सनातन के ग्रंथों को ‘ई-बुक’ स्वरूप में उपलब्ध कराने की सेवा में योगदान करें !

साधकों को सूचना तथा पाठकों से निवेदन !

 

काल के अनुसार व्यष्टि साधना की अपेक्षा समष्टि साधना का अधिक महत्त्व है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी द्वारा संकलित किए जा रहे सनातन के ग्रंथों की सेवा में सम्मिलित होना समष्टि साधना है । आजकल समाज में संगणकों, चल-दूरभाष संचों आदि का बडे स्तर पर उपयोग किया जा रहा है । उसके कारण सनातन के ग्रंथों को समाज के लिए ‘ई-बुक’ के रूप में उपलब्ध कराने की बडी सेवा उपलब्ध हुई है । (‘ई-बुक’ : किसी पुस्तक का ‘डिजिटल’ या ‘इलेक्ट्रॉनिक’ स्वरूप में रूपांतरण) ! इस सेवा के लिए इस क्षेत्र में कार्यरत अनुभवी व्यक्तियों एवं साधकों की आवश्यकता है । इसके अंतर्गत निम्नलिखित सेवाएं उपलब्ध हैं –

१. ‘इनडिजाइन’, ‘फोटोशॉप’ जैसी संगणकीय प्रणाली के माध्यम से ग्रंथों की संरचना करना

२. अन्य ‘ई-बुक्स’ की पद्धतियों का अध्ययन करना, साथ ही सामाजिक प्रसारमाध्यमों के द्वारा ‘ई-बुक्स’ का प्रसार करना

३. प्रौद्योगिक (टेक्निकल) : सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट के अंतर्गत JavaScript programming करना

४. इससे संबंधित सेवाएं करने के लिए दायित्व लेकर समन्वय आदि सेवाएं करना

उक्त सेवाओं में अपना योगदान देकर हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के धर्मकार्य में सम्मिलित होकर मनुष्यजीवन का सार्थक कर लीजिए ! इस सेवा में सम्मिलित होने के लिए इच्छुक व्यक्ति एवं साधक निम्न सारणी के अनुसार अपनी जानकारी सूचित करें ।

जिन साधकों को इस सेवा का ज्ञान है तथा यह सेवा करने में रुचि है, वे लोग या जो यह सेवा सीखकर घर से ही यथासंभव सेवा कर सकते हैं, वे भी निम्नांकित पते पर संपर्क करें –

संपर्क के लिए नाम एवं संपर्क क्रमांक

श्रीमती भाग्यश्री सावंत – 7058885610

संगणकीय पता : sanatan.sanstha2025@gmail.com

श्रीमती भाग्यश्री सावंत, द्वारा ‘सनातन आश्रम’, २४/बी, रामनाथी, बांदिवडे, फोंडा, गोवा – ४०३४०१.’ (२७.१०.२०२२)