‘भजन’, ‘भ्रमण’ एवं ‘भंडारा’, इन माध्यमों से दिन-रात कार्य करनेवाले प.पू. भक्तराज महाराजजी के स्थूल एवं सूक्ष्म कार्य की पू. नंदू भैया (हेमंत कसरेकरजी) द्वारा वर्णन की गई विशेषताएं !

१८ नवंबर को प.पू. भक्तराज महाराजजी के महानिर्वाण दिन निमित्त…

प.पू. भक्तराज महाराजजी के ज्येष्ठ सुपुत्र पू. नंदू भैया (हेमंत कसरेकरजी) से डॉ. दुर्गेश सामंत की भेंटवार्ता

 

प.पू. भक्तराज महाराजजी की सीख के विषय में पू. नंदू भैया से संवाद करते सनातन के साधक डॉ. दुर्गेश सामंत (बाईं ओर)

सनातन संस्था के श्रद्धाकेंद्र प.पू. भक्तराज महाराजजी (प.पू. बाबा) के बडे सुपुत्र पू. नंदू भैया जून २०१५ में सनातन के रामनाथी आश्रम में पधारे थे । उन्होंने आश्रम का अवलोकन किया । आश्रम में उन्हें प.पू. भक्तराज महाराजजी के संदर्भ में कुछ अनुभूतियां हुईं । २६.६.२०१५ को सनातन के साधक डॉ. दुर्गेश सामंत ने पू. नंदू भैया से भेंटवार्ता की । उस समय उन्होंने ‘प.पू. बाबा समय-समय पर कैसे उनके तारणहार बन गए ?, साथ ही उन्हें कैसे सभी प्रकार की शिक्षा दीं ?’, इस विषय में विशेषतापूर्ण सूत्र तथा उनकी कुछ अनुभूतियां बताईं ।

१. पू. नंदू भैया द्वारा बताया गया नाभिकमल का महत्त्व

१ अ. नाभिकमल से भक्तिमार्ग का आरंभ होना

पू. नंदू भैया (हेमंत कसरेकरजी) : प.पू. भक्तराज महाराज (प.पू. बाबा) का भक्तिमार्ग है तथा भक्तिमार्ग का प्रथम चरण नाभिचक्र से अर्थात नाभिकमल से आरंभ होता है । हमारे मोरटक्का स्थित आश्रम के प्रवेशद्वार पर जो कमल बनाया गया है, वह नाभिचक्र का ही प्रतीक है । प.पू. बाबा ने जब वह प्रवेश द्वार बनाया, उस समय उनके साथ रामजी दादा भी (प.पू. रामानंद महाराजजी भी) थे । मैंने उनसे यह प्रश्न कभी नहीं पूछा; परंतु बहुत दिनों के उपरांत मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि यह कमल प्रतीकात्मक है तथा वह भक्ति का आरंभमार्ग है । नाभिकमल से भक्तिमार्ग का आरंभ होता है; क्योंकि नाभिकमल एक ऐसा स्थान है, जो निचले ३ स्थानों तथा ऊपर के ३ स्थानों के मध्य स्थित है । किसी भी जीव का अथवा साधक का जन्म होता है, उस समय वह अपनी पहली सांस नाभिकमल से ही लेता है ।

२. ध्यान मंदिर में प.पू. बाबा का छायाचित्र देखते समय पू. नंदू भैयाजी को ज्योति के दर्शन होना, परात्पर गुरु डॉक्टरजी एवं स्वयं में भी ज्योति के दर्शन होना

डॉ. दुर्गेश सामंत : आश्रम में आपको कौन सी अनुभूति हुई ?
पू. नंदू भैया : ध्यान मंदिर गए । वहां मैंने बाबा का छायाचित्र देखा । उस समय मुझे एक क्षण में संदेश मिला ‘तुम यहां बैठो ।’ मैं वहीं बैठ गया । बैठने पर प.पू. बाबा की ओर देखते समय मेरी आंखें अपनेआप बंद हो गईं तथा मुझे एक ज्योति के दर्शन हुए । उसके उपरांत दूसरे दिन सवेरे उसी प्रकार के ज्योतिस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के साथ मेरी भेंट हुई, उस समय उनमें तथा मुझमें मुझे उसी ज्योति के दर्शन हुए । उन्होंने मुझे बताया, ‘‘यहां मणि नाम के एक ज्योतिषी आए थे । उन्होंने बताया है कि यहां ज्योतिस्वरूप में प.पू. बाबा का वास है ।’’ उस ज्योति के दर्शन मुझे सायंकाल में ही हुए थे । इस स्थान पर प.पू. बाबा २४ घंटे ज्योतिस्वरूप में वास करते हैं ।

३. ‘भजन’, ‘भ्रमण’ एवं ‘भंडारा’, इन तीनों माध्यमों से साधकों एवं भक्तों के लिए कार्य करनेवाले प.पू. बाबा !

