२५.१०.२०२२ को दिखाई देनेवाला खंडग्रास सूर्यग्रहण, ग्रहण की अवधि में पालन किए जानेवाले नियम तथा ग्रहण का राशि के आधार पर मिलनेवाला फल !
१. इन देशों में दिखेगा सूर्यग्रहण !
‘विक्रम संवत अनुसार कार्तिक अमावस्या एवं शक संवत अनुसार आश्विन अमावस्या (२५.१०.२०२२, मंगलवार) को भारत सहित एशिया उपमहाद्वीप का मध्य का क्षेत्र तथा पश्चिम का प्रदेश, संपूर्ण यूरोप उपमहाद्वीप, अफ्रीका उपमहाद्वीप का पूर्वाेत्तर प्रदेश, इन प्रदेशों में ग्रहण दिखाई देगा ।
२. खग्रास एवं खंडग्रास सूर्यग्रहण
सूर्य एवं पृथ्वी के मध्य में चंद्रमा आते हैं तथा चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर आती है । वह छाया जिस क्षेत्र में आती है, वहां से उतने समय तक चंद्रबिंब ढका हुआ दिखाई देता है । यदि सूर्यबिंब पूर्णरूप से दिखाई देना बंद हुआ, तो ‘खग्रास सूर्यग्रहण’ तथा सूर्यबिंब आंशिक रूप से ढक गया, तो उससे ‘खंडग्रास सूर्यग्रहण’ होता है । सूर्यबिंब यदि कंकण के (स्त्रियों के कंगन समान) आकार में ढक गया, तो उस ग्रहण को ‘कंकणाकृति ग्रहण’ कहते हैं । कंकणाकृति सूर्यग्रहण में सूर्य संपूर्ण रूप से ढका हुआ दिखाई नहीं देता; परंतु सूर्य के बाहर का भाग कंकण की भांति चमकता है । सूर्यग्रहण अमावस्या के दिन लगता है ।
३. भारत में सर्वत्र दिखाई देनेवाले सूर्यग्रहण के समय
३ अ. यह ग्रहण २५.१०.२०२२ को वाराणसी में दोपहर ४ बजकर ४२ मिनट से सूर्यास्त तक है और मुंबई में दोपहर ४ बजकर ४९ मिनट से सूर्यास्त तक है ।’ (सौजन्य : दाते पंचांग)
३ आ. ‘वाराणसी के लिए सूर्यग्रहण के समय
३ आ १. स्पर्श (आरंभ) : सायं. ४.४२ बजे
३ आ २. मध्य : सायं. ५.३६ बजे
३ आ ३. मोक्ष (टिप्पणी १) : सूर्यास्त तक । सूर्यास्त समय : सायं. ५.२१ बजे
३ आ ४. ग्रहणपर्व (टिप्पणी २) (ग्रहण आरंभ से लेकर अंत तक की कुल समयावधि) : ३९ मिनट
३ इ. मुंबई के लिए सूर्यग्रहण के समय
३ इ १. स्पर्श (आरंभ) : सायं. ४.४९ बजे
३ इ २. मध्य : सायं. ५.४३ बजे
३ इ ३. मोक्ष (टिप्पणी १) : सूर्यास्त तक । सूर्यास्त समय : सायं. ६.०८ बजे
३ इ ४. ग्रहणपर्व (टिप्पणी २) (ग्रहण आरंभ से लेकर अंत तक की कुल समयावधि) : १ घंटा १९ मिनट
टिप्पणी १ : भारत में यह सूर्यग्रहण सर्वत्र ग्रस्तास्त दिखाई देनेवाला है अर्थात ग्रसित सूर्वबिंब अस्त तक पहुंचेगा । उसके कारण भारत में कहीं भी ग्रहणमोक्ष दिखाई नहीं देगा ।
टिप्पणी २ : पर्व का अर्थ पर्वणी अथवा पुण्यकाल है । ‘ग्रहणस्पर्श से लेकर ग्रहणमोक्षतक का काल पुण्यकाल है । शास्त्र में बताया गया है कि इस काल में ईश्वरी सान्निध्य में रहने से आध्यात्मिक लाभ मिलता है ।
३ ई. पुण्यकाल : स्थानीय समय के अनुसार (संबंधित गांवों/शहरों) स्पर्शकाल से लेकर सूर्यास्त तक के काल को पुण्यकाल माना जाए ।’
(सौजन्य : दाते पंचांग)
३ ऊ. ग्रहण का सूतक काल लगना
३ ऊ १. अर्थ : सूर्यग्रहण से पूर्व सूर्य चंद्रमा की छाया में आने लगता है । उसके कारण सूर्य का प्रकाश धीरे-धीरे क्षीण होना आरंभ होता है, इसी को ‘ग्रहण का सूतक काल लगा’, ऐसा कहा जाता है ।
