सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्वेच्छाचार, प्राणियों की विशेषता हो सकती है, मानव की नहीं । ‘धर्मबंधन में रहना, धर्मशास्त्र का अनुकरण करना’, ऐसा करनेवाला ही ‘मानव’ कहला सकता है ।’
राष्ट्रविरोधी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थक !
‘व्यक्ति की अपेक्षा समाज और समाज की अपेक्षा राष्ट्र अधिक महत्त्वपूर्ण है, यह न समझनेवाले व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करनेवाले, देश को विनाश की ओर ले जा रहे हैं !’
संपूर्ण सृष्टि के कर्ता-करावनहार भगवान का ही अस्तित्व नकारनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी !
‘कर्ता द्वारा बनाई गई वस्तु कभी भी कर्ता से श्रेष्ठ नहीं हो सकती, उदा. बढई द्वारा बनाई गई कुर्सी कभी भी बढई से श्रेष्ठ नहीं हो सकती । ऐसा होते हुए भी भगवान के द्वारा निर्मित कुछ मनुष्य संपूर्ण सृष्टि के कर्ता-करावनहार भगवान के ही अस्तित्व को नकारकर उन्हें तुच्छ घोषित करने का प्रयास करते हैं !’
तीव्र गति से विनाश की ओर बढते हिन्दू !
‘कहां अर्थ और काम पर आधारित पश्चिमी संस्कृति, और कहां धर्म और मोक्ष पर आधारित हिन्दू संस्कृति ! हिन्दू पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं, इसलिए वे भी तीव्र गति से विनाश की ओर बढ रहे हैं !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले