हमें पुनः विभाजन के मार्ग पर नहीं चलना है ! – प.पू. सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नागपुर का विजयादशमी उत्सव !
नागपुर : ‘हम अलग दिखते हैं, हम एक-दूसरे के नहीं हैं तथा हमें हमारा अलग चाहिए; यह अनुचित विचार है । हमने इन अनुचित विचारों का दुखद परिणाम देखा है । ऐसे विचारों के कारण भाई बिछड गया, भूमि बांटी गई; साथ ही धर्म एवं संस्थाएं मिट गईं । हमें पुनः उस (विभाजन) के मार्ग पर नहीं चलना है । हमें एकत्र रहना है । प.पू. सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत ने यहां ऐसा प्रतिपादित किया । ५ अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विजयादशमी उत्सव में वे ऐसा बोल रहे थे ।
इस अवसर पर केंद्रीय सडक परिवहन मंत्री नितीन गडकरी एवं महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस उपस्थित थे । सांघिक गीत ‘परमवैभवी भारत होगा’, शारीरिक कवायतें तथा प्रदर्शनियों के प्रस्तुतिकरण के उपरांत कार्यक्रम का आरंभ हुआ ।
प.पू. मोहनजी भागवत ने आगे कहा कि,
१. हमें एकत्र रहना हो, तो सर्वप्रथम हमें भारत का बनना पडेगा । हम भारतीय पूर्वजों एवं भारतीय संस्कृति के वंशज हैं । समाज एवं राष्ट्रीयता के संबंध के चलते हम एक हैं तथा यही हमारे लिए तारक मंत्र है ।
२. भारत को स्वतंत्रता मिली; परंतु उसके उपरांत पाकिस्तान बन गया । उसके कारण हिन्दुओं-मुसलमानों में शाश्वत राजनीतिक दरार उत्पन्न हुई, यह अनुचित हुआ ।
३. हम हिन्दूसंगठन करते हैं; परंतु हम किसी का विरोध नहीं करते । लोग ‘भारतीय’, ‘इंडिक’; ऐसे शब्दप्रयोग करते हैं; परंतु हम हमारी स्पष्टता के लिए ‘हिन्दू’ शब्द का उपयोग करेंगे । साधन, शुचिता एवं तपस्या के आधार पर संघ का संगठन खडा हुआ है । उसके कारण संघशक्ति कभी भी उपद्रवी नहीं बन सकती ।
४. जनसंख्या में अनुपात का संतुलन बना रहना चाहिए । जनसंख्या की नीति सभी के लिए समानरूप से लागू होनी चाहिए । ५० वर्ष उपरांत हम कितने लोगों को भोजन परोस सकते हैं तथा उनका दायित्व ले सकते हैं; इसका समग्र विचार कर नीति बनानी पडती है ।
५. हम बच्चों को अंग्रेजी विद्यालयों में पढाते हैं । घर पर स्थित नामफलक, साथ ही मंगल कार्य की निमंत्रण पत्रिकाएं भी अंग्रेजी में भेजते हैं । ‘करियर’ के लिए अंग्रेजी आवश्यक है’, यह दृढ धारणा है; परंतु वैसा नहीं है । हम मातृभाषा की बातें करते हैं; परंतु जबतक हम स्वयं से किसी बात का आरंभ नहीं करते, तबतक कुछ भी साध्य नहीं होता । शिक्षानीति में मातृभाषा में शिक्षा देने का अंतर्भाव किया गया है । उसका पाठ्यक्रम भी तैयार किया जा रहा है; परंतु उसके लिए समाज से सहयोग नहीं मिलता, तबतक कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता ।
६. अन्यााय, असत्य, अत्याचार तथा आतंकवाद के विरोध में समाज को एकजूट होकर खडे रहना चाहिए ।