३ ऊ २. समयावधि : ‘यह सूर्यग्रहण दिन के चौथे प्रहर में (टिप्पणी ३) लगेगा; इसलिए मंगलवार प्रातः ३.३० बजे से सूर्यास्त तक ग्रहण के सूतक काल का पालन करें । बच्चे, वृद्ध व्यक्ति, शक्तिहीन तथा बीमार व्यक्ति, साथ ही गर्भवती महिलाएं मंगलवार दोपहर १२.३० बजे से मोक्षस्नान तक सूतक काल का पालन करें । मोक्षस्नान उपरांत हलका आहार ले सकते हैं । मोक्षस्नान के लिए सूत्र १०. देखें ।’ (सौजन्य : दाते पंचांग)
टिप्पणी ३ : एक प्रहर ३ घंटों का होता है । दिन के ४ तथा रात के ४ प्रहर मिलकर दिन में कुल ८ प्रहर होते हैं ।
४. सूर्यग्रहण की अवधि में पालन किए जानेवाले नियम
‘सूतक काल में स्नान, देवतापूजन, नित्यकर्म, जपजाप्य एवं श्राद्धकर्म किए जा सकते हैं । सूतक काल में भोजन करना निषिद्ध है; इसलिए अन्नपदार्थ न खाएं; परंतु पानी पीना, मल-मूत्रोत्सर्ग एवं विश्राम करने जैसे कर्म किए जा सकते हैं; परंतु ग्रहण के पर्वकाल में अर्थात ग्रहण स्पर्श से स्थानीय समय अनुसार सूर्यास्त तक की अवधि में (वाराणसी के समय के अनुसार दोपहर ४.४२ बजे से लेकर सायंकाल ५.२१ बजे तक तथा मुंबई के समय के अनुसार दोपहर ४.४९ बजे से लेकर सायंकाल ६.०८ बजे तक । मोक्षस्नान के लिए सूत्र १०. देखें ।) पानी पीना, मल-मूत्रोत्सर्ग एवं सोने जैसे कर्म निषिद्ध होने से न करें ।’ (सौजन्य : दाते पंचांग)
४ अ. स्वास्थ्य की दृष्टि से सूतक काल के नियमों का पालन करने का महत्त्व !
४ अ १. शारीरिक एवं भौतिक स्तरों पर : सूतक काल में जीव-जंतुओं की संख्या बढने के कारण अन्न शीघ्र दूषित होता है । इस काल में रोगप्रतिरोधक शक्ति भी क्षीण होती है । जिस प्रकार रात का अन्न दूसरे दिन बासी बन जाता है, उस प्रकार ग्रहणोपरांत का अन्न बासी माना जाता है । अतः ऐसा अन्न फेंक दें; परंतु केवल दूध एवं पानी के लिए यह नियम लागू नहीं है । ग्रहण से पूर्व के दूध तथा पेयजल का उपयोग ग्रहण के उपरांत भी कर सकते हैं ।
४ अ २. मानसिक स्तर पर : मनोविकार विशेषज्ञ बताते हैं कि सूतक काल का प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर भी पडता है । ग्रहणकाल में कुछ व्यक्तियों को निराशा आना, तनाव बढना आदि मानसिक कष्ट होते हैं ।
५. ग्रहणकाल में साधना का महत्त्व
ग्रहणकाल में की जानेवाली साधना का फल सहस्रों गुना मिलता है । इसके लिए ग्रहणकाल में साधना को प्रधानता देना महत्त्वपूर्ण है । सूतकारंभ से लेकर ग्रहण समाप्त होने तक नामजप, स्तोत्रपाठ, ध्यानधारणा इत्यादि धार्मिक कार्याें में व्यस्त रहने से उसका लाभ मिलता है ।
६. ग्रहणकाल में उचित-अनुचित कृत्य
६ अ. वर्ज्य कृत्य : ‘ग्रहणकाल में (पर्वकाल में) सोना, मल-मूत्रविसर्जन, अभ्यंग (संपूर्ण शरीर को गुनगुना तेल लगाकर उसका शरीर में शोषण होने तक मर्दन करना), भोजन, खाना-पीना तथा कामविषयसेवन जैसे कृत्य नहीं करने चाहिए ।
६ आ. ग्रहणकाल में कौनसे कर्म करने चाहिए ?
