आवरण नष्ट होने दें । बाह्यशुद्धि के समान ही मेरा अन्तर्मन भी स्वच्छ एवं निर्मल बनने दें ।’
२. नामजप अथवा श्लोकपाठ करते हुए स्नान करने का महत्त्व
अ. अध्यात्मशास्त्र : ‘नामजप अथवा श्लोकपाठ करते हुए स्नान करने से जल का अंगभूत चैतन्य जागृत होता है । देह से उसका स्पर्श होकर चैतन्य का संक्रमण रोम-रोम में होता है । इससे देह को देवत्व प्राप्त होता है तथा दिनभर के कृत्य चैतन्य के स्तर पर करने हेतु देह सक्षम बनती है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली मुकुल गाडगीळजी के माध्यम से)
३. वास्तविक स्नान
अ. अपने शारीरिक स्वास्थ्य हेतु मनुष्य जितने प्रयास करता है, उससे अधिक प्रयास उसे अपने मन एवं बुद्धि को स्वच्छ और निर्मल बनानेके लिए करने चाहिए । इसीको यथार्थ ‘स्नान करना’ मानेंगे ।
आ. ‘जीव की देह एवं अन्तःकरण से मैलरूपी विकार निकालनेवाली क्रिया को ‘स्नान’ कहते हैं; इसलिए ‘निरन्तर साधना करना’ ही वास्तविक स्नान है ।’
– एक ज्ञानी (श्री. निषाद देशमुख के माध्यमसे, १६.४.२००७, सायं. ६.१३)
(संदर्भ – सनातन का ग्रंथ ‘आचारधर्म : दिनचर्या’)