‘ईश्वर अवतार नहीं लेता, पुनर्जन्म एवं मोक्ष, ये कल्पनाएं सत्यशोधक समाज की सीख है!’ – शरद पवार, राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रवादी काँग्रेस
मुंबई – सत्यशोधक समाज की स्थापना करने के पीछे धार्मिक एवं सामाजिक सुधार का दृष्टिकोण था । सत्यशोधक समाज ने ईश्वर को नहीं नकारा । सत्यशोधक समाज का कहना है कि ईश्वर अवतार नहीं लेता । पुनर्जन्म एवं मोक्ष नहीं होता; अपितु यह केवल संकल्पना है, ऐसा वक्तव्य राष्ट्रवादी काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार ने किया । सत्यशोधक समाज की स्थापना के लिए १५० वर्ष पूर्ण होने के विषय में अखिल भारतीय महात्मा फुले समता परिषद की ओर से आयोजित शतकोत्तर सुवर्ण महोत्सव में वे बोल रहे थे ।
मराठा समाजाच्या टीकेनंतर मंत्र्याचा माफीनामा; राजीनाम्याची मागणी#TanajiSawant #MarathaReservation https://t.co/cOxQmIpTrD
— LoksattaLive (@LoksattaLive) September 27, 2022
इस अवसर पर व्यासपीठ पर भूतपूर्व मंत्री विधायक छगन भुजबल, भरत पाटणकर, प्रा. हरि नरके, आ.ह. साळुंखे आदि आधुनिकतावादियों की टोली उपस्थित थी । इस अवसर पर शरद पवार बोले, ‘‘ईश्वर एक ही है । वह निर्विकार है । इसलिए उसकी उपासना के लिए मध्यस्थों की आवश्यकता नहीं, ऐसी भूमिका सत्यशोधक समाज की है । पेशवाई के उत्तरकाल में जातीयभेद अपनी चरमसीमा पर था । हिन्दू धर्म की अनीति देखकर सत्यशोधक समाज की स्थापना की गई । सत्यशोधक समाज को केवल धार्मिक सुधार ही नहीं, अपितु शैक्षिक सुधार भी अपेक्षित थे ।’’ (हिन्दू धर्म का तिलमात्र भी अभ्यास न होते हुए उसमें नाक डालनेवाली यह टोली कभी इस्लाम एवं ईसाइयों की अघोरी प्रथाओं के विषय में कभी सत्य ढूंढने का प्रयत्न क्यों नहीं करतीं ? – संपादक)
‘जिसे हमने कभी देखा एवं जिसके कभी हमें सिखाया नहीं, उनकी पूजा क्यों करनी चाहिए ?’ – विधायक छगन भुजबल, राष्ट्रवादी काँग्रेस
‘अल्लाह एवं ईसामसीह की उपासना न करें’, ऐसा कहने का साहस भुजबल में हैं क्या ?
विद्यालयों में सावित्रीबाई फुले, ज्योतिबा फुले, शाहू महाराज, बाबासाहेब आंबेडकर, कर्मवीर भाऊराव पाटील के चित्र लगाने चाहिए; जबकि वहां सरस्वतीदेवी के चित्र लगाए जाते हैं । जिसे हमने कभी देखा नहीं, जिसने कभी हमें शिक्षा नहीं दी । सिखाया होगा, तो ३ प्रतिशत लोगों को ही सिखाया और हमें दूर किया । हमें जिसने दूर किया, उनकी पूजा क्यों करें ? जिनके कारण हमें शिक्षा मिली, वही आपके भगवान होने चाहिए । उनकी पूजा करें; परंतु उनके छायाचित्र भी आपके घर में नहीं मिलेंगे । भगवान समझकर उनकी पूजा होनी चाहिए । उनके विचारों की पूजा होनी चाहिए । अन्य देवी-देवताओं को बाद में देखेंगे । (हिन्दू धर्म में विशिष्ट तत्त्वों से युक्त देवी-देवताओं की आराधना की जाती है । जिसप्रकार बुद्धि के देवता श्री गणेश हैं, उसीप्रकार सरस्वती भी विद्या की देवी हैं । सरस्वतीदेवी की उपासना के कारण विद्या प्राप्त होती है । भुजबल की बातों से ध्यान में आता है कि उन्हें हिन्दू धर्म के विषय में तिलमात्र भी ज्ञान नहीं । जिस विषय का ज्ञान नहीं, उस पर बोलने से अपना ही अज्ञान प्रकट होता है, इतना भी जिन्हें ज्ञात नहीं ऐसे नेता समाज का क्या दिशादर्शन करेंगे ? – संपादक)
किसी भी परिस्थिति में हमारी सरकार श्री सरस्वतीदेवी का चित्र नहीं हटाएगी ! – देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री
मुंबई – श्री सरस्वती विद्या की देवी है । हमारी संस्कृति में सरस्वतीदेवी का मान है । भारतीय संस्कृति, परंपरा एवं जिन्हें हिन्दुत्व मान्य नहीं, ऐसे व्यक्ति ही श्री सरस्वतीदेवी का चित्र हटाने की भाषा कर सकते हैं । यदि छगन भुजबल ने ऐसा कहा है तो वह गलत है । विद्यालयों में महापुरुषों के चित्र अवश्य लगाएं; परंतु उसके लिए श्री सरस्वतीदेवी का चित्र क्यों हटाया जाए ? हमारी सरकार किसी भी परिस्थिति में श्री सरस्वतीदेवी का चित्र नहीं हटाएंगी, ऐसी भूमिका राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने प्रसारमाध्यमों से बोलते समय व्यक्त की ।
देश को जर्जर करने का ‘पी.एफ्.आई.’ का प्रयत्न !
‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’, इस संगठन के कार्यकर्ताओं के बंदी बनाने के विषय में पत्रकारों द्वारा पूछे गए प्रश्न पर देवेंद्र फडणवीस बोले, ‘‘गत ५ वर्ष राष्ट्रीय अन्वेषण यंत्रणा (एन.आइ.ए.) एवं आतंकवादविरोधी पथक ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’के (‘पी.एफ्.आइ.’की) कार्रवाईयों की निगरानी कर रहा था । विविध माध्यमों से समाज में भेद निर्माण कर देश को जर्जर बनाने के लिए पी.एफ्.आइ. प्रयत्नशील था । इसलिए इस संगठन पर कार्रवाई करना आवश्यक हो गया ।’’
संपादकीय भूमिका
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