सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘हिन्दू राष्ट्र में अर्थात रामराज्य में बचपन से साधना करवाई जाएगी । इससे व्यक्ति में विद्यमान रज-तम की मात्रा घटकर व्यक्ति सात्त्विक बनता है । इस कारण ‘अपराध करना चाहिए’, ऐसा विचार भी उसके मन में नहीं आता । साधना के कारण पूरी प्रजा सात्त्विक बन जाती है और कोई भी अपराध नहीं करता !
ईश्वर ही प्रत्येक के वास्तविक आधार हैं !
‘कठिन समय में कौन काम आता है ?’, इस प्रश्न का उत्तर है, ‘कठिन समय में ईश्वर ही काम आते हैं !’ संत एवं बुद्धिप्रमाणवादी में भेद !
छोटे बच्चों जैसे बुद्धिप्रमाणवादी !
‘बुद्धिप्रमाणवादियों को कभी विश्वबुद्धि से ज्ञान मिलता है क्या ? ‘विश्वबुद्धि’ जैसा भी कुछ है और उस विश्वबुद्धि से ज्ञान मिलता है, यह भी उन्हें ज्ञात है क्या ? यह ज्ञात न होने के कारण ही छोटे बच्चे जैसे बडबडाते हैं; वैसे ही वे भी बडबडाते हैं !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले