राजस्थान के रेगिस्तान में ‘ऑस्ट्रा हिन्द २२’ युद्धाभ्यास !
‘किसी भी देश की रक्षा एवं उसका वर्चस्व उस देश के सैन्य सामर्थ्य पर निर्भर होता है । इसीलिए विश्व के अधिकांश देश अपनी सैनिकीकरण एवं सशक्तिकरण पर बल दे रहे हैं । भारत भी इसमें पीछे नहीं है । भारत सरकार की ओर से देश को सशक्त बनाने के लिए बार-बार प्रयास किए जा रहे हैं । इसमें मित्र राष्ट्रों के साथ युद्धाभ्यास महत्त्वपूर्ण माना जाता है । २८ नवंबर से राजस्थान की ‘महाजन फील्ड फायरिंग रेंज’ में भारत एवं ऑस्ट्रेलिया के मध्य सैन्य युद्धाभ्यास आरंभ हुआ । ‘ऑस्ट्रा हिन्द २२’ नामक यह युद्धाभ्यास ११ दिसंबर तक चलेगा । इस युद्धाभ्यास की शृंखला में एक चरणबद्ध पद्धति से दोनों देशों की सेनाओं की सभी प्रकार की टुकडियां सहभागी होंगी । कुल मिलाकर ‘ऑस्ट्रा हिन्द’ युद्धाभ्यास का स्वरूप कैसा होगा, उसका उद्देश्य तथा दोनों देशों के लिए उनका महत्त्व आदि विभिन्न सूत्रों के विषय में आकाशवाणी मुंबई के ‘वृत्तविशेष’ कार्यक्रम में सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर हेमंत महाजन द्वारा किया गया विवेचन देखते हैं ।
१. ‘ऑस्ट्रा हिन्द २२’ के युद्धाभ्यास का स्वरूप
२८ नवंबर से ११ दिसंबर तक भारत एवं ऑस्ट्रेलिया की सेनाएं राजस्थान के ‘महाजन फील्ड फायरिंग’ में युद्धाभ्यास कर रही हैं । उसमें ऑस्ट्रेलिया की ओर से उनकी एक ‘सेकंड डिविजन’ की १३ वीं ब्रिगेड (एक ब्रिगेड में २ सहस्र ५०० से ३ सहस्र सैनिक होते हैं । उसमें भूदल, कुछ टैंक, ‘आर्मर पर्सनल कैरियर’ (सैनिकों को ले जानेवाली बख्तरबंद गाडियां), तोपें इत्यादि) सहभागी हो रहे हैं । इस युद्धाभ्यास में ऐसे सभी प्रकार के शस्त्र एवं सर्विसेस भाग ले रहे हैं । इसमें भारत की ओर से एक ब्रिगेड सहभागी हो रही है, जिसमें ‘डोगरा रेजिमेंट’ के सैनिक एवं अन्य शस्त्र होंगे ।
२. ‘महाजन फील्ड फायरिंग’ में युद्धाभ्यास का आयोजन करने का कारण
‘महाजन फील्ड फायरिंग’ एक ऐसा स्थान है, जहां रेगिस्तान भी है तथा पेडों से युक्त क्षेत्र भी है । फील्ड फायरिंग एक ऐसा स्थान होता है, जहां युद्धाभ्यास करने के साथ ही तोपें, राइफलें, लाईट मशीनगन, इन सभी से प्रत्यक्ष रूप से मार की जा सकती है । इस क्षेत्र में लोगों की बस्ती न होने के कारण वहां वास्तव में युद्धाभ्यास किया जा सकता है ।
३. युद्धाभ्यास का उद्देश्य
भारत के युद्धशास्त्र से संबंधित विशेषज्ञ आर्य चाणक्य ने सहस्रों वर्ष पूर्व कहा था कि ‘शत्रु का शत्रु हमारा मित्र होता है ।’ भारत का शत्रु चीन है तथा ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान, दक्षिण एशिया के सिंगापुर, मलेशिया, इंडोनेशिया आदि देश चीन के शत्रु हैं; इसलिए चीन के इन सभी शत्रुओं से हमें मित्रता बढानी आवश्यक है । आवश्यकता पडे, तो चीन के विरुद्ध हमारे मित्र राष्ट्रों का एक संगठन बनाकर चीन के विरुद्ध यह लडाई और अधिक अच्छे ढंग से लडी जा सकती है ।
अ. एकत्रित अभ्यास करने से एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखा जा सकता है ।
आ. दोनों सेनाएं एकत्र काम करना सुनिश्चित करें, तो वह सुलभ बन जाता है । इ. युद्ध के विविध पहलुओं, साथ ही टैंकों, तोपखाना, ‘आर्मर पर्सनल कैरियर’ का ‘सपोर्ट’ (सहायता) आदि सभी का अध्ययन किया जा सकता है ।
