सनातन की ‘योगतज्ञ दादाजी का चरित्र एवं सीख’ ग्रन्थमाला का प्रथम ग्रंथ
कलियुग के त्रिकालदर्शी ऋषि ! योगतज्ञ प.पू. दादाजी वैशंपायनजी
ऋषि-मुनियों समान तपस्या, सर्वज्ञता, लीलासामर्थ्य इत्यादि गुण विशेषताओं से युक्त अद्वितीय व्यक्तित्व अर्थात कुछ वर्ष पूर्व इस भूतल को अपने अस्तित्व से पावन करनेवाले योगतज्ञ दादाजी ! उन्होंने कठोर तपस्या से प्राप्त की सिद्धियों द्वारा जीवनभर पीडितों के संकटों का निवारण किया । उनकी साधनायात्रा, उनका लोकोत्तर कार्य, उन्होंने अपने वैकुंठगमन के विषय में दी पूर्वसूचनाएं एवं विशेष अनुभूतियां प्रस्तुत ग्रन्थमें दी हैं ।