डॉ. दुर्गेश सामंत : साधना के आरंभ में कुछ प्रयास मानसिक स्तर पर होते हैं, तो कुछ आध्यात्मिक स्तर पर होते हैं । उसके उपरांत उसमें आध्यात्मिक परिवर्तन आने लगते हैं । इस विषय पर हमारा संवाद हुआ, उस समय वे (प.पू. बाबा) कहने लगे, ‘‘यह जो परिवर्तन है, वह आध्यात्मिक स्तर का है । कुंडलिनी की गति में इस प्रकार से परिवर्तन आता है कि कुंडलिनी सहस्रार चक्र तक पहुंचती है तथा पुनः मूलाधार चक्र में वापस आती है । कुंडलिनी का पुनः मूलाधारचक्र में आने का अर्थ है वह व्यक्ति केवल समाज के लिए सभी प्रकार के प्रयास करने लगता है । प.पू. बाबा भजन, भंडारा एवं भ्रमण ये सब लोगों के लिए ही करते थे तथा उनका नामजप निरंतर चलता रहे; इसके लिए ही वे भ्रमण करते थे ।

३ अ. प.पू. बाबा के देहत्याग के उपरांत भी उनका जानकारी देने, संदेश देने आदि कार्य चल रहे हैं तथा ‘वे ही सब कुछ कर रहे हैं’, इसकी कदम-कदम पर अनुभूति होना

पू. नंदू भैया : ‘इस त्रिसूत्री कार्यक्रम पर ही हमारे सभी आश्रम निर्भर रहेंगे’, ऐसा प.पू. बाबा ने बताया था । ‘भजन’, ‘भ्रमण’ एवं ‘भंडारा’ इन तीनों माध्यमों से वे साधक एवं भक्त को ज्ञान देते हैं । वे भजन के माध्यम से उन्हें शांत बनाते हैं तथा भ्रमण के माध्यम से उन्हें दर्शन देते हैं । जानकारी देना, संदेश देना जैसे उनके कार्य अभी भी चल रहे हैं । कभी-कभी ऐसा लगता है कि ‘क्या उन्होंने यह बंद किया है ?’; परंतु नहीं ! आज भी भक्तों को उनके दर्शन होते हैं । सब कुछ बाबा के कारण ही होता है । सर्वत्र यह ध्यान में आता है तथा उसका भान भी होता है । कुछ दिन पूर्व की ही बात है । हम ११ हनुमानजी के दर्शन करने के लिए गए थे । सांगली जिले के नरसिंहपुर के पास ‘बहे’ नामक स्थान पर समर्थ रामदासस्वामीजी ने हनुमानजी की स्थापना की है । वहां शिवजी के मंदिर में प्रत्यक्ष हनुमानजी आए । हम उस मंदिर से बाहर निकल ही रहे थे, उस समय हनुमानजी मंदिर में आए । वे केवल २-४ लोगों को ही दिखाई दिए, सभी को नहीं । हनुमानजी भगवान शिव के स्थान पर गए तथा वहां से अदृश्य हो गए । उसके उपरांत वे दिखाई नहीं दिए । कुछ लोगों ने हनुमानजी के छायाचित्र भी खींचें हैं । बाबा अनेक स्थानों पर इस प्रकार की अनुभूतियां देते हैं ।

४. प.पू. बाबा ने अपने आध्यात्मिक सामर्थ्य से ‘पू. नंदू भैया का मृत्युयोग कैसे टाल दिया ?’, इससे संबंधित अनुभूतियां

डॉ. दुर्गेश सामंत : आप प.पू. बाबा की कुछ और अनुभूतियां बताइए । आपको तो उन्होंने ही तारा है । उन्होंने ही आपको सब कुछ दिया है ।
पू. नंदू भैया : अभी भी वे ही तारणहार हैं । उन्होंने ही मेरा मृत्युयोग टाला है । मुझे सर्वत्र उनकी अनुभूति होती है ।
डॉ. दुर्गेश सामंत : उन्होंने आपका मृत्युयोग कैसे टाला ?

