बलि प्रतिपदा (दीपावली पडवा)
तिथि
कार्तिक शुक्ल
महत्त्व
यह साढे तीन मुहूर्तों में से अर्द्ध मुहूर्त है । इसे ‘विक्रम संवत’ कालगणना के वर्षारंभ दिन के रूप में मनाया जाता है ।
त्योहार मनाने की पद्धति
१. बलि प्रतिपदा के दिन जमीन पर पंचरंगी रंगोली द्वारा बलि एवं उनकी पत्नी विंध्यावली के चित्र बनाकर उनकी पूजा करते हैं । उन्हें मांस-मदिरा का नैवेद्य दिखाते हैं । इसके पश्चात बलि प्रीत्यर्थ दीप एवं वस्त्र का दान करते हैं । इस दिन प्रातःकाल अभ्यंगस्नान करने के उपरांत स्त्रियां अपने पति की आरती उतारती हैं । दोपहर में ब्राह्मणभोजन एवं मिष्टान्न युक्त भोजन बनाती हैं ।
२. धर्मशास्त्र कहता है कि ‘बलि राज्य में शास्त्र द्वारा बताए निषिद्ध कर्म छोडकर, लोगों को अपने मनानुसार आचरण करना चाहिए ।’ अभक्ष्यभक्षण, अपेयपान (निषिद्ध पेय का सेवन) एवं अगम्यागमन; ये निषिद्ध कर्म हैं । इसीलिए इन दिनों लोग बारूद उडाते हैं (आतिशबाजी करते हैं); परंतु मदिरा नहीं पीते ! शास्त्रों से स्वीकृति प्राप्त होने के कारण परंपरानुसार लोग मौजमस्ती करते हैं ।
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ – त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र)