१. ग्रहणस्पर्श होते ही स्नान करें ।
२. पर्वकाल में देवतापूजन, तर्पण, श्राद्ध, जाप, होमहवन एवं दान करें ।
३. इस अवधि में पहले कुछ कारणवश खंडित मंत्र के पुरश्चरण का पुनः आरंभ करने से उसका फल अनंत गुना मिलता है ।
४. ग्रहणमोक्ष के उपरांत स्नान करें ।
५. किसी व्यक्ति के लिए अशौच हो, तो ग्रहणकाल में ग्रहण से संबंधित स्नान एवं दान करने की अनुमति होती है ।
७. राशियों के आधार पर ग्रहण का फल
७ अ. शुभ फल : वृषभ, सिंह, धनु एवं मकर
७ आ. अशुभ फल : कर्क, तुला, वृश्चिक एवं मीन
७ इ. मिश्र फल : मेष, मिथुन, कन्या एवं कुंभ
जिन राशियों के लिए इस ग्रहण का फल अशुभ है, ऐसे व्यक्ति तथा गर्भवती महिलाएं यह सूर्यग्रहण न देखें ।’ (सौजन्य : दाते पंचांग)
८. सूर्यग्रहण देखते समय ली जानेवाली आवश्यक सावधानी
कंकणाकृति एवं खंडग्रास सूर्यग्रहण देखते समय ग्रहण देखने के लिए बनाए गए चश्मे अथवा कालिख विलेपित काली कांच अथवा सूर्य की प्रखर किरणें आंखों तक न पहुंचे; इसके लिए उपलब्ध साधनों का उपयोग कर ही ग्रहण देखें । किसी भी कारणवश खुली आंखों से सूर्य की ओर न देखें । ग्रहण के छायाचित्र खींचनेवाले व्यक्ति विशिष्ट ‘फिल्टर’ का उपयोग कर ही छायाचित्र खींचे, अन्यथा उससे उनकी आंखों को हानि पहुंच सकती है ।
९. ग्रहण में स्नान के विषय में जानकारी
‘ग्रहण में सभी प्रकार का उदक गंगाजी के समान है; परंतु तब भी उष्णोदक से शीतोदक अधिक पुण्यकारक होता है, पानी उठाकर स्नान करने की अपेक्षा बहता पानी, सरोवर, नदी, महानदी, गंगाजी, समुद्र में किया जानेवाला स्नान उत्तरोत्तर श्रेष्ठ एवं पुण्यकारक होता है । सूर्यग्रहण में नर्मदास्नान का विशेष महत्त्व बताया गया है । नर्मदास्नान करना संभव न हुआ, तो स्नान के समय नर्मदाजी का स्मरण करें ।’ (सौजन्य : दाते पंचांग)
१०. मोक्षस्नान एवं भोजन के विषय में
‘इस ग्रहण का मोक्ष दिखाई नहीं देगा, तथापि भारतीय प्रमाण समय के अनुसार सबसे विलंबित मोक्ष समय के उपरांत अर्थात सायं. ६.३२ बजे के उपरांत मोक्षस्नान करें तथा दूसरे दिन सवेरे शुद्ध सूर्यबिंब देखने के उपरांत भोजन करें । बच्चे, वृद्ध व्यक्ति, शक्तिहीन तथा बीमार व्यक्ति, साथ ही गर्भवती महिलाएं मोक्षस्नान उपरांत हलका आहार ले सकते हैं ।’ (सौजन्य : दाते पंचांग)
११. सूर्यग्रहण में साधना का महत्त्व
प्रत्येक सजीव पर ग्रहणकाल के वातावरण का परिणाम होता है । चंद्रग्रहण की अपेक्षा सूर्यग्रहण का काल साधना के लिए अधिक पोषक होता है । ज्योतिष, धार्मिक एवं वैज्ञानिक, इन स्तरों पर ग्रहणकाल को महत्त्वपूर्ण माना गया है । ग्रहणकाल संधिकाल होने से इस काल में की जानेवाली साधना का परिणाम तुरंत प्रतीत होता है । ग्रहणकाल में जाप एवं दान देने का अनंत गुना महत्त्व है । इसके लिए ग्रहणमोक्ष के उपरांत अपनी क्षमता के अनुरूप दान दें । सूर्यग्रहण की अवधि नए मंत्र लेने तथा मंत्र का पुरश्चरण करने के लिए अनुकूल होती है । ग्रहण के पर्वकाल में पहले लिए गए मंत्र का पुरश्चरण करने से मंत्र सिद्ध होता है । सूर्यग्रहण में श्री गुरु का अनन्यभाव से स्मरण कर संपूर्ण श्रद्धापूर्वक तथा एकाग्र मन से किए गए जाप से शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक तथा व्यावहारिक कष्ट नष्ट होते हैं, साथ ही सभी प्रकार के कार्याें में सफलता मिलती है । ग्रहणकाल में जाप करने के लिए जपमाला की आवश्यकता नहीं होती । ग्रहणस्पर्श से लेकर मोक्षतक का संपूर्ण काल अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है ।’
– श्रीमती प्राजक्ता जोशी (ज्योतिष फलित विशारद, वास्तु विशारद, अंक ज्योतिष विशारद, रत्नशास्त्र विशारद, सर्टिफाइड डाउसर, रमलशास्त्री, अक्षर मनोविश्लेषण शास्त्र विशारद एवं हस्तसामुद्रिक प्रबोध), महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय (५.१०.२०२२)