४ अ. प.पू. बाबा द्वारा ६०० कि.मी. दूरी पर इंदौर से कांदळी के खेत में स्थित कुएं में उतरे हुए पू. नंदू भैया को बचाना तथा उसके उपरांत ‘इस बार बचाया है; परंतु अगली बार नहीं बचाऊंगा’, यह कहकर उन्हें भान भी करा देना

पू. नंदू भैया : कांदळी में बाबा के आवास के स्थान पर उनकी जो खेती (छ: एकड) है, वहां कुआं खोदने का काम चल रहा था । काम के समय मुझे कुएं में जाना पडता था । एक बार मैं कुएं में उतर गया । वहां एक रस्सी लगाई गई थी । उस रस्सी से मुझे लगभग ५० फुट ऊपर आना था । मैंने ऊपर आने का प्रयास किया । मैंने आधी दूरी पार की थी तथा वहां आने के उपरांत मेरा शरीर ही फूल गया । नीचे तो केवल पत्थर ही पत्थर थे, पानी नहीं था । दोपहर के ४-४.३० बजे थे । उस समय प.पू. बाबा इंदौर के आश्रम में सो रहे थे । मैंने वहीं से बाबा से प्रार्थना की, ‘‘आप कुछ भी करके मुझे यहां से बाहर निकालिए, अन्यथा अब मेरा अंतिम समय आ चुका है’ उस समय मुझे प्रतीत हुआ कि एक सेकेंड में एक शक्ति ने मुझे कुएं से बाहर निकालकर नीचे सुला दिया । उसके १५-२० दिन उपरांत मैं इंदौर गया । वहां बाबा ने मेरा हालचाल पूछते हुए कहा, ‘‘क्या चल रहा है ? कुएं का काम कहां तक पहुंचा है ?’’ बोलते-बोलते वे कहने लगे, ‘‘तुम कुएं में किसलिए उतरे थे ?’’ मैंने कहा, ‘‘बाबा, वहां काम था; इसलिए मैं कुएं में उतरा था ।’’ उस समय हम बाबा को गुरु के रूप में अल्प तथा पिता के रूप में ही अधिक देखते थे । उस समय वे कहने लगे, ‘‘इस बार बचाया है; परंतु अगली बार नहीं बचाऊंगा ।’’ इसका अर्थ यहां मैं कुएं में था और वे वहां ६०० कि.मी. दूर थे; परंतु तब भी उन्होंने ही मुझे बचाया । ऐसा मैंने अनेक बार अनुभव किया है ।

४ आ. आंत्र ज्वर (टाइफाइड) के कारण चिकित्सक ने पू. नंदू भैया की स्थिति गंभीर बताई तथा प.पू. बाबा के ‘तुम अभी नहीं जाओगे’, ऐसा बोलकर ‘प्रभु या मायाबाजारी’ भजन सुनाने के उपरांत उनके स्वास्थ्य में धीरे-धीरे सुधार आने लगा

डॉ. दुर्गेश सामंत : ‘उन्होंने आपको बचाया’, ऐसे और कुछ प्रसंग बताइए न ! प.पू. बाबा से संबंधित घटनाएं सुनते समय बहुत आनंद आता है ।
पू. नंदू भैया : मैं जब मोरटक्का में था, उस समय मुझे एक बार आंत्र ज्वर हुआ था । वहां के चिकित्सक ने आंत्र ज्वर के कारण मेरी स्थिति गंभीर है, ऐसा बताया था । उसके उपरांत बाबा के आने पर जीजी ने (मां ने) उन्हें सब बताया । उन्हें नमस्कार कर मैं धीमे स्वर में कहने लगा, ‘‘बाबा, आप मुझे एक भजन सुनाइए न ! बाबा, आज मेरा अंतिम दिन है ।’’ बीमार होने के कारण मेरे मुंह से आवाज नहीं निकल पा रही थी । उस समय बाबा ने मुझे ‘प्रभु या मायाबाजारी’ भजन सुनाया और कहने लगे, ‘‘तुम अभी नहीं जाओगे ।’’ उन्होंने केवल इतना ही कहा और संपूर्ण भजन सुनाया । उसके उपरांत धीरे-धीरे मेरे स्वास्थ्य में सुधार आने लगा ।
डॉ. दुर्गेश सामंत : अरे बाप रे ! इसका अर्थ यह सब बाबा की ही कृपा है !
पू. नंदू भैया : जी हां ! मेरा जीवन तो पूरी तरह बाबा की ही कृपा है । उन्हीं की कृपा से यह सब कुछ चल रहा है ।