ई. भारत की भांति ऑस्ट्रेलिया में भी बडा रेगिस्तानी क्षेत्र है । रेगिस्तान में लडाई कैसी लडनी चाहिए, इसका भारतीय सेना को प्रचुर अनुभव है । भारत के इस अनुभव का ऑस्ट्रेलिया को लाभ होगा । इसमें विभिन्न नई प्रौद्योगिकी का भी अध्ययन किया जाता है । प्रत्येक राष्ट्र की युद्धकला का उपयोग करने की पद्धतियों में अंतर होता है । इस युद्धाभ्यास के कारण भारत एवं ऑस्ट्रेलिया इन दोनों देशों की युद्धक्षमता बढने में सहायता मिलेगी ।
उ. अनेक बार संयुक्त राष्ट्र स्वयं की सैन्य शांति को टिकाए रखने के लिए रेगिस्तानी क्षेत्र में अभियान चलाता है । इससे सेना को लाभ होता है ।
४. युद्धाभ्यास का लाभ एवं भारत का विश्व में बढता महत्त्व
भारत ऑस्ट्रेलिया के साथ ही नहीं, और २० से २५ देशों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में यह अभ्यास कर रहा है । इसमें ऑस्ट्रेलिया सहित अमेरिका, जापान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलिपींस आदि देश समाविष्ट हैं । भारत इस युद्धाभ्यास के माध्यम से उनसे अपने रक्षा संबंधों को अधिक सशक्त बना रहा है । उसके कारण भविष्य में युद्धजन्य स्थिति उत्पन्न होने पर उसका सफलतापूर्वक प्रतिकार किया जा सकेगा । इससे पूर्व ऐसा युद्धाभ्यास नहीं होता था । चीन से संकट उत्पन्न होने के कारण भारत चीन के विरुद्ध विभिन्न युद्धों की तैयारी कर रहा है ।
युद्धाभ्यास के दो प्रकार हैं – ‘बाइलैटरल’ (द्विपक्षीय) एवं ‘मल्टीलैटरल’ (बहुपक्षीय – अनेक) । ‘बाइलैटरल’ में एक ओर भारत तथा दूसरी ओर अन्य मित्र राष्ट्र होते हैं । ‘मल्टीलैटरल’ युद्धाभ्यास में अन्य देश सहभागी होते हैं, जैसे चतुष्कोनीय सहयोग के अंतर्गत अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया एवं भारत एकत्रित रूप से नौसेनाओं का संयुक्त अभ्यास कर रहे हैं । आगे जाकर समुद्र की लडाई एकत्रित रूप से की जाएगी तथा अन्य राष्ट्रों से सहायता लेनी पडेगी । भविष्य के संकटों को ध्यान में रखकर भारत को मित्रराष्ट्रों से सहायता लेनी पड सकती है । उसके लिए विश्व स्तर पर विभिन्न बैठकें की जा रही हैं । देश को सुरक्षित रखने का कार्य मित्र राष्ट्रों की सहायता से और अच्छे ढंग से किया जा सकता है ।
५. मित्र राष्ट्रों की सहायता से युद्धाभ्यास करने से विभिन्न क्षेत्रों में भारत की स्वरक्षा की क्षमता बढना
भारत का हवाई बल अमेरिका एवं जापान के हवाई दल के साथ युद्धाभ्यास करता है । नौसेना के युद्धाभ्यास में सागरी सुरक्षा सुनिश्चित करने का अभ्यास किया जाता है । गहरे समुद्र में उदा. हिन्द महासागर, इंडो-पैसिफिक महासागर, बंगाल की खाडी, अरब सागर आदि में चीनी नौकाओं की संख्या बढ रही है; इसलिए ऐसे स्थानों पर चतुष्कोनीय सहयोग के माध्यम से बडे स्तर पर युद्धाभ्यास किया जाता है । गहरे समुद्र में किए जानेवाले युद्धाभ्यास के लिए बडी नौकाओं की आवश्यकता होती है, जो अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा जापान के पास हैं । दक्षिण एशियाई देशों के समुद्र में चीनी नौकाओं की बडे स्तर पर घुसपैठ चलती रहती है, वहां भी भारत ने युद्धाभ्यास आरंभ किया है ।
अब आकाश एवं अंतरिक्ष का भी सैनिकीकरण हो रहा है । वहां से यदि आक्रमण हुआ, तो उसका प्रतिकार कैसे करना चाहिए, इसका युद्धाभ्यास चल रहा है । देश के लिए संभावित संकटों का अवलोकन कर मित्र राष्ट्रों की सहायता से उसका युद्धाभ्यास करने से विभिन्न क्षेत्रों में स्वरक्षा की क्षमता बढती है । उसके कारण देश को अधिक सुरक्षित बनाया जा सकता है । यही विभिन्न प्रकार के युद्धाभ्यासों का सबसे बडा उद्देश्य है ।’
– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे, महाराष्ट्र ।