धर्म में बताई गई आश्रमप्रणाली का अर्थ !
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘हिन्दू धर्म में ‘वर्णाश्रम’, अर्थात वर्ण तथा आश्रम यह जीवनपद्धति बताई गई है । उनमें से वर्ण अर्थात जाति नहीं, अपितु साधना का मार्ग । आश्रम चार हैं – १. ब्रह्मचर्याश्रम, २. गृहस्थाश्रम, ३. वाणप्रस्थाश्रम तथा ४. सन्यासाश्रम । जिनके अर्थ क्रमशः इस प्रकार हैं – १. ब्रह्मचर्यपालन, २. गृहस्थजीवन का पालन, ३. गृहस्थाश्रम का त्याग कर मुनि वृत्ति से वन में रहना तथा ४. सन्यास जीवन का पालन । इन चारों शब्दों के साथ ‘आश्रम’ शब्द जोडने का महत्त्व यह है कि ‘जीवन के चारों चरणों में आश्रमवासी की भांति जीवन जिएं’, इसका स्मरण कराना ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेे